पीरा म गोहार पारत सुशीला अपन बेटा ल कथे, रूपेश मोला पन्दराही होगे कनिहा पीरा म मरत-मरत। फेर आज उदूक ले जादा बाड़ गे तइसे लागत हे। मोर देह के जम्मो हाड़ा ह एके जगा अरहजगे तइसे लागथे बेटा, बने असन डॉक्टर ल देखा देते कथो-
पीरा म कलपत अपन दाई ल देख नई सकिस अऊ ओतकीच बेर अपन होण्डा म बइठार के सहर डाहर लेग के बड़े असन डॉक्टर ल देखाईस डॉक्टर ह एक कोरी गोली ल धरा दिस, देखते-देखत महिना सिरागे फेर कुछू नई होईस, फेर वोकर ले ऊचहा डॉक्टर कर धर के लेगीस। वोहू ह तीन ठन सूजी ल ठाय-ठाय बेध के कथे अब चिन्ता करे के कोनो बात नइए दू दिन म बने हो जही। डॉक्टर के गोठ म हिरदे के घाव ह माड़गे फेर तन के घाव ह नई माड़हीस। अइसने करत-करत कतको रुपइया फूंकागे अऊ कनिहा पीरा कमती नई होईस। रूपेश ह तइयार होके नवा डॉक्टर ल देखाय बर अपन होण्डा ल निकलत रथे ओतकीच बेर पुनऊ कका पूछथे- ‘बिहनिया-बिहनिया ले कोन गांव जावथ हस जी?’, रुपेश कथे काला बताबे कका अइसे कहिके जम्मो किस्सा ल बताथे, त पुनऊ ह भड़क के कथे- ‘तुमन हा जी जादा पढ़े-लिखे हावव कहिके अड़बड़ फुदगथो, हमर पारा मं बैसाखू ह नाड़ी ल देखथे ओर करा देखा के देख, सुशीला ह ओखर घर जाथे अऊ चार दिन म जम्मो पीरा सिरतोन म माड़ जथे।’
एक दिन पुनऊ सुशीला घर हमा जथे अऊ पूछथे कइसे जी रूपेश तोर दाई ल बने लगिस जी, त रूपेश कथे सही बतायेस कका दाई ह एकदम बने होगे। पुनऊ कहे लगिस इही ल कथें बेटा घर म नाग देव, भिंभोरा पूजे ल जाय- अइसे कहिके जम्मो झन खलखला के हांसथे।
जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा राजिम