धन-धन रे मोर किसान

धन-धन रे मोर किसान धन-धन रे मोर किसान मैं तो तोला जानेव तैं अस, तैं अस भुंइया के भगवान। तीन हाथ के पटकू पहिरे मूड मं बांधे फरिया ठंड-गरम चऊमास कटिस तोर काया परगे करिया कमाये बर नइ चिन्हस मंझंन सांझ अऊ बिहान। तरिया तीर तोर गांव बसे हे बुडती बाजू बंजर चारो खूंट मं खेत-खार तोर रहिथस ओखर अंदर इंहे गुजारा गाय-गरू के खरिका अऊ दइहान। तोर रेहे के घर ल देखथन नान-नान छितका कुरिया ओही मं अंगना ओही मं परछी ओही मं सास बहुरिया एक तीर मं गाय…

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साहित्यिक पुरखा मन के सुरता : द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र

तिरिया- (कुण्डलिया छन्द) तिरिया ऐसी ब्याहिये, लड़ै रोज दस बेर घुड़की भूल कभी दिए, देखै आँख लड़ेर देखै आँख लड़ेर, नागिन सी फुन्नावै कलह रात दिन करै, बात बोलत भन्नावै जीना करै हराम, विप्र बाबा की किरिया मरने का क्या काम, ब्याह लो ऐसी तिरिया । गैया – गैया ऐसी पालिये कि खासी हरही होय पर धन् खा घर लौटिहै, लीजै दूध निचोय लीजै दूध निचोय-मुफ्त का माल उड़ाओ पारा बस्ती शहर भरे की गाली खाओ पहुंचे काछी द्वार, करै फिर दैया मैया शहर बसो तो विप्र, पाल लो हरही…

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पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ के गीत

तोला देखे रेहेंव गा, तोला देखे रेहेंव गा । धमनी के घाट मा बोईर तरी रे ।। लकर धकर आये जोही, आंखी ला मटकाये गा, कईसे जादू करे मोला, सुख्खा म रिझाये गा । चूंदी मा तैं चोंगी खोचे, झूलूप ला बगराये गा, चकमक अउ सोन मा, तैं चोंगी ला सपचाये गा । चोंगी पीये बइठे बइठे, माडी ला लमाये गा, घेरी बेरी देखे मोला, हांसी मा लोभये गा । जातभर ले देखेंव तोला, आंखी ला गडियायेंव गा, भूले भटके तउने दिन ले, हाट म नई आये गा । पं.द्वारिका…

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