दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे ।
चोरहा ला उकसावथे , एकड़ा ला रोवावथे ॥
बुराई संग जूझके , अंगना म तोर मर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म दिया बन के बर जतेंव ॥
गरीबी हमर हट जतिस , भेदभाव गड्ढा पट जतिस ।
जम्मो गांव बस जतिस , सहर सुघ्घर सज जतिस ॥
इंखर सेवा करके , महूं घला तर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
पिछवाये मन संघर जतिन , अगुवाये मन अगोर लेतिन ।
बूड़े मन उबर जतिन , उलझे मन संवर जतिन ॥
किसान के अंग ले , पछीना बन के निथर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
काम करइया मंडल हे , कोढ़िहा बर दंगल हे ।
पिरथी म ईमानदार बर , सबो दिन मंगल हे ॥
मजदूर मन बर , गुरतुर आमा बन के फर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
तोर कोरा हे गाद हरियर , तोर दूध हे अबड़ फरियर ।
तोर पांव म चढ़ावत हंव , में अपन मुड़ के नरियर ॥
सिपाही मन के रद्दा म , धुर्रा बन के बगर जतेंव।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
भाखा नई हे अतका सुग्घर रचना हवय गजानंद जी के
देवांगन जी आपके रचना बहुते सुग्घर लागीस।
येकर बर आप ल बधाई।