धरनहा – पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र के गीत

तोर भोली सुरत मोला निक लागे रे, मोला निक लागे ।

हरियर हरियर लुगरा पहिरे चूरी कारी कारी
धीरे धीरे आवत रहे बोझा धरे भारी
तोला देखेंव तभे ले मोर सुध भुलागे ।
झिमिर झिमिर पानी बरसै चलथे पुरवाई
तोरेच सुरता आथे कईसे करौं भाई
तोर बिना मोला कईसे सुन्ना सुन्ना लागे ।
ताना देबे गारी देबे तोरेच कोती आहौं
सबे कुछु सइहौं टूरी मारो घला खाहौं
हांथ जोडे खडे र‍इहंव तोरेच आगे ।
ददा छोडेव दाई छोडेंव छोडेंव अपन भाई
तोरेच खातिर घूमत रहिथंव नदिया अमराई
परे रहिथंव कदम तरी देबी के आगे ।
काल बिहिनिया कहे रेहे पीपर तरी आहौं
तोला उहें खोजत रेहेंव अब नई पतियाहौं
काबर कहिके मोला तैं घर म सूत भुलाये ।

पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र

Related posts

One Thought to “धरनहा – पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र के गीत”

Comments are closed.