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गोठ बात

लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम

आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे। अऊ विदेस म परचम लहरागे। वाह! वाह! हमार भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे। कोनों नइ रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मैथिली के सहोदरी छत्तीसगढ़ी ककरो ले कमती नइये। ए ह सबले जादा मुचमुचही हावय।
अमेरिका म भारत के जनपदीय भासा के जानकार मन ल नौकरी म रखे जाही ये समाचार पढ़केसुनके छत्तीसगढ़िया मन फूले नइ समावत हे, काबर कि मगही, मैथली संग छत्तीगसढ़ी के नाव घलो सामिल हे। विदेस म छत्तीगसढ़ी के परचम! हमार छाती फूलगे। मोला सुरता आवथे- सन् 2001 म रविशंकर विशवविद्यालय में मय ह हिन्दी अध्ययन मण्डल के अध्यक्ष बनेंव, तब एमए हिन्दी साहित्य म एक प्रश्नपत्र ल छत्तीसगढ़ी भासा साहित्य बना के अनिवार्य कर देंव। गैर छत्तीसगढ़िया प्रोफेसर मन अब्बड़ विरोध करिन फेर मय ऊंखर विरोध के सामना करेंव। ”छत्तीसगढ़ी भासा साहित्य” के प्रश्नपत्र ह बहुत लोकप्रिय होईस। विद्यार्थी मन ल ओ म बहुत जादा अंक मिलिस अऊ आज ले ओ प्रश्नपत्र चलथे। सन् 2006 म छत्तीसगढ़ी भासा साहित्य के प्रश्नपत्र ल अनिवार्य रूप से वैकल्पिक कर दिस नवा अध्यक्ष ह। हमन विरोध करेन, राज्यपाल ल पत्र लिखेन। राज्यपाल कुलपति ल तलब करिस अऊ कुलपति ह अध्यक्ष ल बला के कहिस- छत्तीसगढ़ी ल अनिवार्य करव।
अध्यक्ष ह नई मानिस अऊ इस्तीफा दे दिस। दूसर अध्यक्ष मनोनीत होईस अऊ छत्तीसगढ़ी ल फेर अनिवार्य करिस। ये घटना ह छत्तीसगढ़ी भासा के संघर्ष के कहिनी कहिथे।
एखर पहिली घलो प्राथमिक स्तर म हमर छत्तीसगढ़ नाव के पुस्तक चलत रहिस। हालांकि ये पुस्तक हिन्दी म रहिस फेर ओ मा बहुत अकन पाठ छत्तीसगढ़ी कविता, कहिनी, हाना, हमर संस्कृति, तीज-तेवहार के घलो जुरे रहिस। छत्तीसगढ़ राज के बने के बाद दू तीन साल तक हमर छत्तीसगढ़ पाठयक्रम म चलिस, तहां ले बंद होगे। आज इस्कूल म अइसना पाठयक्रम ल फेर चलाय के जरूरत हे। ओ समय म एला पढ़के लइका मन खुस रहंय अऊ छत्तीसगढ़ी बोले के कोसिस करंय। अंग्रेजी माध्यम इसकूल म घलो ये पुस्तक चलत रहिस। लइका मन खेल-खेल म हाना बोलंय अऊ खुस होवंय। अब ये पुस्तक बंद होगे। आज हिन्दी अऊ अंग्रेजी दूनों माध्यम के इसकूल म छत्तीसगढ़ी भासा संस्कृति के पाठ रखे के जरूरत हे।
आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम! छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे- अऊ विदेस म परचम लहरागे! वाह! वाह! हमर भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे! अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे कोनो नई रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मौथिली के सहोदरी छत्तीसगढ़ी ककरो ले कमती नइये। ए ह सबले जादा मुचमुचही हावय। मुचमुचही मन सबके मन ल मोहा डारथे। छत्तीसगढ़ी भासा के मिठास ह सबला मोहथे। ओखर पण्डवानी के डंका विदेस म घलो बाजे लगिस। करमा, ददरिया के राग घलो पहुंचथे। पंथी नाच देख-देख के विदेसी मन मुह फाड़थे! सुनव छत्तीसगढ़िया भाई बहिनी म, अपन खान-पान ल घलो पहुंचाय बर लागही। बड़े-बडे होटल खोल के छत्तीसगढ़ी चीला, फरा, बरा, बोबरा, अईड़सा, देहरौरी, ठेठरी, खुरमी, पूरन भरे लाड़ू ये कलेवा ल चारों डाहर बगरावव। एखर बेवसाय करव, जइसे राजस्थानी मारवाड़ी मन बेवसाय करथें।
अमटाहा रमकेरिया, मुरई भांटा, मसरी के बटकर, कोचई पान के ईड़हर, ए सब अमटाहा साग के सुवाद दूसर ल चरवाय बर परही, तब जाके छत्तीगसढ़ी खान पान के पहिचान बनही। खान पान ले संस्कृति बगरथे। नाचा, नौटंकी ले संस्कृति के पहिचान बनथे। संस्कृति के परचम लहराय बर घलो इही उपाय करव कि बेवसाय फैलाव।
अमेरिका म मसरी के बटकर खाबो अऊ चीला खाबो त कइसन मजा आही भाई बहिनी मन। अमेरिका म हमार छत्तीसगढ़ के सैकड़ों लइका मन पढ़थे। नौकरी करथे। कतकोन झन मन घर बसा डरे हें। अपन घर म गमला म नीम अऊ तुलसी घलो लगाए हे। रमायन, महाभारत, डिस्कवरी ऑफ इंडिया के सीडी अऊ कैसेट रखे हे अपन लइका मन भारत के पहिचान कराय बर। अब छत्तीसगढ़ी गाना के सीडीकैसेट घलो ले जाथे। त छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़ी भासा संस्कृति के परचम कइसे नई लहराही? बोली के भासा बनगे। भासा अइसन दउड़िस कि विदेस पहुंचगे। छत्तीसगढ़ी भासा संग संस्कृति घलो बगरत जाय, तभे हम छाती ठोंक के कहिबो लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम।



-डॉ. सत्यभामा आड़िल
शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार