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कविता

बसंती हवा

लाल लाल फूले हे, परसा के फूल।
बांधे हे पेड़ मा, झूलना ला झूल।
पिंयर पिंयर दिखत हे, सरसों के खेत।
गाय गरु चरत हे, करले थोकिन चेत।
टप टप टपकत हावय, मऊहा के फर।
बीन बीन के टूरी तैं, झंऊहा मा धर।
आये हे बसंत रितु, चलत हे बयार।
मेला घूमे ला जाबोन, रहिबे तइयार।
आवत हे होली अऊ, गाबोन जी फाग।
मय गाहूं गाना अऊ, तैं झोंकबे राग।
मटक मटक रेंगत हे, मोटियारी टूरी।
खन खन बजावत हे, हाथ के चूरी।
फुरुर फुरुर चलत हे, बसंती हवा।
मटकावत हे आंखी, पहिरे कपड़ा नवा।
आमा बगीचा मा, कोयली ह मारत कूक।
आज मोरो मन ह, करत हे धूक धूक।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा)
8602407353
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