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व्यंग्य

गरीबनवाज ला गरीब के पाती

हे अमीर मन के आनन्ददाता भगवान
लाख-लाख पैलगी
आसा हे के तुमन क्षीरसागर मा बने मंजा के सुते होहू अउ लछमी माता हर तुंहर चरणारबिन्दु ला हलु-हलु चपकत होहीं। तेखरे सेती ये मिरतुलोक मा का का अनियाव होवत हे तेखर तुंहला थोरको आरो नई हे। देवर्षि नारद घलो के तमूरा सुनई नई देवत हे, कोन जनी उहू कोनो ठऊर मा सुस्तावत होहीं। नहिं तो, ओ हर पृथ्वी लोक के कहूं चक्कर लगातीन, अऊ कहूं इहां के हाल तुंहला बतातीन त तुमन अभी तक कई खेप ये धरती मा अधरम के नास करे बर जनम ले डारे रहितेव।
प्रभु! तुमन कहिथव- ‘जब-जब होहीं धरम की हानि, बाढ़े असुर, अधम, अभिमानी… तदात्मानं सृजाम्यहम्, सम्भवामि युगे-युगे।’ भगवान का तुंहला खभर नई हे के ये संसार मा त्रेता अऊ दुआपर जुग ले जादा असुर, अधम, अभिमानी बाढ़ गए हें। बेसरम किसिम के। कतको उधमई करहीं। फेर उन ला थोरको लाज नई आवय, बलकिन ऊंकर नाक हर अऊ सोला हाथ बाढ़ जाथे।
आज गली-गली मा असुर किंजरत हें। ऋषि मुनि मन ला धक्का मारत हें। गरीब मानुस अउ सोझवा मन के हक नंगावत हें। देस ला, देस के गहना धर-धर के अपन घर-गोदाम भरत हें। नारी के लाज लूटत हे। अपन लाज ला तियाग के घूस, कमीसन, घोटाला जमो किसिम के अन्धेर मचाय हें। तुंहर थोरको डर तरास ऊंखर ऊपर नई हे। ओमन इही पृथ्वी मा अपन बर सरग अउ नरक के पीरा के उन ला थोरको संसो नई हे।
ये सकल कर्मी राछस मन अपन पाप के कमई ला तोपे बर कतको उदिम अउ पाखण्ड करत हें। इहां तक कि तुंहू ला घूस खवाय मा लगे रहिथें। छोटे पापी हर कोनो कोन्टा-उन्टा मा तुंहर बर नानकुन, मुड़ी बुलकऊ मंदिर बना देंथे त बड़का पापी मन या तो बड़े-बड़े मंदिर मा करोड़ों के सोना के जेवर चढ़ा देथें या तुंहर मूर्ति बनवा देथें या कि बड़े जन मंदिर बनवा देथें। ओ मंदिर के एक-एक ईंटा मा हमर लहू सनाय रहिथे। परमात्मा तुंहर आंखी कइसे मुंदा गे हे दयानिधान।
पचास बछर पहिली राजकुमार अऊ मुकेश के ये दे गाना ला गात-गात नरेटी सुखा गे- ‘सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है।’ फेर आज तो झूठके पूजा होवत हे। पहिली लइका मन कहंय- ‘झूठ बोलना पाप है गङ्ढे में सांप है’ फेर अब ऊंखर बाप मन उन ला अइसे सिखाथें- ‘झूठ बोलना पुन्य है, बाकी सब शून्य है। अमीर मन के लइका मन अपन इस्कूल मा अंग्रेजी मा प्रेयर करथें अऊ हमर लइका मन आजो घलो ये दे प्रार्थना ल करथें।’ तुमन हमन ला ज्ञान तो दे देथो फेर सबो आनन्द ला अमीर के लइका मन मा बांट देथो। हमर लइका मन गियान ला लेमनचूस बरोबर चाटत रहिथें हरि।
तुमन दीनदयाल, दीनानाथ, दीनबन्धु, गरीब नवाज कहाथो। फेर जम्मो सुख ले अमीर मन ला नवाजथो अऊ हमर भाग मा सिरीफ दु:ख आथे कन्हैया। हमन ला नवाजथो त सिरीफ गरीबी दुख। हे कृपा निधान! तुमन ये कलऊ काल मा, का पापीच मन ऊपर किरपा करहू? हे शरणागत के रच्छा करोइया तुमन कब तक पापी मन के रच्छा करहू? ओमन के पाप के घड़ा तो घड़ा, बडे-बड़े मरका, कोठी सब भरागे। तभो ले ओ मन मेछरात, छुट्टा गोल्लर कस गिंजरत हें, अऊ जम्मो जेल मा गरीब मन धंधाय हे। उार सुफेद कपड़ा पहरोइया आज भगवान ये, अऊ चिरहा-फटहा पहिरोइया कीरा-मकरो यें। तुमन सुतव। फेर अऊ कतका दिन सुतहू तेला बता दव। नहिं तो कहूं तुंहर काम ला हम करे बर धर लेबो। त हमला दोस झन देहू।

के.के. चौबे
गयानगर दुर्ग

(देशबंधु आरकाईव से साभार)