ज्ञान रहे ले साथ मा, बाढ़य जग मा शान।
माथ ऊँचा हरदम रहे, मिले बने सम्मान।
बोह भले सिर ज्ञान ला, माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के, धन बल जाथे हार।
लोभ मोह बर फोकटे, झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन, खोजत फिरथे राय।
ज्ञान मिले सत के बने, जिनगी तब मुस्काय।
आफत बेरा मा सबे, ज्ञान काम बड़ आय।
विनय मिले बड़ ज्ञान ले, मोह ले अहंकार।
ज्ञान जीत के मंत्र ए, मोह हरे खुद हार।
गुरुपद पारस ताय जी, लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे, मूरख ए सिरतोन।
बाँट बाँट के ज्ञान ला, करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले, गुरुपद पंकज जान।
अइसन गुरुवर के चरण, बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले, मेटय सब अँधियार।
जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को (कोरबा)
बहुत बढ़िया भाव, छंद बन्धन। बधाई हो