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कविता

नवा साल मं

महिना के का हे संगी हो?
आत रइही-जात रइही,
जनवरी,फरवरी…।
साल के का हे संगी हो?
आत रइथे-जात रइथे ये तो,
…..दू हजार अठारा,
दू हजार अठारा ले दू हजार ओन्नईस,
ओन्नईस ले बीस,बीस ले….।
बदलत रईही कलेंडर घलोक।
महत्तम के बात हे संगवारी हो,
हमर नइ बदलना।
संगी हो,
हमन मत बदलिन,
हमर पियार झन बदलै,
हमर संस्कार झन बदलै,
जीए के अधार झन बदलै।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘
बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. )
7999385846