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कविता

बसंत म बिरह – छत्तीसगढी कविता आडियो

संगी मन बर बसंत के बेरा मा एक अडबड सुन्दर छत्तीसगढी आडियो इहा लगावत हावव, सुनव अउ बासंती बयार म झुमव. पसन्द आवय त टिपिया के असीस देवव.
ये कबिता के हिन्दी भावानुवाद मोर हिन्दी ब्लाग आरंभ ले पढ सकत हव.
जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे
पहिली तैं फुदुक फुदुक कूदे डारा डारा
नेवता नेवते अमरइया जा के झारा झारा
अमुआ के रुख फेर सबला तैं बलाये
भवरा के मोहरी संग गीत गुंनगुनाये
फेर मोला नै पुछेस काय हाल हे
जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे
कतका जियानत हावय पिरा मितवा के
कइसे जियत होंहुं मै बिना हितवा के
छिन छिन घलो हा पहाथे जुग बरोबर
आंखी भरे आंसु जैसे लबालब सरोवर
जिनगी के खेती म परे दुकाल हे
जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे
पुरवाही के संग वोखर सुरता हा बोहाथे
आंखी आंखी झुलथे वोखर रुप हा लौकाथे
आखिर तैं का जानस मरम मया के
का जानस बिरह तैं अपन गिंयॉं के
पिरित परेवना घलव जीव के काल हे
जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे
मउरे आमा देख मोर मन हा भरम जाथे
महमहावत बगिया मोला डोली कस जनाथे
उप्पर ले कुहकी तोर बोंगय मोर करेजा
रह ले रे तितली तहु ताना मोला देजा
इतरावत बिजरावत टेसु लाल हे
जानि डारेव रे कोयली तोर काय चाल हे
किशोर तिवारी