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तीन बच्छर पूरगे पूनाराम अपन बेटी मोनिका ल पुरखौती गांव नई लेगे हावय। गरमी के छुट्टी मा जाबो कहिके मनाय रहिस।छुट्टी सुनाय पाछू ऐसो मोनिका जिदेच कर दिस। बेटी के मया अउ जिद के आगू थोरको नइ बनिस। शनिचर के संझा बेरा जाय के मुहुरत बनिस। पूनाराम ल भेलई मा रहिते सहरी जिनगी कभू कभू गरु लागथे। कतको घांव गांव आयबर सोचथे फेर आ नइ सकय। बेटी के जिद ह एक मउका अऊ दे हावय।गांव जाय के पहिली दिन ओला नानपन मा गरमी के दिन के सुरता आ जथे।तरिया मा बर अऊ आमा रुख ले कूद के तउंरई, छू छुवउल,आमा बगीचा ले आमा गिरायबर पखरा मा मारे के निसाना मा दांव लगाना, चोराना, अमली बीजा के चिचोल ले तिरीपासा खेलना सबो सुरता आथे। माटी के घर , खपरा छानी, गोबर लिपे दुवार अंगना, बैसाख जेठ के गरमी मा मंझनिया आमा के अथान संग बासी अउ रतिहा अंगना मा बबा के गमछा के पंखा के हावा मा सुताई सब सुरता आ जाथे। गांव के ओकर जादा संगवारी मन के नउकरी नइ लगीस त ओमन हा पेट रोजी बर पर परांत कमाय खाय चल दिस। बांचे संगवारी मन गांव मा अपन जिनगी पहात हे। फेर आज भुसरेंगा गांव ओ पुराना गांव नइ रहिगेहे। गांव तक पक्की सड़क बन गेहे।
पूनाराम संझकेरहा गांव जायबर मोनिका संग फटफटी मा निकलगे। तीनेच बच्छर मा गांव ह बदले बदले कस लागत हे। गांव पहुंचती मा अब गच्छी वाला घर दिखत हे। पूनाराम अपन पुरखौती घर मा उतरिस। ओकर घर मा एकझन किराया मा रहिथे। चाय पानी पीके अउ घर के हियाव धियाव ल सरेखत बइठिस।गांव अमरत ले संझा होगे। कका काकी घर बइठेबर गिस।पांव पलगी होय के पाछू कका के नान्हे बहू चाय पानी धर के लानिस। चाय ल देखतेसाट मोनी कहे लागिस- लाली चाहा आय, मै नइ पियंव।पूनाराम घलाव देखिस, ओकर आंखी अपन कका तनी घूमीस। तुरते काकी कहिस– हव बेटी, हमन गाय गरु ल बेंच डरे हन। पूनाराम अकबका गे। काय केहे काकी, गाय गरु मन बेचागे! कइसे ? काबर? काकी बताय लगीस–अब हमर उमर होगे हावय। गोबर कचरा करेबर, पेरा भूसा करेबर, पानी पसिया देयबर, बांधेछोरे बर जांगर खंग गे हावय। ऐसो घर मा टाइल लगवाय हन। गाय गरु एती रेंगथे त बहू बेटा मन मुहू मुरेरथे। खेती खार कमाय बर टेक्टर, थ्रेसर हावय। अऊ काला काला गोठियांव।चाय पीये अऊ गोठबात के पाछू पूनाराम अपन नानपन के संगवारी परमोद करा बइठे जायबर उठिस। परमोद गांव मा नानकुन किराना दुकान धरे हावय।ओकर दुकान के आघू मा चार पांच झन पेपर पढ़इया बइठे हावय। भीतरी ले परमोद देखीस त पूनाराम ल घर मा बलाईस अऊ अपन लोग लइका मन संग भेट पलगी कराइस। नउकरी नइ लगीस अऊ उमर पूरगे त परमोद गांव मा अपन जीनगी ल संवारत हावय। मोनी अउ परमोद के बेटी कुमकुम संगवारी बनगे।
घर परवार,दुख सुख, रोजी पानी, अऊ पुराना दिन के सुरता, गोठ बात होय के पाछू घर आय बर निकलगे। रद्दा मा आवत आवत गांव के सियान मन संग भेंट पलगी करत घर अइस।रतिहा खाय पिये पाछू सुतगे।बिहनिया पूनाराम के कका चाय पिये बर अउ रोटी खायबर बलाय आइस। बाप बेटी काकी ल गोहार लगात भीतरी डाहर निंगीस।काकी ह सोफासेट मा बइठार के आगू मा टी टेबल लगाईस अऊ पलेट मा इटली ल पताल चटनी संग परोस दिस,कहिस-बहू हा इही ल बनाय हे बाबू, लेव खावव। पूनाराम कहिस- बने अंगाकर रोटी बनाय रहितेव काकी, घीव संग खाय रहितेन। अड़बड़ दिन होगे अंगाकर रोटी खाय।काकी के मुहूं नानचक होगे, कहिस- काला बताव बाबू, घर मा छेना लकड़ी नइ हे गैस चूल्हा मा रांधथन।गैस चूल्हा मा अंगाकर रोटी कइसे चुरही। बहू ल अंगाकर बनायबर नइ आवय।पूनाराम पाछू दिन के सुरता करत राहय, इही काकी आय जौन गोरसी मा छेना रचके चाउंर पिसान ल बासी के सीथा संग नून डार के पिचकोल के थपटय ओकर खाल्हे ऊपर पाना जठा के छेना के रगरगात अंगरा मा मढ़ा देवय।दू घांव पलटय फेर लाल होवत ले चुरय तहान सबझन बर कुटका करके पताल चटनी नइ ते घीव संग खायबर देवय। वो अंगाकर बर रोटी आज घलो लार बोहाथे। काकी कहात हे -ऐती सरकार घलो सबझन ल डरवात हे,चूल्हा, छेना लकड़ी ल बंद करव आँखी फूट जाही।गैस चूल्हा जलावव। पूनाराम सोचत हे अब अंगाकर खाय के सउंख कब पूरा होही। गांव ले अंगाकर रोटी नंदा जाही त कहां चुरही।
अइसने हमर छत्तीसगढ़ के अड़बड़ अकन रोटी पीठा नंदावत हे।लइका ल हिन्दी अंग्रेजी बड़का बड़का इस्कूल मा पढ़ावत हन फेर सीखत काय हे?बजार के खाना ,बजार के गाना, पर परांत के संस्कृति, अइसने मा हमर संस्कृति ह नंदा जाही।
हीरालाल गुरुजी समय
छुरा जिला – गरियाबंद