छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार, संस्कार अउ परंपरा म चारो मुड़ा भाव के प्रधानता दिखथे। हर परंपरा म कुछु न कुछु भाव समाय होथे। जब ये परंपरा मन ल ख्रगाहाल के देखथन तब हम अचरज म पड़ जाथन कि हमर पुरखा मन के मन म अतका सुग्घर भाव कहाँ अउ कइसे आइस होही। परंपरा म भाव ल समोना अपन आप म बड़का बात हे। ये सब परंपरा म परेम, स्नेह, श्रध्दा अउ समन्वय के भाव दिखथे। मनखे ल मनखे के मतलब बताथे। एक दूसर के सुख-दुख म भागीदारी होना ही मनखे होय के मतलब आय। जोन ल हम छत्तीसगढ़ के गाँव अउ उहाँ के जम्मो रीति-रिवाज म देख सकथन।
छत्तीसगढ़ के बिहाव संस्कार ह सही मायने म सामाजिक समरसता अउ सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वाह के अनोखा भाव दिखथे। सबो आम समाज के समान भागीदारी के यिात्मक रूप म दिखथे। गाँव म कहे जाथे-”गाँव के बेटी सबो के बेटी।” बिषेष रूप म गाँव बेटी के प्रति भाव हर सुग्घर दिखथे। चाहे कोई कोनो काकरो कतको दुष्मन कबार नइ होय, बाढ़े बेटी बर ओहर बैर भाव नइ राखे। बेटी जब बिदा होथे त कोन निर्मोही होही जेकर ऑंखी ले ऑंसू नइ निकलत होही।
छत्तीसगढ़ के बिहाव के सुरू के तैयारी ले लेके जम्मो संस्कार ल जब ओरी-ओर खोधियाथन त समाज के उपस्थिति अउ योगदान न परतेक्ष रूप म देख सकथन। घर के साफ-सफाई ले लेके चांउर-दार बनाना तको समाज के मनखे के भागीदारी दिखथे। बिहाव संस्कार म हर समाज के काम नियत हे। मड़वा छाय के काम ल स्वसमाज के मनखे मन करथे तब अउ दूसर काम ल दूसर समाज के मन। पानी भरना, ऑंगना लिपना, दूध-दही देना राउत समाज के काम आय। ये काम ल ओमन श्रध्दा अउ अधिकार के भाव ले करथे। नाऊ समाज के अपन एक महत्वपूर्ण भूमिका भोजन के लिए पतरी देना अउ पूजा-पाठ के लिए तैयारी करना, सांवार बनाना, समधी मन के पाँव धोना होथे।
चुल म तभे आगी सिपचथे जब गोंड घर ले आगी लाय जाथे। अइसे तो हर घर म आगी होथे लेकिन बिहाव के दिन चुल जलाना होथे त गोंड घर ले आगी माँग के लाय के परंपरा हे। ये परंपरा के पाछू कोनो बड़का भाव होही। पुरखा मन ये परंपरा ल बनाय हे येकर पाछू मोला ये लागथे कि ये हर आदिम समाज के सम्मान आय। छत्तीसगढ़ ह एक तरह ले गोंड मन राज आय। काकरो घर म शुभ काम म आगी तब बरही जब राज के प्रमुख समाज के घर ले आगी आही। ये भाव के बिस्तार ल हम ये तरह ले भी देख सकथन। भोजन का सोझे संबंध आगी ले हे। आदिम युग म मनखे मन कच्चा मांस खाय। आगी ले भोजन बनाय के सुरूआत होईस अउ आगी के खोज पुरखा मन करिस। षायद ये आगी माँगना ये भाव के अभिव्यक्ति हो सकत हे।
सुहाग के सबले बड़े निसानी ये चुरी अउ सिंदूर। चुरी तुरकिन घर ले आथे या तुरकिन दीदी आके बेटी ल चुरी पहिरा के आसिरवाद देथे, कहिथे-”बेटी तोर चुरी अमर राहय।” चाहे कोनो जात-समाज के होय, सब तुरकिन ल परनाम करथे अउ तुरकिन ले आसिरवाद लेथे। ये हमर छत्तीसगढ़ी समाज के महत्वपूर्ण आधार ये कि आससिर्वाद दे के ठेका कोनो बड़े जात के मनखे ल ही नइ हे बल्कि जोन भी सुख के काम म भागीदार होही ओहर आसिरवाद देहीे।
बेटी बर सुहाग के सिंदूर माँगे बर उजिरी अउ नवाईन के घर जाथे। उजिरी अउ नवाईन हर सिंदूर के दान करथे अउ सदा सुहागन रहे के आसिरवाद देथे। हर माता-पिता के इच्छा होथे ओकर बेटी सदा सुहागन राहय। पारिवारिक जीवन म सुहाग के दान के अड़बड़ महत्व हे। एक हिसाब ले नारी जीवन के लिए सुहाग ह सबले बड़े महत्व के चीज हे। सुहाग हे, तब सब हे, सुहाग नइ हे, त कुछु नइ हे। सुहाग के दान आम समाज ले माँगना समाज सबके भागीदारी ल स्वीकारना आय अउ शुभ काम म सबके भागीदारी लेना आय।
कोनो समाज अइसन नइ हे जेकर छत्तीसगढ़ के बिहाव संस्कार म परतेक्ष अपरतेक्ष भागीदरी नइ होही। पहली के समय म जब काकरो घर बिहाव होय तब पूरा गाँव म उत्सव के महौल राहय। गाँव के मनखे मन अपन-अपन लाइक काम खोज ले। कोनो ल बुता तियारे के बात नइ राहय। सबो अपन स्वेच्छा ले अपन सहयोग दे। कुम्हार घर ले करसा-कलोरी आये, तब कंडरा घर ले पर्रा-बिजना। मरार घर ले हरदी आ जाय। ये तरह ले सब समाज के भागीदारी नियत रहय अउ सब अपन काम ल सुग्घर भाव ले करय। सही म कहे जाय त छत्तीसगढ़ के भाव के प्रधनता हर ही येकर पहचान आय। यदि छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढ़िया ल सही मायने म जानना हे त ओकर भीतीरी भाव ल पढ़ के देखना चाही। ओकर अंतस म भाव के भंडार दिखथे। इही भाव छत्तीसगढ़ के परंपरा अउ संस्कृति म दिखथे।
गाँव के ये सुग्धर भाव अउ परंपरा ल बचाय के राखे के अवसकता हे। काबर येमा हमर संस्कृति के दर्षन होथे। संस्कृति हर समाज म जोड़थे अउ आनंद के भाव देथे। मनखे हर अपन संस्कृति के सुग्धर पक्ष म गौरव करथे। फेर आज बजारवाद के आय ले संस्कृति के बने-बने बात हर घलो नंदात दिखथे। जोन हर सबो बर चिंता के बात आय। नवा पीढ़ी हर जो पश्चिमी सभ्यता के अंधा अनुकरन करे बर रटपट दँउड़त हे ओमन ल ये बात ल सोचे अउ समझे के अवसकता हे। मनखे हर समान ल तो बिसा सकथे भाव ल नइ बिसा सकय।
बलदाऊ राम साहू
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शंकर नगर रायपुर