जय जय हो धरती मइया

जय जय हो धरती मइया।
तोरेच बल में गरजत हावन
खात खेलत बहिनी भइया।
जय जय हो धरती मइया ॥

बजुर बरोबर बडे़ माथ में छाती अडा़ हिमालय
गंगा जमुना निरमल धारा, सबके जीव जुडावय
विन्ध्य सतपुडा बने करधनी कनिहा गजब सुहावय
महानदी कृष्णा कावेरी गोदावरी मन भावय
ब्रम्हपुत्र नर्मदा ताप्ती ठंव ठंव नांव जगावय
चारों खूंट मां चार धाम के घर घर दरस देवइया।

उत्ती बुड़ती घाट बिराजे उटकमंड अऊ आबू
अरब अऊर बंगाल समुंदर खडे हे आजू बाजू
सतलज झेलम अऊ चिनाब के सिंधु मनोहर राजू
बाग बगइचा, घाट घटोरिया, बने हे सुध्घर साजू
बड़ बलकर हा बन फूल लागे किसमिस मेवा काजू
कतको बिपदा आइस तब ले सब के भाग बनइया।

बहिनी के सिन्दुर में हावय भरे कथा बलिदानी
भाई के राखी के सुरता आजादी के कहिनी
धजा तिरंगा मिलय चिन्हारी भारत भाग निसानी
करम देस के धरम देस के भर के मया जवानी
देस हमर हे हमन देस के, सुध्घर अमरित बानी
जबरी भाग हिन्द महासागर के रोज पखारत पइयाँ।

– हेमनाथ यदु



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