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कविता

तयं काबर रिसाये रे बादर

तयं काबर रिसाये रे बादर
तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती,
अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I
नदियाँ, नरवा, तरिया सुक्खा सुक्खा,
खेत परे दनगरा मेंड़ हे जुच्छा I
गाँव के गली परगे सुन्ना सुन्ना,
नई दिखे अब मेचका जुन्ना जुन्नाI
करिया बादर आत हे जात हे,
मोर ह अब नाचे बर थररात हेI
बिजली भर चमकत हे गड़गड़ गड़गड़,
बादर भागत हे सौ कोस हड़बड़ हड़बड़ I
सुरुज ह देखौ आगी बरसात हे,
अबके सावन ल जेठ बनात हे I
कुआँ अऊ बऊली लाहकत लाहकत,
चुल्लू भर पानी म कोकड़ा ह झाकत I
बुलकगे आसाढ़ ढूलकगे सावन,
ठलहा बईठे हे बियासी के रावनI
तोर अगोरा म टकटकी लगाये,
संसो म सबो परानी दुख पाये I
अन्न पानी अब कुछु नई सुहावय,
देख किसान के तरुवा ठननायेI
अब गिरही तब गिरही कीके आस लगाये,
पड़की, परेवना तोरेच गीत गायेI
छिन छिन जिंनगी घटत बढ़त हे,
हंसी ठिठोली अब कोनों नई करत हे I
रुख राई जीव जंतु के अरथी उठत हे,
बूंद बूंद पानी बर जिनगानी तरसत हे I
मसमोटीयाँ तयं ह रिसाये काबर,
अब तो बरस जा रे निरदयी बादर I

विजेन्द्र वर्मा अनजान
नगरगाँव(धरसीवां) जिला-रायपुर
मो.9424106787