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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : बवइन के परसादे

कोनो भी बाबा के सफलता के पछीत म कोर्ह न कोई बवइन के पलौंदी जरूर होथें। मैं अपन चोरी चमारी के रचना सुना सुनाके तीर तखार के गाॅव म प्रसिध्द होगे हौं। फेर घर म जोगडा के जोगड़ा हौं। उही चिटियाहा चड्डी बनीयइन, बिन साबुन तेल के खउराहा उखराहा हाथ गोड़। चिथियाए बगरे भुरूवा भुरूवा बड़े बड़े चुंदी। गर म कुकुर के पट्टा कस ओरमे मोहनजोदड़ो युग के टेटकू मोबाइल। उहू मोबाइल के स्क्रीन टूटहा हे। उपरौनी म ओकर पछीत के ढकना टूटहा। जेला मैं रंगीन रब्बड़ में लपेट के नवा जमाना नवा फेसन के हिसाब से नवा लुक दे दिए हौ। एला भले कोनो मोर कंजूसी कहि लै फेर मै रिस्ता अउ जुबान के पक्का हौं। बवइन संग सात फेरा लेके गाॅठ बाॅधे हौ। अब ले बिना नागा, बिना कोनो सिकवा सिकायत के इमानदारी के साथ निभावत हौं। अब इमानदारी के प्रतिसत हे वोला निष्चित नइ बता सकौं। चाहे जइसे भी निभै फेर अपन होके संग नइ छोड़त हौ। वइसनेहे मोर मया लगन बंधना अउ जुराव मोबाइल संग हे। ए मोर बैसुरहा बरन रूप के देखे मोर बवइन ह कभू मोर संग घर ले बाहिर नह गिस। मैं जब भी घर ले निकलेंव बैसाखी के भरोसा निकलेंव। अउ जब तक बाहिर रेहेंव बैसाखीच् के सहारा समें गुजारेव। बैसाखी के भरोसा जिनगी बितइया मही भर नइ हौ। इहाँ तो मोर ले बढ़के कतको अनलेख अपाहिज हे। जिंकर मानसिकता अउ संस्कार हॅ मोरो ले हजार गुना गए बीते हे। अइसन स्थिति म यहा बाजारवाद के युग म गली गली ओन्टा कोन्टा म बैसाखी के दुकान बिन खोजे मिल जथे। अइसे मोर प्रसिध्दि के भरोसा बाहिर म मोर बर कतखो बैसाखी फोकट म खड़े रहिथे।




एक दिन मैं कविता पाठ करके मुरझुराए लड़खड़ावत लहुटेंव। बवइन घरके मुहाटी म अँड़ियाए डांसिंग इस्टाइल म डोलत ठाड़े राहय। मैं सटर पटर करत घुसरते रहेव। वोह बीचे म टाँग ल अँड़ा दिस। तीस मन वजनी अपन कमर कम कमरा जादा ल मटकावत कहिस – ए कवि महोदय। चाहा पीबे का ? मैं सदादिन ओकर काँव काँव ल डीजे साउण्ड म सुने टकराहा रहव। आज ओकर प्योर कोइला कस कोइली तन ले मदरस झरत मीठ तान सुनके चकरित खागेंव। कोन जनी ये चाहा पियाके का निचोना चाहत हे। मैं मुँह ल खोलके मयाके कुछ बोल गोठिया पातेंव तेकर पहिली मोर चुटइया खड़ा होगे। मोला चेतावनी देवत कहिस। देख निर्मल बाबा ! बवइन के मन म अपन बाबा बर कतको मया उमड़य फेर बरसथे तभे जब उनला कुछ मतलब रहिथे। सम्हल जा बेटा। या तो कुछु जोरदरहा माँग होही। या कुछु सच उगलवाना चाहत होही जेला तैं आज तक एकर ले दबाए चपके बइठे हस। कारण कुछु होवय कुल मिलाके आज तोर पुजई हे जान। जइसे बोकरा के बलि देहेके पहिली पूजा पचिस्टा करे जाथे। ओइसने अभी तोर उपर फूल पान के बरसा होवत हे।
मोर कान ठड़ियागे। नाक ले सैंफो सैंफो के मधुर धुन गुँजे लागिस। मैं अपन बाहिरी दिनचर्या ल तीन सौ साठ डिग्री घुमाके देखे लगेंव। फूटहा याददास्त के सीसी टीेवी म कतको फूटेज खंगालेंव। मोर भकुवाय बुध के सुरता के कैमरा म एको ठिन फूटेज नइ मिलिस। मैं मने मन गुने लगेंव। कहूँ मोर बैसाखी वाले बात ….. । तभे वोह अपन छै इंची होंठ ले अचानक अठ्ठारा इंच के इस्माइल फेंकिस। अउ कहिस – सुन ! ए काय तैं टेटकू मोबाइल ल घेंच म ओरमाए टेटका कस मुड़ी हला हला के गोठियावत रहिथस। ओकर अतका गोठ ल सुनके कैसिनो के चकरी कस भन्नाटी घूमत मोर आँखी सट ले थमगे। मैं मरमलोक अउ परमलोक के बीच भरमलोक म ओरमे हालत ढोलत फिफ्टी फिफ्टी के मीठ अमटाहा पीपरमेंट ल चुचरत रेहेव। ओकर पतिव्रत धरम के प्रभाव से आज मैं यमराज के फाँदा ले बाइज्जत बरी होगेंव। पहिली तो ससन भर साँस लेके अपन आप ल सोझियाएंव। फेर अपन मुरझुराए छाती ल तनियाके छप्पन इंच करेंव। चाहा के चुलूक भीतरे भीतर फूट के गोद गोद गोद गोद झरे लागिस। छत्तीस इंची चाइना माॅडल मुस्कान के साथ मुँह म लार अउ आँखी म प्यार भरे निवेदन करेंव के थोरिक फरिहा के गोठियाते त मैं कुछ समझ पातेंव प्राण प्रिये। वो अपन मन के गोठ प्रसारित करके हर बात ल भंगभंगले उघार के रख दिस। कहिस तै मंदहा ठेठवार के पूरति नइ हस। वोह बने असन टच स्कीन वाला मोबाईल ले डारे हावय। काली ठेठवारिन अपन मइके वाले मन संग अबड़ हाँस हाँस के गोठियावत रिहिसे। मैं फट्टे समझ गेंव के फिट्टे मुँहवाली ठेठवारिन के हाँसी हँ बवइन के खाँसी होए हे। बवइन अउ फटकारिस -एक तैं हस। जइसने तैं खसुवाहा ओइसने तोर मोबाइल।




मैं मंहगाई के तोपना म ढांकत अपन कंजूसी के रोना रोवत कहेंव – टच स्कीन वाले मोबाइल कतेक म आथे जानथस। अब मुँह मिटकाए के पारी ओकर राहय। ए बात ल बोलत अपन खाँध अउ थोथना ल जतका गिराए रहेंव ओकर ले दुगुना वोह अपन खाँध ल उचकावत पूछिस – कतेक म आ जथे ? मैं कहेंव कम से कम 5000 म आथे। वो तुरते ममता ले मायाबती होगे। कहिथे – न कलम घिसे बर न कागज रंगे बर। फोकट के चोरी चकारी के कविता मंच मंच म सुनावत रहिथस। आयोजक मन लिफाफा म का ताली भर ल भर के देवत होही। तनखा के पइसा उपराहा। सब कहां जाथे। मैं कहिते रेहेव देख भाई – मोबाइल कइसनो राहय गोठ बात तो होथे न ……….. वो अधबीच्चे म टेलर कस कैंची रेंगा के मोर बात ल चर्र…… के चीर दिस। मैं कुछु नइ देखौं जानौं। अतेक दिन ले देखतेच तो आवत हौं। न रंग के न ढंग के। तोर बाहिर भीतर सब ल समझथौ मैं। मोर मेर तै फोकटे फोकट जुच्छा हाथ ल मत हला। जभे तैं टच मोबाइल लाबे तभे मोला टच करबे। नइते आज ले तैं मोर मया के कवरेज क्षेत्र से बाहर। अउ मुँह ल तुत ले कर 360 डिगरी घूम के खड़ा होगे। नारी ले तो दुनिया हारी। मैं कोन भर्री के मुरई औ जेन जीत जहू। ओकर जिद के ठेंगा अइसे परिस के मोर बुध मोला ठेंगा देखा के रेंग दिस। जानो मानो सरकारी अस्पताल म आँखी के आॅपरेसन कराये कस मोर आगू म अंधियारी छागे।




बिहान भर बवइन मोर पेंट के जेब ले टमर टमर के सकेले 7000 रूपिया अपन अंटी ले निकाल के मोर मुॅह म मार दिस। एक मंच के तीन हजार मै पूरो के झखमारी 10000 वाला टच मोबाइल लाएव। तब जाके मोला स्क्रीन टच अउ स्कीन टच के दोहरा, तीहरा, गदगद ले फायदा मिलिस। सब ले पहिली आंखी ल मिटका मिटका के, मुंह ल पेचका पेचका के, टेड़ेग बेड़ेग खड़ा होके, बइठके, अंइठके, सुतके, उलण्डके, घोलंडके, तेकर पाछू लपटके, सपटके डपटके सेल्फी लेन। जी जुड़ालिस तभे छोड़ेन। अब मैं मोहन जोदड़ो युग के टेटकू मोबाइल वाला नइ रेहेंव। इक्कीसवी सदी के फेसबुकिया शायर होगे हौं। मै अपन नाम ’निर्बल बाबा’ के संग उपनाम “महाकवि” लिखे लगे हौं। सब बवइन के परसादे बाबा जी।

धर्मेंद्र निर्मल
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