छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – देखतेच हौ अउ आदत बना लन

देखतेच हौ

बाती तेल सिराय अमर देखतेच हौ
बुझागे हवय दियना हमर देखतेच हौ
छोड़ किसानी अफसर बनिहौं कहिके
टूरा लटक गीस अधर देखतेच हौ
दूध गईया के मूंह लेगिस पहटिया
मरिचगे बछरू दूध बर देखतेच हौ
चांउर दार के दाना नइहे घर मा
लांघन भूख हे हमर बर देखतेच हौ
घर के भीतर चोर अमाय कर कहिबे
सरमा ला नई खोज खबर देखतेच हौ।

रामेश्‍वर शर्मा
रायपुर

आदत बना लन

हर पीरा सहे के आदत बना लन
हर गोठ सुने के आदत बना लन
सब संग छोड़के चल दिही एक दिन
अकेल्‍ला रहे के आदत बना लन
ये दुनिया म सबबर बखत कम हे
सब बखत म जिये के आदत बना लन
घर रहय बाहिर रहय भलुक
सब माहौल म ढले के आदत बना लन
मया के संग रहिबोन त बड़ा खुस रहिबोन
मन के सब बात केहे के आदत बना लन।

चंपेश्‍वर गोस्‍वामी
भटगांव अभनपुर

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3 Thoughts to “छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – देखतेच हौ अउ आदत बना लन”

  1. दोनों रचनायें अच्छी लगी।

  2. सुंदर गज़लें , सुंदर प्रस्तुति .

  3. बहुत सुग्घर गजल लिखे हे.
    अब तो हमन ल घलोक गजल म हाथ चलाय ल पड़ही लगत हे.

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