बोली बरदान आय। अगर मइनखे मन बरदान नई मिले रहितिस पूरा दुनिया मुक्का रहितिस। बोली ले ही मइनखे मन अपन गोठ बात ल, अपन सुख-दुख ल, अपन बिचार एक दूसर लगन बाटथे।
मइनखे के चिन्हारी ओकर गोठ बात ले हाेथे कि कऊन मइनखे कतेक समझदार हे, कतेक बिद्वान हे कि कतेक सभ्य हे बात ओकर गोठ ले ही पता चलथे। एक दूसर लगन आपसी व्यवहार के सुरूवात गोठ बात ले ही होथे। कतको झन मइनखे मन अइसन होथे जऊन मन बिना बिचारे जइसे पाथे ओइसनहे बोल देथे लेकिन समझदार मइनखे मन बोले के पहली सोच समझ के कुछु गोठ बोलथे। संगी हो गोठ बात ले ही काम बनथे अऊ बिगड़थे। हमर गोठ बात मीठास अऊ सम्मान होना चाही। गोठ बात चाहे संगी जवरिहा लंग होय चाहे रिस्तेदारी होय या फेर अनचिन्हार मइनखे लगन होय, सज्जनता अऊ सालीनता होना चाही। हमनला धियान रखना चाही कि हमर गोठ ले कोनो के मन चोट तो नइ पहुंचिस हे।
कतको मइनखे अइसनहो भी होथे कि एक घव गोठियाय बर सुरू होइन तहां ले चुपे नइ होवय आगू वाले मइनखे सिरिफ हा-हा मुंड़ हलावत खड़े रहि जाथे खाली अपने गोठ जादा महत्व देथें संगी हो बात सही नइ आय हमनल दूसरों के गोठ सुनना चाही ओकरो गोठ सून के ओकर बाद अपन गोठ रखना चाही गोठ बात हंसी मजाक घलो होथे। हंसी मजाक अपन जगा ठीक हे फेर कोनो मइनखे के चोट पहुंचा के ओकर हंसी नइ उड़ाना चाही। गोठ बात हंसी मजाक मरियादा के पूरा-पूरा धियान रखना चाही। अगर छोटे होय मया के बोली अऊ अगर अपन ले बड़े होय आदर अऊ सम्मान के बोली बोलना चाही। संगी हो तीन ठन चीज कभू लहुट के नई आय- छोड़े गय बान, बीत गय समय अऊ बोले गय बचन। गुरतुर बोली अड़बड़ दुरलभ चीज आय। जऊन मीठ्ठ बचन बोलथे दूसर के मान देथे ओकर से दूसर तो सुख मिलथे संगे-संग खुद के अन्तस के आनंद बाढ़ जाथे। गुरतुर बोली अतेक ताकत रहिथे कि ओकर से हमन कोनो भी होय अपन बना सकत हन। तुलसी दास जी एकर संबंध एक ठन अड़बड़ सुघ्घर बात कहे हे- तुलसी मीठे बचन से सुख उपजत चहूं ओर, वशीकरण यह मंत्र है तज दे बचन कठोर। गुरतुर बोली दूसर सुख, सांति अऊ परेम के दान करथे। गुरतुर बोली ले सद्गुन के पासन होथे। मन अऊ बुद्धि निरमल होथे एकर से अपन, दूसर अऊ सबो के कलियान होथे। करू बोली अतेक भयंकर रहिथे जेकर ले मइनखे के हिरदे छेदा जाथे एकरे बर संगी हो अपन गोठ बात गुरतुर बोली के परयोग करना चाही। हमेसा गुरतुर बोली बोलना चाही।
भावना श्रीवास
तखतपुर
(दैनिक भास्कर ‘संगवारी’ ले साभार)