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कविता

आजादी के गीत

खूने-खून के नदिया बोहाइस, परान छुटत ले लड़े हे। आजाद कराय बर देस ल, दुस्मन संग भिड़े हे। उही लहू के करजा ल, अब चुकाये ल परही। आजादी के गीत ल, मिलके गाये ल परही।।… घर दुवार के मोह छोड़ के, देस के रक्छा करे हे। भारत माँ के लाज बर, आगी अँगरा म जरे […]

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कहानी

नान्‍हे कहिनी : नवा बछर के बधाई

नवा साल के नवा बिहनिया राहय अउ सुग्घर घाम के आनंद लेवत “अंजनी” पेपर पढ़त राहय। ओतके बेरा दरवाजा के घंटी ह बाजथे। “अंजनी” पेपर ल कुरसी म रख के दउड़त दरवाजा ल खोलथे।”अंजनी” जी काय हालचाल कइसे हस ? “अंजनी” (सोचत-सोचत)”जी ठीक हँव।” फेर मँय आप मन ल चिनहत नइ हँव ? अइ…..अतका जलदी […]

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गोठ बात

सतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरूघासीदास जी

छत्तीसगढ़ राज्य के संत परंपरा म गुरू घासीदास जी के इस्थान बहुत बड़े रहि से। सत के रददा म चलइया, दुनिया ल सत के पाठ पढ़इया अउ मनखे-मनखे के भेद ल मिटइया। संत गुरूघासीदास जी के जीवन एक साधारन जीवन नइ रहिस। सत के खोज बर वो काय नइ करिस। समाज म फइले जाति-पाँति, छुआछूत, […]

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कविता

याहा काय जाड़ ये ददा

समझ नइ आवत हे,याहा काय जाड़ ये ददा…! जादा झन सोच,झटकुन भुररी ल बार बबा…! अपने अपन कांपाथे,हाथ गोड़…! चुपचाप बइठ,साल ल ओड़…! कोन जनी कती,घाम घलो लुकागे हे…! मोला तो लागत हे,उहू ह जडा़गे हे…! आज नइ दिखत हे,चंवरा म बइठइया मन…! रउनिया तपइया,रंग-रंग के गोठियइया मन…! बइरी जाड़ ह,भारी अतलंग मचावत हे…! सेटर,कथरी […]

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कविता

माटी के मया

अब तो नइ दिखय ग, धान के लुवइया। कहाँ लुकागे संगी, सीला के बिनइया। दउरी,बेलन ले, मुँह झन मोड़व रे…..। माटी संग माटी के, मया ल जोड़व रे…..।। बोजहा के बंधइया, अब कहाँ लुकागे। अरा-तता के बोली, सिरतोन नदागे। गाडा़, बइला के संग ल, झन तुमन छोड़व रे…..। माटी संग माटी के, मया ल जोड़व […]

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गोठ बात

देवारी बिसेस : हमर पुरखा के चिनहा ल बचावव ग

……हमर संस्कीरिती, हमर परंपरा अउ हमर सभ्यता हमर पहिचान ये।हमर संस्कीरिती हमर आत्मा ये।छत्तीसगढ़ के लोक परब, लोक परंपरा, अउ लोक संस्कीरिती ह सबो परदेस के परंपरा ले आन किसम के हावय।जिहाँ मनखे-मनखे के परेम, मनखे के सुख-दुख अउ वोखर उमंग, उछाह ह घलो लोक परंपरा के रूप म अभिव्यक्ति पाथे। जिंनगी के दुख, पीरा […]

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कविता

बेटी के सुरता

सोचथंव जब मन म, त ये आंखी भर जाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। का पानी, का झड़ी,बारहों महिना करथे काम। का चइत, का बइसाख, तभो ले नइ लागय घाम। धर के कटोरा, जब गली-गली भीख मांगथे। तब मोला,वो बेटी के सुरता आथे।। बेटा ह पछवागे, बेटी ह अघवागे। देस के रक्छा करे […]

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कविता

खेती मोर जिंनगी

नांगर धर के चले नंगरिहा, बइला गावय गाना। ढोढिया,पीटपिटी नाचय कुदय, मेचका छेड़य ताना। रहि-रहि के मारे हे गरमी ह, तन-मन मोरो जुड़ा जाही। अब तो अइसे बरस रे बादर, भूइयां के पियास बुझा जाही। । धान बोवागे बीजहा छीतागे, कतका करिहंव तोर अगोरा ल। उन्ना होगे आ के भर दे, मोर धान के कटोरा […]

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कविता

गांव के सुरता

होवत बिहनिया कुकरी-कुकरा, नींद ले जगावय। कांव-कांव करत चिरई-चुरगुन, नवा संदेसा सुनावय। बड़ निक लागय मोला, लईका मन के ठांव रे।…… आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।…… भंवरा बांटी के खेल खेलन, डूबक-डूबक नहावन। डोकरा बबा खोजे ल जावय, गिरत हपटत भागन। आवत-जावत सुरता आवय, डबरी के पीपर छांव रे।……. आज घलो […]