अभीन के समे हॅ बड़ उटपटॉग किसम के समे हे। जेन मनखे ल देख तेन हॅ अपन आप ल उॅच अउ महान देखाए के चक्कर म उॅट उपर टॉग ल रखके उटपटॉग उदीम करे मा मगन हे। ंअइसन मनखे के उॅट हॅ कभू पहाड़ के नीचे आबेच नइ करय। आवस्कता अविस्कार के महतारी होथे ए कथनी ल मथानी म मथके अइसन मनखे मन लेवना निकाले बर गजब किसम किसम के उदीम करत रहिथे। मिहनत करइया मन के कभू हार नइ होवय सही बात घलो ए। इन मन हॅ आजकल अहसनेच एक ठन नवा जिनिस के अविस्कार करे हवय – नकाब के। आजकाल ए नकाब के चलन अतेक बाढ़ गे हे के पूछ मत। थोक बहुत करिया गोरिया जइसे भी होय पूॅजी के बेवस्था हो जतिस ते ठोक बजाके एक ठो नकाब फेक्टरी खोले के मोरो बिचार चर्रावत हे। अभी ओकरे चक्कर म दू नंबरी अउ बेइमान चिटफंडिया बेंक मन के जुगाड़ तलास म लगे हॅव। ए नकाब हॅ बड़ काम अउ कमाल के चीज हे रे भाई। नकाब लगाए के बाद मनखे के जम्मो बत्तीसी छत्तीसो घंटा मुॅहू ले बाहिर निकलके जगमगावत रहिथे। माने उॅकर बीसो अंगरी बत्तीसो दॉत घीव म बूड़े रहिथे। वोह हमेसा बने ठने हॉसत मुसकियावत रहिथे। मनखे हॅ मनखे नइ रहि जाय। हाथी लहुट जाथे। हाथी के दॉत खाए के अलग अउ देखाय के अलग। फेर एमा ऐके ठन अड़चन होथे के एला हर मनखे नइ पहिर सकय। केहे के मतलब हाथीच असन जबर छातीच वाले मन हॅ अइसन खाए के अउ देखाए के अलग अलग किसम के दॉत रख सकथे। भइया हमर तुॅहर सॅही मरहा खुरहा मन अइसन कहॉ कर सकथन। हमन ल उपर वाले हॅ चेहरा म फभन के लइक नाक अउ थोक बहुत आब (चमक) देहे त फोकट के नकाब के खरचा अउ देखावा के खुवाब काबर देखन। करना चहिबो तभो हम नइ करे सकन। थोथना म नाक अउ चेहरा म सुघ्घर आब होते हुए घलो नाकाम रहिथे एह आम आदमी के पहिचान होथे। आम आदमी हॅ नकाब के बात ल खुवाब म घलो नइ सोचे सकय। ए खुवाब हॅ आम आदमी ल खखोल चाब के ओकर फोकला ओदार देथे। जेकर चाबे अउ दाबे ले मुर्रियाए आदमी के जिनगी भर रूवॉ नइ जामय। जेन मनखे हॅ जनम के नकटा कुटहा होथे अर्थात जेकर नाक (इज्जत ) नइ होवय अउ चेहरा म थोरको आब नइ होवय उही मनखे मन ल नकाब के जादा जररत परथे। बड़ कमाल के चीज हे रे भाई ए नकाब घलो हॅ। नकाब पहिरे के बाद नकटा मनखे मन के घला नाक जाम जाथे अउ डोंगरी पहार कस उरभट उबड़ खाबड़ थोथना म घलो नवाबी रोवाब छा जाथे। दरअसल कतको मनखे बड़ छिछलाहा महत्वाकांछी सुवारथी अउ उच्च किसम के लबारी मिलवट बेइमान होथे। अइसने मनखे मन बर गजब अउ बिकट नकाब के जररत परथे। आम आदमी जिनगी भर काम करत नकामे रहिथे त अइसन बइमान अउ नकटा मनखे मन बिगर काम करे घला कामयाब होके खास मनखे हो जाथे।अब तुम कहिहव के आम अउ खास तो समझ में आ गे फेर ए आदमी अउ मनखे कइसे होइस। आदमी ए सेती काबर के वोह अभी ले आदम जुग के सोचथे करथे अउ रहिथे। तब ले अब तक आमा बरोबर चिचोर के गोही कस फेंक दिए जाथे तेकर सेती आम आदमी। मनखे एकर सेती काबर के उॅकर मन के पॉख जाम गे हे। अउ वो मन अपने मन के सोचथे करथे अउ उड़त रहिथे। नकाब के भरोसा नाक अउ आब लेके चकाचक रहिथे अउ हॉस हॉस के जीथे। जिनगी के हर परीक्छा ल नकाब के रोवाब के भरोसा पास हो जाथे तेकर सेती खास मनखे।
एक आदमी एक झन तस्मा लगाए मनखे ल देखावत दूसर आदमी ल कहिथे – गोरिया चेहरा म करिया तस्मा का फभथे यार। एकर गोल चेहरा म तो अउ गजब खुलत हे। दूसर आदमी कहिथे – सिरतोन कहिथस फेर ए मनखे ल फभत भले होही खुलत थोरको नइ हे। अउ उल्टा तोपावत ढॅकावत हे। आम आदमी पैदाइसी जगजकहाच होथे। अकचका गे। जइसे जइसे बेरा के पल सरकत गइस ओकर मुॅह सुरसा कस फराते गइस पूछथे – काबर ? अरे नइहे साले हॅ दिखत के साम सुन्दर पादे म ढमक्का हे। कइसे गा ? ए मनखे हॅ न अतका बइमान अउ कॉइया हे के पूछ मत। तोर बड़े बड़े अटके सटके काम ल चुटकी म निपटा देहॉ कहिके मीठ मीठ गोठियावत तोर गठरी ल छोरवा लेही अउ अपन हॅ गठिया के अॅटियावत रेंग देथे। काम के न काज के दुस्मन अनाज के। जेन मनखे हॅ तोर ले बइमानी करे हे तोला दगा देहे उही मनखे हॅ तोला दुबारा मिलही त कइसे नजर मिलाही। ऑखी हॅ मनखे के सुभाव ल वोकर काइयॅई अउ अच्छई सब ल फरिहा के देखा देथे। ए मनखे हॅ न नीचट छोटे ऑखी के हरे। अपन नीयत के खोट ल लुकाए छिपाए खातिर करिया तस्मा लगाए रहिथे जाने। बुरी नजर वाले तोर तस्मा काला।तोर सन बइमानी करे होही त तोरे संग भर नजर नइ मिला सकही अउ बॉकी सब सन थोरे अइसे करे होही। अरे नही एकर रग रग म बइमानी भरे हे। कदम कदम म नीयत खोरी धरे हे। बिन लबारी के गोठियावय नही , बिन बइमानी के खावय नही। अरे हम तो समझत रहेन के एह फेसन ए। हूॅह !! कोनो फेसन नोहय जी अइसन मनखे हॅ बइमानी अउ भस्टाचार के टेसन होथे। देखत नइहस आजकाल के टुरामन नकाब बॉधे अइसे फटफटिया उड़वाथे के चिन्हाबे नइ करय चोर ए के ढोर ए। टुरी टुरा मन नकाब बॉधे कहॉ कहॉ के चक्कर लगाके शक्कर चॉट आथे अउ घर वाले गुड़ गुड़ करत रहि जाथे। गुरू गुरे रहिगे अउ चेला शक्कर होगे। ए आय नकाब के सुघ्घर पोठ अउ रोठ उदाहरन। नकाब माने एक कारसैली । नकाब माने काम निकाले के तरीका । एक नवा योजना जेला सुध्ध सात्विक अउ साहितिक भाखा म फण्डा या हथकंडा कहि सकथन । एला सुत्र के रूप म अइसे घलो कहि सकथन – फण्ड सफाई के फण्डा । सफाई के बहाना कचरा बगराओ झाड़ू लेके फण्ड सफाई करो अउ चकाचक फोटू खिंचवाओ। गु….उ…ड साइनिंग ! माने तस्मा के चमक म सामने वाले ल चकमा दे, चमका अउ तस्मा के तरी तरी जुड़े जुड़ खुद चमचम दबा। त आवव चलव सब जुरमिल अपनावन ए फण्डा पहिर के नकाब गाड़न बुलंदी के झण्डा।
धर्मेन्द्र निर्मल
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One Thought to “नकाब वाले मनखे”
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बढिया परिहास लिखे हावस ग , धरम भाई । मजा आ गे । फेर महूँ हर अपन मुँह ल घाम म तोप लेथवँ ग !