जबले अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ल शांति के नोबल पुरस्कार मिले हे, तबले जम्मो किसम के मान-सम्मान अउ पुरस्कार ल चना- फूटेना बरोबर बांटे के रिवाज हमारे इहां चलगे हे। अइसे बात घलोक नइ हे के पहिली अइसन नइ होवत रिहीसे। पहिली घलोक अइसन होवत रिहीसे। जेन मनखे ल अपन सम्मान करवाना होवय वोहा कोनो अइसन किसम के आयोजक ल एकर ठेका दे देवय, जेन ह पचीस-पचास आदमी ल जोर-सकेल के एकाद झन झोला छाप नेता किसम के आदमी ल अतिथि बना के बला लेवय। माईक अउ साल-नारियर के संगे-संग जम्मो सकलाए मनखे के चाय-नास्ता के व्यवस्था ल तो सम्मानित होवइया ह खुदे करय।
फेर अब जब ले बराक ओबामा ल शांति के नोबल मिले हे, तबले अइसन किसम के सम्मान समारोह के रूप रंग ह बदल गे हे। अब लोगन ये कोसिस करथें के कोनो बड़का असन समिति ह सम्मान समारोह के ठेका लेवय, जेमा मंत्री-संत्री, प्रेस- मीडिया, बाजा-रूंजी सबो के व्यवस्था राहय। सबले बड़े बात ए के समिति ह साल, नरियर, प्रमाण-पत्र के संगे-संग कड़कड़ावत नोट घलोक देवय। ए बात अलग हे के समिति ह अइसन जिनीस के जुगाड़ चाहे कहूंचो ले करय।
मंत्री-संत्री मन तो वइसे फूल-माला पहिरे अउ पहिराये खातिर पूरा कार्यक्रम के खरचा उठाए के परंपरा चालू करी डारे हें। अइसने किसम के अउ कतकों नेता परानी मिल जाथें। जे मन खरचा के थोक-मोक बोझा ल अपन-अपन खांधा म बोह लेथें। अइसे-तइसे करके जम्मो किसम के खरचा के व्यवस्था हो जाथे। पुरस्कार पाये खातिर सधाए मनखे जब पहिलीच ले एती तेती मटमटावत रहिथें, तब तो कोनो बात के संसो-फिकर नइ राहय। फेर जब अइसन किसम के कोनो समारोह ल आयोजक मन अपन पब्लिसिटी अउ जान-पहिचान खातिर आयोजन करथें, त पुरस्कार झोंकइया मनला खोजे ले लागथे। एकर खातिर लिस्ट बनाये जाथे वोमा सबले पहिली नम्बर आथे राजनीतिक सत्ता म बइठे लोगन के, वोकर बाद प्रशासनिक सत्ता म बइठे लोगन के, एकर बाद मीडिया म बइठे लोगन के, तहां ले फर्जी समिति बना के बइठे मठाधीश मनके, अउ तक फेर आथे चापलूसी के सिहासन म बइठे चरण-भाट मनके। आजकाल जतका भी सम्मान समारोह या पुरस्कार वितरण होवत हे सबो के मापदंड लगभग अइसने किसम के हे। एकरे सेती योग्य मनखे के कहूं कोती पुछारी नइ रहिगे हे।
अइसना करइया आयोजक मनला जब पूछबे के कइसे जी तुमन तो अपात्र मनखे के सम्मान करत हौ, त उन झट ले कहि देथें- त ओबामा ह शांति के नोबल खातिर कोन से मार योग्य रहीसे। का दुनिया के मनखे ये बात ल नइ जानत हें के अमरीका ह पूरा दुनिया खातिर गोल्लर ढीलाये हे तेन ला? जब भी कोनो देस थोरको एती – तेती करथे त ए हर पूरा फौज-फटाका लेके उहां धावा बोल देथे।
अफगानिस्तान संग का करिस तेला सबो जानत हें। लादेन के वोकरे सेती लद्दी-पोटा निकलगे हे, एती-तेती लुकाय-लुकाय किंदरत हे। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ल कइसे ढंग के फांसी दिस इहू बात ल सब जानत हें। अरे भई ये सब तो दुरिहा के बात होइस। तोर अपन घर ल देख। पाकिस्तान ह रोज दिन तोला काकर बल म आंखी देखाथे? उहां के जम्मो आतंकवादी बनाये के फेक्टरी मनला कोन पइसा देथे? दुनिया के नान-नान देस मनला कोन हथियार बेच-बेच के आपस म लड़वावत रहिथे? त मोला बता अइसन किसम के मरकनहा गोल्लर कस देस के मुखिया ल गरुवा बरोबर मान के शांति के नोबल पुरस्कार कइसे दिए जा सकथे? त हमू मन कोनो भी ल काबर विरोधाभासी सम्मान नइ दे सकन?
अपन गलती ल सही बताय खातिर लोगन जगा एक ले बढ़ के एक तर्क होथे। एकरे सेती वो कहि सकथे बराक ओबामा के कार्यकाल ह तो आने मनले शांतिपूर्ण बीतत हे। अभी महीना भर पहिली वो हर परमाणु नि:शस्त्रीकरण खातिर बुता करीस हे, एकर पाछू डेनमार्क के राजधानी कोपेनगेहन म दुनिया के वायु मंडल ल कार्बन उत्सर्जन ले बचाए खातिर पर्यावरण के समर्थन खातिर काम करत हे। तब तो वोला शांति खातिर पुरस्कार मिल सकथे? माने दुनिया ल अपन बात ल साबित करे के कोनो न कोनो बहाना मिली जाथे। फेर ए मन ल कोन समझावय के साहित्य, संस्कृति, कला या समाजसेवा के क्षेत्र म अइसन किसम के तर्क-वितर्क नइ चलय। सम्मानित होने वाला चाहे खेदू राहय, ते बिसाहू। चरणभाट राहय ते चंचला।
सुशील भोले
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