कविता – सुकवा कहे चंदा ले

सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे
चोला चिटियाएहे, मन चंगा नइ दिखे
खुमरी नंदागे कहॉं, खुरपा नइ दिखे
खार सिरागे कहॉं, करपा नइ दिखे
बिलासपुर म जइसे अरपा नइ दिखे
सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे

खांसर नंदागे, दमांद आवै दुलरू
बईला के गर म बाजे झूल घुंघरू
नंदिया तीर बंसी बाजे उही बेरा म
राग बखरी ह छेड़े कुऑं – टेड़ा म
मुटियारी खोपा म वो दावना नइ दिखे
सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे

कोठार नंदागे, कोठा नइए लछमी
अगोरत राहे दूध, दही, कोरनी
नांगर – बक्खर छूटगे, घांटी छुटगे
दंउरी बईला संग उलान – बांटी छुटगे
“ओहो-तोतो-तोतो” के ढंगा नइ दिखे
सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे

Lalkar-1

लोक नाथ साहू ‘ललकार’

Related posts

One Thought to “कविता – सुकवा कहे चंदा ले”

  1. Yashpal Janghel

    Bahut bahut badhai ho laknath ji aapko is sunder kavita ke liye . Chhattisgarhi me is level ki kavita ka nitant abhav hai. Chattisgarhi sahitya ko aapse badi ummidein hai.

Comments are closed.