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कहानी

हरमुनिया – मंगत रविन्‍द्र के कहिनी

रमाएन तो कतको झन गाथें पर जेठू के रमाएन गवई हर सब ले आन रकम के होथे। फाफी राग…. रकम-रकम के गीद ल हरमुनिया म उतारे हे। जब पेटी ल धरथे ता सब सुनईया मन कान ल टेंड़ देथे। ओकर बिना तो रमाएन होबे नई करै। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया…. उसाले पांव बाजे घुंघरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव…..।
नानपन ले जिंहा रमाएन होवै तिहां सुने ल चल देवै एक कोन्टा म बइठ के चित्त लगा के सुनै। कोन रात कोन बिकाल ले घर म फिरै। रमाएन सुनत-सुनत अतका तार पके हे के, कोनो मेर के कथा अऊ गीद ल पूंछ ले, मुहखरा बता देथे। रकम-रकम के गीद हर ओकर पेट म भरे हे। कोनो गाये बजाये म चुकथे ता चट्टे सुरता करा देथे। पर अड़हा ए बिचारा हर…. रमाएन ल बांच नई सकय…. आखर के गियान नई ए तिही पाय के हिम्मत करके बियास म बइठ नई सकय… हां, ककरो संग बइठ के छें म झोंकें लागै।
एक दिन दसना म सूते-सूते गुनीस:- धन मैं… थोरथार पढ़े रतेओं ता पेटी ल धर के गा ले तेओं। अड़हा ए कहिके मोला पारी नई देवैं। अइसे गुनत तो बिचारा के नींद परगे पर रात के सपना देखथे के ओकर बहिनी हर एक ठन हरमुनिया ल मुड़ म बोह के भाई घर अमराये ल आवत हे। कहिस:- भइया! एदे तोर हरमुनिया!! बजा के देख तो…..? अइसे बजाहूँ कहिस ओतके बेरा सारे बिलाई हर पटउहा म मुसवा धरे ल दमरस ले कूदिस ता जेठू हर झकना के जाग गे। का सपनावत रहें दद्दा कहत जोर से जम्हाईस अऊ फेर ढलंग गे…..।
बिहना मनटुटहा नहाये ल तरिया जावत हे….। ओती ले रंगा महराज हर ओम नम: शिवाय… ओम नम: शिवाय कहत चेरू ल जेवनी हाथ म धरे आवत रहिस। पांय लगत हों महराज! जय हो!! जेठू ल उदास जान के महराज पूंछथे:- कस जेठू, आज कइसे मनटुटहा हस ग? नरसों बगचुंआ म नवधा के नेवता हे, जाबो न…? का कहौं महराज! जाये ल तो जाहूँ पर मोर मन म एक ठन पीरा हे। महराज कथे:- अरे तोला का के पीरा हे? दाई-ददा जीयत हे, घर म सुवारी, नोनी बाबू… गांव म बहिनी भांटो के घर… फेर तोला का के तकलीप हे चतुर मनखे ल…। अइसे बात नई हे महराज! मोर पेट म रकम-रकम के गीद भरे हे पर एक आखर पढ़ें नहीं ता मोर मन हर कचवाथे। हरमुनिया धर के गा नई सकौ अतके मोर मन के पीरा हे….। हत जकहा! एमा संसो करे के का बात हे ग। गांव म प्रौढ़ शिक्षा पढ़ाथें, उंहा अपन नाव ल लिखादे अऊ रोज पढ़े ल एक घरी जा… सब्ब ल सीख जाबे।।
।। गांव म खुले हवै शिक्षा ज्ञान प्रौढ़ के ।।
।। जा ना जेठू पढ़े तैंहर, रथिया कथरी ओढ़ के।।
सीरतोन महराज? अरे तोला ठगहुं का ग? मोर ठगे के नता थोरे अस…। तोर भलबाद होय महराज, मोला अच्छा रस्दा बताए कहत तरिया के रोंट पार म चढ़ गे..।
चित कुंवर नोनी, संतोषी उपास रहै। उदियापन के दिन संझा एमाएन के पोरोगराम हे। रमाएन मण्डली हर नेवताए हे। महराज घर तो बिहने ले दार-चउर हबर गे हे। भाई जेठू हर बिहने ले डेरा डारे हे, काबर… बहिनी घर ए, कछु-कछु ल करे ल परत हे….।
संझा होइस… छानही म सनत साउण्ड सर्विस के चोंगा टंगा गे। पहिली पारी जेठू के हे… टिपा गे। माखन ल कहिस:- ले भांचा पेटी ल धर… मैं गाहूँ….। फेर झन पूंछ रमाएन झम्मक गे। ओ तो प्रौढ़ शिक्षा म जा के बज्जर पके हे। कथें ना:-
।। जन सुधरहिं सत संगति पाई।।
।। पारस परस कुधातु सुहाई ।।
सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया, उसाले पांव बाजे घुघंरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव… गीद ल सुन के रंगा महराज मूड़ी ल नदिया बइला कस डोलाइस। अहा… धन हस रे जेठू तोर फाफी राग। रमाएन छेवर होइस। परसाद झोकीन अऊ अपन-अपन घर रेंगीन…..।
कै दिन ले आन के गेंड़ी म रेंगहूँ। ओ दिन मोहन भांचा हर बजाईस। फलाना दिन जग्गू हर…। अदरा बइला के आगू रेंगे ल परथे। सूरदास ल लाठी के मूड़ी धरईया लगथे। इही गुनाबात म जेठू हर सधवा घर के छट्ठी नेवता के रमाएन म गैरहाजरी करिस। रंगा महराज घेखत रहिस के कतेक बेर ले जेठू कइसे नई दिखत ए… ओ दिन हर बुलक गे….।
बहिनी चितकुंवर हर गांव म बिहा के गये रहिस। भइया ल छानी ओइरे ल बलाए हे। पागा मारे छानी म चढ़े जेठू हर खपरा ल ओइरत हे। नोनी कथे:- भईया! सधवा घर छट्ठी के रमाएन म तोर नरी ल नई सुनेओं। कहाँ गये रहे ग? भउजी खिसियाईस का? का कबे नोनी! तोर भउजी तो कलंकनीन ए… कहुँ कत्ती जाबे, रमाएन गाये ला ता बेड़ी ल हरक के सूत जाथे। फरिका ल उघार रे… उघार रे… कबे ता कड़ाए डोंड़का कस नरी म कथे:- जा …. जा… ओई कती ककरो आंट परछी म सूते रबे। गंवार नारी के संगति परगेंओ बहिनी! रोज-रोज दंतिया कस झकोरथे। दहंस म तन ह र सुखाके कांटा होगे। जवरिहा… जउरिहा लोग लइका… सुने म लाज लागथे। सोना चांदी रतीस ता कालीच नावा बदलके ले आतें पर अब का करौं….. जवानी के खसलती अऊ बुढ़ापा के लगती…..चाबे- कोंथे कस गोठियाथें। इही सोच के तुलसी बबा हर लिखिस काय….।।
।। ढोल गंवार उदण्ड पसु नारी।।
।।ये पांचो परखन के अधिकारी।।
नोनी ! एक ठन मोर सउंक हर रह गये हे। पढ़े नई जानत रहें। एदे पढ़े ल सीख गये ओं। पर का करौं… ए नारी के कुमत म कछु करते नई बनै। का सउंक हे तोर भइया, बताना… अरे तोर से नई होही ता हमन कछु उदीम कर तेन। ले बताना….! नानमुन हरमुनिया लेहे के साध हे। सबे कथें अब पेटी बजाए ल सीख… जेठू… पेटी बजाए ल…। ले मैं कहां ले बिसाँव? ठेकली म तोर भउजी हर पैसा ल धरे हे अऊ तैं जानत हस ओहर जर घला के मंगनी नई देवै फेर बाजा ले डारबे ता तो… मोरे बाजा बजा दिही…।
भाई के गोठ ल सुन के चितकुंवर बहिनी ल दया आगे। भइया! थोरथार ल तो थाम दिहौं पर एक ठन गोठ कथौं:-कंजूस के धन ल घुना खाथे। भउजी हर जम्मो चीज ल रपोट के धरे हे। ओकर बर गहना लेहे के नाम म सब पैसा ल ले ले अऊ तोर सउंक ल पूरा कर ले। जाइदा उपनबाय करही ता मैं थाम लिहूँ भउजी ल… नई तो तोर राहत काम के पगार मिलही तेकर ले देबे…।
नोनी के सिखोना म जेठू आ-गे। अंगना म बइठे जेठीन सूपा म चउर ल निकियावत रहिस। कथे:-कस ओ, चमेली के दाई ! अरे गांव भर के डउकी परानी मन रकम-रकम के गहना पहिरे हें अऊ तोला कछु के साध नई लगीस…। ता…मैं… का करौं तोला तो दिन-रात रमाएन हर धर खाये हे। कमई न धमई….रोज-रोज आधा रात ले किंदर के आथस। डउकी परानी के कभू सुरता करथस का? अरे जकही! तोला राम रमाएन हर चाबथे का?
भगवान के भजन म जाथो। का तोर सउंक ल नई पुरोवँव का…. का के कमती हे घर म…. बताना ? चुपे काबर हस? अतका ल सुन के जेठीन कथे:-ले का कहत हस तेला बता। ओ ठेकली के पैसा ल हेर अऊ चल चली बुधवारी बजार… कछु गहना पहिर लेबे। हां! हां! मन के छांट लेबे कथस. छाती म गड़त हे का पैसा हर…? अरे जकही, मोर छाती म काबर गड़ही। मैं तो तोरे बर कहत हौं ले ले… नईतो सबला मुरचा खा दिही। ओ दिन नोनी हर घलो कहत रहिस…। का गुनीस… का समझीस जेठीन हर… हहो कहिस। तहिच्च चल देबे बजार… मोला काबर ले जाबे…।
आइस बुधवार… जेठू हर ठेकली के पैसा ल मोटरिया के संकेरहा ले बुधवारी बजार चल दिस। खैमो-खैमो मनखे मन करत हें। सोनार पसरा तो गइस पर मन छलहा…। ओकर धून तो हरमुनिया म लगे हे। दहात-दहात सदर कोती गइस, एकेट्ठा हरमुनिया दुकान म जा के खड़ा होइस। कतेक ल गोठियाबोन… गहना छांड़ जेठू हर एक ठन सुघर हरमुनिया ल मलोके ले डारिस…।
अइसे बजे तीनिक… डरोपोको घर ओरथे…। बजवट म पेटी ल मढ़ाईस अऊ झोला ल खूंटी म अरझा दिस। जेठीन तो डहर निहारत रहै। ओकर मन बड़ कुलकुला हे। झोला ल टमरिस… दुच्छा… अजुवट म आने रकम के बकसा… आंखी एती ओती नाचत हे।
जेठू हर सुवारी के सुभाव ल जानत हे के आज एहर कलंक मताही। जी ल हूम देके ए उदीम ल करे हे। चाहे कछु होय…. मैंहर… घर के सियान औं, मोरे चलही। जेकर घर डउकी सियान घर मरे बिहान….।
जेठीन डबके अंधना कस पुकरत कथे:-तैं… काला लाने हस…? ए कोटना ल। एला थोथना म चाटबो। लड़हार के ठेकली ल फोर वाये अऊ अपन हाड़ा ल लाये हस। का पूंछबे भइया, गोठ के अंगरा बरसगे। जेठू बिचारा… कान म ठेठी डाँर के सबला सुनत, सहत हे। अतके बेरा नोनी चितकुंवर अऊ गांव के चैतु मण्डल घला आ-गे। धीरे बानी करके अंगना म चार झन जूरिया गइन। एदे समझई-समझई म जेठीन हर कुवरंहा कस बादर एक कोन्टा म थिराईस….।
दिन पहावत हे। संझा पगार के हांका परिस। के चला हो… अपन-अपन राहत काम के पगार ल झोंके….। जेठू के कान ठड़िया गे। गइस… पगार झोंकिस। जेठीन के अंचरा म ला के मढ़ा दिस कहिस:-नोनी संग चल देबे… हाट अऊ तोर मन के पहिर लेबे। जेठीन, कुलक भरिस…। हपताही म ननद संग चकचक ले गहना पहिर के आ-गे।
अंगना म बइठे ननद के मुड़ ल जुहां देखत भउजी कथे:-कस चितकुंवर ! बने फभे हौं न… तोर भइया बड़ मयारू हे ओ…। देखतो अउंटाये लहू के पैसा म अतका सुघर पैरी अऊ झुमका ले दिस…। चितकुंवर कहिस रानी बरोबर दिखत हस मोर मयारू भौजी, अब भइया ल झन लड़बे। चुप्प ओ… लड़े भिड़े के गोठ ल कथस। कब लड़े हों तोर भइया ल…बता तो…? अतके बेरा खखारत पुसाऊ गंवटिया आ-गे। कथे:-कहाँ हे ददुआ हर? गंवटिया के आरो पाके ननद भउजाई उठ गइन। बइठा कका ससुर! पांव परत हौं ! चिरोंजी रहा…। ओ तो बेड़ा कती अभीच्च निकलीस हे। हं… एदे हमर घर रमाएन के नेवता हे। हौं…। चल दिस गंवटिया हर…।
खा पी के संझा चितकुंवर हर रमाएन सुने ल भउजी ल बलाए गीस। भउजी हर बने सम्हर पकर के तारा फरिका देके ननउ संग रमाएन सुने जावत हे। पुसाऊ गंवटिया के मेल्ला आंट खचाखच मनखे भरे हे। एती जेठीन हर ननउ संग झम्मक-झम्मक पैरी बजावत रेंगत हे अऊ ओती जेटीन के गोसईया नवा हरमुनिया म गावत रहिस:-
।। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजइया, उसाले पांव बाजे घुंघरू
ओ मइया छनानना… उसाले पांव….।।
ननद के हिरदे म गीद हर समागे। भउजी ल कहिस:-सुनत हस भउजी! भइया हर कइसे रमाएन गावत हे अऊ तोर पैरी-कइसे बोलत हे…? ननद के गोठ ल सुन के भउजी के हिया भरगे। नोनी ! मैं का कहौं… मोर अंतस के गोठ ल…। तोर भइया ल रात दिन ठंवना मारौं… आज सबे कहत होंही के…फलानीन के गोसिया हर रामायन ल गावत हे। धन हे मोर भाग… मोर लेढ़वा जोड़ी चार झन के बीच ऊंच मूड़ी करके हरमुनिया धरे गावत हे:-

।। सरसती मइया तैंहर बीना के बजईया….
।।उसाले पांव बाजे घंुघरू ओ मइया छनानना……

मंगत रविन्‍द्र