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व्यंग्य

लव इन राशन दुकान

पिक्चर देखइया मन मोला गारी देवत होहू के लव इन टोकियो, लव इन पेरिस- असन महूं हा लव इन रासन दुकान- शीर्षक में लिख दे हौं, फेर का करबे घटना ओइसनेच हे, के मोला लव इन रासन दुकान लिखे बर परगे।
दू साल पहिली के फ्लैशबुक आप मन ला लेगत हौं। रासन के दुकान के लाइन में माटी तेल ले बर अपन लाइन में एक लड़की अउ अपन लाइन में एक लड़का खड़े राहय। दूनो झन आजू-बाजू एके सोझ में होगे राहयं। दूनो झन पहिली एक-दूसर ला देख के मुस्कइन, अउ गोठियाय लगिन।
”तोर का नाव हे?” टूरा पूछिस।
टूरी कहिस- ”चैती अउ तोर का नाम हे?” चैती पूछिस।
टूरा कहिस- ”चैतराम।” दूनो झन खलखला के हांस डरिन। माने हमन चइत महीना में पैदा होय हन? अब दूनो के बीच संवाद शुरु होगे।
”कहां रहिथस?” चैतू हा बात ला आगू बढ़ाइस।
अब चैती कहिस, ”मैं तो अपन ममा गांव आय हौं। नानी ह मोला माटीतेल छोड़ाय बर भेजे हे, मोर गांव तो सिंगदेही ए।”
”कहां तक पढ़े हस?” चैतू फेर पूछिस। पढ़े के नाम ल सुनके चैती लजागे। चैतू हा विधानसभा प्रश्नोत्तरी कर उही बात ल फेर दुहराइस।
अब चैती हांस दीस अउ कहिस, ”मैं आठवीं ग्रेजुएट हौं।”
चैतू के होस उड़ागे, ”ये आठवीं ग्रेजुएट का होथे? तब चैती बताइस, ”मैं आठवीं में तीन साल ले फैल होके उहीच कक्छा में पढ़त हौं।”
चैतू ताली मार के हांसिस। चैती ल वोखर हांसी बने लागिस। चैतू के आंखी के रद्दा ले चैती ह वोखर दिल म उतरगे अउ घर बनालीस। परेम के इही कथा ये, गलती आंखी हा करथे अउ सजा दिल ल मिलथे।
दू दिन बाद कोटा में सक्कर आगे कहिके हांका परगे। हमर गांव में नाचा होथे तब पहिली ले बोरा बिछाके ‘स्पॉट रिजरवेसन’, माटी तेल आथे तब डब्बा मढ़ा के अउ सक्कर आथे तब झोला मढ़ा के नंबर रिजरवेसन करे के प्रथा हे। रासन दुकान मेर फेर दूनो झन सकलागे। दूनो झन एक-दूसर ल देख के हांसिन। चैतू कहिस, ”मोरो झोला ल तोर झोला सोझ मढ़ा दे मैं पाउच खा के आवत हौं।” चैती ह वइसने करिस। चैतू ह खुसबूदार मुंह से इम्प्रेसन जमाय बर पाउच खाके आगे अउ चैती बर सउंफ लाके दे दीस। चैती कहिस, ”टार मैं नइ खांव वोला, मुंह में कैंसर हो जथे कहिथे?” मुंह तो सब के बस्साथे कखरो थोकिन, कखरो जादा। फेर मुंह ल खुसबूदार बनाय बर कैंसर ल काबर नेवता दे जाय। फेर लोगन मानथे कहां? बिच्छी-केकरा छपाय के बाद भी लोगन खाय बर नइ छोड़े हें। न छोड़यं भले वोमा यमराज के फोटू छपा दौ।” चैतू ह चैती के सुग्घर बिचार ल सुनके खुस होगे तभो ले बोलिस, ”लेना ये दरी ले ले हौं तब खाले, अब आगू नई लांवव।” चैती ओखर मया में बंधा गे रहाय, पाउच ल चीर के सउंफ ला गटगट ले खा दीस अउ वचन लीस ”आन दरी ले न मोर बर लाबे न खुदे खाबे।” चैतू हौ कहि के मुड़ी ल हला दीस। परेम में गजब के ताकत होथे, परेम हा असंभव ल घलो संभव बना देथे। दिन भर में बीस ठन पाउच खवइया चैतू ह पाउच छोड़े के परामिस कर डरिस। थोकिन देरी म चैतू पूछिस, ”कब जावथस तब अपन गांव?” चैती कहिस, ”अभी पंद्रा दिन अउ रइहूं।”
”आबे तव बइठे बर घर कोती, तोर नानी के सात घर आगू मोर घर हे। आगू में सत्रा नंबर के बिजली खंभा हे?” चैती कुछु नइ बोलिस मुस्का दीस। दुनो झन गोठ बात में मसगूल राहय, पीछू वाले मन सक्कर ले डरिन फेर वो मन उहीच मेर खड़े रहिन। सक्कर ले के दूनो झन एके संग वापिस आ गें। चैतू ह अपन झोला के एक मुठा सक्कर चैती ल दीस, चैती पूछिस, ”सक्कर मोरो मेर हे फेर तैं मोला अउ काबर सक्कर देवत हस?” चैतू कहिस, ”तैं येला खा अउ प्रामिस कर तैं हमेसा मोर संग मीठ-मीठ बोलबे।” चैती हाथ में सक्कर लेवत बोलिस, ”मैं तोर संग करुच कब बोले हौं?”
अब चैती ह बइठे बर गीस के नहीं, तेखर आंखों देखा हाल मोला नइ मिल पाइस फेर अतका जरूर हे के दुनो झन एके संग तरिया-नदिया, खेत-खार जाय बर धरलीन। माने रोग के लक्छन बढ़गे रहिस। पहुंचत-पहुंचत बात ह चैतू के ददा बुधु तक पहुंच गे। टूरा ल डांटिस डपटिस फेर जात के टूरी होय के कारन जादा डांट-फटकार नइ लगा सकिस हे।
चैती दिखे में बने सुंदर राहय। गोरी नारी, चोक्खी नाक, बड़े-बड़े ओठ, करा बांटी कस चमकदार आंखी, पुस्ट शरीर जवानी हा अभी अंकुरावत रहिस हे, दू बेनी गांथ के पाटी पार के निकलय तब बुढ़वा मन तको एक नजर देख लेत रहिन हें अउ बोलें के बहाना बना के पूछ लेत रहिन हें- ”बने-बने चैती?” चैती तरेर के देखय अउ मनेमन काहय आज मरबे ते काली तेखर ठिकाना नइ हे अउ मोर बने गिनहा के चिन्ता करत हस। चैती बिना कुछु बोले सुटुर-सुटुर रेंग दे।
एक दिन चैतू के दाई ह दुकान जाय के बहाना करके कोठा में लुकागे। ठउके चैती ह बइठे बर आइस। घर ल सुन्ना पाके चैतू ह चैती के मुड़ म चमेली तेल लगाय बर धर लीस। कंघी, दरपन अउ पावडर घलो दिस। चैती ह जिद में उतरगे, तहीं कोर दे ना। कृष्ण घलो राधा के बेनी गुंथे रहिस हे। केसव कस चैतू ह घलो फिरी ऑफर ल खोना नइ चाहत रहिस हे। तेल लगा के कंघी पावडर कर दीस। ठउका ओतके बेर म टेलीबिजन में तेरे मस्त-मस्त दो नै, मेरे दिल का ले गये चैन… वाले गाना चलना शुरु कर दिस। चैतू से रहे नइ गिस। उहू हा मुड़ी ल हला-हला के हीरो मन कस गाये बर धरलीस अउ चैती ल इम्प्रेस करे बर धरलीस। गाना सिरइस तब चैती ल काबा में पाछू कोती ले पोटार लिस अउ चल न दूनो झन उढ़रिया भागबो। चैती ह उहूं कहिस अउ पल्ला भाग गे। चैतू के दाई ह संध में ले देखत राहय। अपन माथा ल ठोंक लीस। रतिहा अपन घरवाले मेर सबो बात ल सुनाइस।
चैतू ह चैती ल एक झन शायर के शायरी के लाइन ल देखाइस जेमा लिखे राहय- तुम हो आजाद, ये तुम्हारा केवल ख्याल है, मेरे हृदय में तुम्हारी सूरत कैद है। परेम करइया के दुसमन सब जमाना होथे। फेर ओ मन ल फरक नइ परय। ज् िाद में अड़गे तब अड़गें। चैतू-चैती के अड़े ले उंकर दाई-ददा मन मान गें। भांवर के बेरा चैती ह धड़ाम-धड़ाम रेंग के सात फेरा पूरा कर दिस। बिदा के बेरा रोइस तको नहीं। आज चैतू-चैती पति-पत्नी हें। अड़बड़ दिन बाद अपन पारा ले मैं चैतू घर नांगर तियारे बर गेंव तब चैती ह पानदान में पानी धर के लाइस। मैं चैतू ल पूछ परेंव-”कइसे जी चैतू, ससुरार कहां बनाएस?” चैतू कहिस, ”ये ह रासन दुकान के फिरी गिफ्ट ये सर जी।” वोखर अतका बात ला सुनके चैती हांस डरिस, वोखर दूनो गाल में गङ्ढा पर गे। चैती के खपसूरती जइसे सुने रहेंव वोइसने पायेंव। चैती के हांसना महूं ल गजब नीक लगिस।
डॉ. राजेन्द्र पाटकर स्नेहिल
हंस निकेतन कुसमी
तह. बेरला, जिला बेमेतरा

(देशबंधु आरकाईव से साभार)