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कविता

रोवत हे किसान

ए दे मूड़ ला धरके रोवत हे किसान।
कइसे धोखा दे हे मउसम बईमान।।
ए दे मूड़ ला धरके………………..

झमाझम देख तो बिजली हा चमके।
कहुँ-कहुँ करा पानी बरसतहे जमके।।
खेती खार नास होगे देखव भगवान।
ए दे मूड़ ला धरके…………………

करजा नथाय हावय दुख होवय भारी।
गाँव छोड़ शहर कोती जाय सँगवारी।।
कतका झेल सहय डोलत हे ईमान।
ए दे मूड़ ला धरके………………….

सुन भइया सुन लव बन जावव सहाई।
ढाढस बँधावौ संगी झन होय करलाई।।
सपना देखय सुख के होवय गा बिहान।
ए दे मूड़ ला धरके…………………..

बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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