निचट शराबी अऊ जुवांड़ी, बाप रहै झन भाई। रहै कभू झन कलकलहिन, चंडालिन ककरो दाई॥ मुड्ड़ी फूटगे वो कुटुम्ब के, उल्टा होगे खरिया। बेटा जेकर चोर लफंगा, भाई हर झंझटिया॥ छानी के खपरा नई बाचै, वोकर घर के ठउका। निपट अलाल, शराबी होगे, जेकर घर के डउका॥ ओकर घर मं दया मया अऊ, सुमत कहां ले आवै। जेकर बहू बिहिनिया संझा, झगरा रोज मचावै॥ अइसन मिलय दमाद न जे, हाथी के माई भइंसा। परम लोभिया, अपरिध्दा, मांगय बिहाव बर पइसा॥ मिले न मक्खीचूस ससुर, जे धन पाके इतरावै। सास मिलय…
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कबिता : नवा तरक्की कब आवे हमर दुवारी
अरे गरीब के घपटे अंधियारगांव ले कब तक जाबे,जम्मो सुख ला चगल-चगल केरूपिया तैं कब तक पगुराबे?हमर जवानी के ताकत लाबेकारी तैं कब तक खाबे?ये सुराज के नवा तरक्कीहमर दुवारी कब तक आबे?हमर कमाए खड़े फसल लगरकट्टा मन कब तक चरहीं?कब रचबो अपनों कोठार मसुख-सुविधा के सुग्घर खरही?कब हमरो किस्मत के अंगनासुख के सावन घलो मा कब तकउप्पर ले खाल्हे मा कब तकनवा सुरूज ह घलो उतरही?हमर भुखमरी एहवाती हेहमर गरीबी हे लइकोरी।जिनगी के रद्दा मा ठाढ़ेदु:ख, पीरा मन ओरी-ओरीदेख हमर दु:ख पीरा कोनोबड़का-बड़का बात बघारै।कागज के डोंगा म कोनोबाढ़…
Read Moreचरगोड़िया : रघुबीर अग्रवाल ‘पथिक’
चारों खुंट अंधेर अघात। पापी मन पनपै दिन रात। भरय तिजौरी भ्रस्टाचार आरुग मन बर सुक्खा भात॥ रिसवत लेवत पकड़ागे तौ रिसवत देके छूट। किसम-किसम के इहां घोटाला, बगरे चारों खूंट। कुरसी हे अऊ अक्कल हे, अउ हावय नीयत चोर बगरे हवै खजाना, जतका लूट सकत हस लूट॥ कांटा गड़िस नहरनी म हेर। जम्मो दुरगुन ले मुंह फेर। झन कर अतलंग अउ अंधेर करनी दिखही मरनी के बेर॥ कहूं गरीबी भगा जही तौ, कोन ओढ़ही कथरी ला? मगर मन खोजत रही जाही, नान्हे-नान्हे मछरी ला। चार धाम के तिरिथ करे…
Read Moreरघुबीर अग्रवाल पथिक के छत्तीसगढ़ी मुक्तक : चरगोड़िया
छत्तीसगढ़ के माटी मा, मैं जनम पाय हौं।अड़बड़ एकर धुर्रा के चंदन लगाय हौं॥खेले हौं ये भुँइया मा, भँवरा अउ बाँटी।मोर मेयारूक मइया, छत्तीसगढ़ के माटी॥ छत्तीसगढ़ मा हवै सोन, लोहा अउ हीरा।हवैं सुर, तुलसी, गुरु घासीदास, कबीरा॥हे मनखे पन, अउ अइसन धन, तबले कइसन।चटके हवै गरीबी जस माड़ी के पीरा॥ कहूँ खेत के धान, निचट बदरा हो जाही।नेता हर चितकबरा अउ लबरा हो जाही॥का होही भगवान हमर अउ हमर देश के?खाल्हे ले उप्पर तक ह खदरा हो जाही॥ भला करइया खावै गारी।गरकट्टा मन खीर सोंहारी॥हमर लहु ला चुहक चुहक…
Read Moreचरगोड़िया
भूख नई देखय जूठा भात, प्यार (मया) नई देखय जात-कुजात॥ समय-समय के बात, समय हर देही वोला परही लेना कभू दोहनी भर घी मिलही, कभू नई मिलही चना-फुटेना। राजा अउ भिखारी सबला, इही समय हर नाच नचाथे, राजमहल के रानी तक ला, थोपे बर पर जाही छेना॥ बेटी के बर बिहाव, टीका सगाई मोलभाव, लेन-देन होवत हे भाई। कइसे बिहाव करय बेटी के बाप, येती बर कुंआ हे, वोती बर खाई॥ मां होगे मम्मी अउ बाप होगे डैड लइका अंगरेजी के पीछू हे मैड। भासा अउ संस्कृति के दुरगुन तो…
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