कोनो तीज तिहार होय, अंचल के रीत-रिवाज जहां के संस्कृति अऊ परम्परा ले जुड़े रथे। सबो तिहार म धार्मिक-सामाजिक संस्कार के संदेश हमला मिलथे। तिहार मनाय ले मनखे के मन म बहुते उमंग देखे जाथे। आज मनखे ला काम बूता के झमेला ले फुरसद नइ मिले। ओला तिहार के ओखी म एक-दू दिन काम-बूता ले उरिन होके घूमे-फिरे अऊ अपन हितु-पिरितु संग मिले भेंटे के मौका मिलथे। तिहार के ओखी घर-दुवार के साफ-सफाई लिपाई-पोताई हो जथे। गांव म डीह डोंगर के देवी देवता के ठऊर ल बने साफ करके लिपई पोतई करथें। देवता धामी के बने मान-गौन होथे तब उहू मन बस्ती अवइया बिघन बाधा बर छाहित रथे। इही पाय के हमर पुरखा मन तीज तिहार मनाय के परम्परा चलाय हें, जेमा एक ठन तिहार गांव के मड़ई मेला ल घलो माने जाथे।
मड़ई मेला परब मनाय के चलन कब ले शुरू होय हे, येखर कोनो ठोस परमान तो नइ मिलय फेर सियान मन अपन पुरखा मन ले सुने मुंहजबानी कथा अइसन किसम के बताथें। द्वापर जुग म भगवान कृष्ण हा देवराज इन्द्र के पूजा नई करके गोबरधन पहाड़ के पूजा करिस, तहान इन्द्र ह अपने अहंकार के मारे मुसलाधार बारिस करके सब गोप-ग्वाल ल विपत म डार दिस। तब भगवान कृष्ण ह अपने छिनी अंगरी म गोबरधन पहाड़ ल उठाके सबके रक्षा करिस। संगे-संग गोप-ग्वाल मन ल अपन-अपन लऊठी पहाड़ म टेकाय बर कहिके एकता म कतका ताकत हे येकर मरम बताइस। ओ दिन विपत ले बांचे के खुशी म गोप-ग्वाल खूब नाचे गाये लगिन। उही दिन ले राऊत नाचा अऊ मड़ई मनाय के परम्परा शुरु होइस।
जिहां तक हमर छत्तीसगढ़ के बात हे, देवारी तिहार म गोबरधन के पूजा करथन। किसान के नवा फसल आथे, ओकर बाद म मड़ई मेला मनाय के सिल-सिला शुरु हो जथे। ओ जुग म भगवान कृष्ण ह प्रकृति के पूजा करके इन्द्र के अहंकार ल टोरिस अऊ ग्वाल बाल के रक्षा करिस तब कृष्ण ल अपन रक्षक मान के ओकर पूजा करिन। उही पाय के आज घलो गऊ माता के चरवाहा मन भगवान के कथा ले जुड़े दोहा बोलथें अऊ नाच-कूद के खुशी मनाथे। अब भगवान कृष्ण के संगे-संग अऊ कतकोन देवी देवता के पूजा अऊ मान गौन करथें। देवी देवता के चिन्हारी के रूप में मड़ई बैरक सिरजा के मड़ई मेला के तिहार ल सामूहिक रूप म मनाय जाथे।
मड़ई मेला के परब हमर जम्मो छत्तीसगढ़ म मनाय जाथे भले विधि-विधान म थोर-बहुत अंतर रथे। ये तिहार ल मनाय के तारीख तिथि पहिली ले तय नइ राहय फेर अतका बात जरूर हे, जे गांव म जौन दिन हाट बजार होथे उही दिन मड़ई मनाथें। जेन नान्हे गांव म हाट बजार नइ होय उहां कोनो दिन अपन सहूलियत देख के मड़ई तिहार मना लेंथे। कोनो-कोनो गांव जिहां हफ्ता म दू बेर हाट बजार लगथे अऊ बस्ती बड़े होथे उहा दू बेर मड़ई मेला के परब मना लेथें। येकर उलट कोनो-कोनो गांव म अपन गांव के परम्परा के मुताबिक कुछ साल के अन्तराल म मनाय जाथे। जइसन के जिला मुख्यालय गरियाबंद म तीन बच्छर म मड़ई मेला मनाय के परम्परा चलत हे। उही जिला के पांडुका गांव म छेरछेरा पुन्नी के बाद अवइया बिरस्पत (गुरुवार) के दिन मड़ई पक्का रथे। कोनो ला बताय के जरूरत नइ राहय। कई ठन गांव म हमर देश के परब गणतंत्र दिवस के दिन बड़ धूमधाम ले मड़ई मेला के तिहार मनाथे।
मड़ई मेला के तइयारी बर गांव के सियान पंच सरपंच एक जगा सकलाथें अऊ एक राय होके चरवाहा मन ला बताथें। दिन तिथि बंधाथे तहान मड़ई मेेला के जोखा गड़वा बाजा, नाच पेखम के बेवस्था अऊ जरूरी जिनिस ल बिसाके लानथे। अलग-अलग गांव म अलग-अलग देवी देवता बिराजे रथे। जइसन के महावीर, शीतला माता, मावली माता, सांहड़ा देवता के संगे-संग गांव के मान्यता के मुताविक अऊ देवी-देवता जेमे बावा देवता, हरदेलाल, राय देवता, नाग-नागिन देवता, बाई देवता अइसने कई किसम के नाव सुनब म आथे, ऊंकरो मान गौन करथें। गांव म कतको झन अपन पुरखौती देवी देवता मानथे जेला देवताहा जंवरहा कथे ओमन मड़ई बैरक राखे रथें उंकरो मान गौन करथें। मंडई म परमुख शीतला माता, मावली माता, महावीर, कोनो के पोगरी देवी देवता के मड़ई रथे। दू ठन कंदई मड़ई रथे जेमा कपड़ा के पालो (ध्वजा) नइ राहय। कंदई मड़ई म कंदई के अनगिनत पालो लगे रथे। डांग (बांस) के बीचोंबीच म चार पांच जगा ढेरा खाप पंक्ति लगा के ओमा मोवा डोरी गांथ के कंदई के पालो लगाय रथे। ओकर ऊपरी फोंक म मयूर पांख के फुंचरा बांधे रथे जेहा सबो मड़ई के शोभा बढ़ाथे।
मंड़ई मेला के परब म पौनी पसारी के मदद लेना बहुत जरूरी रथे। पौनी पसारी म गांव के पुजारी बईगा, किसान के गाय चरवाहा राऊत अऊ देवी देवता के पूजा पाठ बर दोना-पतरी देवइया नाऊ ठाकुर के सहयोग जरूरी होथे। इंकर बिना मड़ई के परब नई मना सकय। मड़ई के कामकाज करइया गांव के अगला मन पूजा पाठ के जिनिस, नरियर, सुपारी, धजा, वइसकी, लिमऊ बंदन, गुलाल, हूम धूप, अगरबत्ती के जोखा कर के राखे रथे। मड़ई के दिन सबले पहिली नरियर सुपारी अऊ बाजा-गाजा संग गांव के बइगा ल नेवता देथें, तब बईगा हा गांव के सब देवी देवता ल जेकर जइसन मान-गौन होथे ओ जिनिस ला भेंट कर के नेवता देथे। तहान गांव के परमुख सियान मन ला पिंवरा चाऊंर अऊ सुपारी भेंट कर के नेवता देथें। मंड़ई के दिन बाजार चौक म बिहिनियां ले दूकान वाला बैपारी मन अपन सामान लान के अपन दुकान सजा के तइयारी कर लेथें। जइसने बेरा चढ़त जाथे ओइसने बाजार के रौनक बढ़ते जाथे। मड़ई म मिठई, दुकान, खिलौना दुकान, मनियारी दुकान, होटल, पानठेला, किराना दुकान अऊ संगे संग साग-भाजी के बेचइया मन के पसरा घलो लगथे। मड़ई के दिन सबो दुकान के सामान खूब बेचाथे। वैपारी मन खूब आमदनी कमाथें। लोगन के मन बहलाय बर ढेलवा रहचुली झुलइया घलो आथें फेर अब ओहा धीरे-धीरे नंदावत हे।
संझाती बेरा नेवताये पहुना मन ओसरी-पारी आवत जाथे। ऊंकर मन बर सुन्दर मंच बनाके बईठे बर कुरसी, दरी बिछाय रथे। पहुना के आते साथ गुलाल लगा के स्वागत करके बइठारथें उही बेरा राऊत मन मड़ई (बैरक) लेके बाजा-गाजा संग नाचत-कूदत आथें अऊ अपन राउत नाचा के कला देखाथें। उहां ले राउत मन बिदा होके मड़ई ला ऊंकर ठऊर म अमराके ओती मंच म बईठे पहुना मन मड़ई मेला के विषय म भासन उद्बोधन देथे। ओकर बाद पहुना मन ला एक-एक नरियर दे के बिदा करथें।
मड़ई मेला के परब हमर छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान बनाथे। हमर छत्तीसगढ़ के कतको रीति रिवाज हा आज के नवा जमाना म नंदावत हे ये हमर बर संसो के बात हे। हमर छत्तीसगढिय़ा बुद्धिजीवी मन ला हमर पुरखौती संस्कार अऊ परम्परा ल संजोके राखे बर ठोस उदिम करे बर जरूरी है। संगे संग हर तीज तिहार म मंद मऊहा अऊ जुवा के रोकथाम बर हमला जागरुक होना बहुते जरूरी हे।
नोहर लाल साहू अधमरहा
गांव हसदा
मगरलोड जिला धमतरी (छ.ग.)