नमस्कार के चमत्कार

हमर पुरखा-पुरखा के चलाय मान-सम्मान परमपरा मा सबले जादा एक दुसर के अभिवादन ला महत्तम दे गे हावय। ए परपपरा हा आज घलाव सुग्घर चले आवत हे फेर चाहे एखर रकम-ढकम हा बदलत जावत हावय। हमन ए अभिवादन परमपरा मा देखथन के एक दुसर ला नमस्ते या नमस्कार करथन फेर एखर का अरथ हे सायदे जादा झन मन जानथन। आवव आज ए लेख के माधियम ले जाने के परयास करबो के अभिवादन मा नमस्ते कहे के का मतलब हावय।
हिन्दू धरम सास्त्र मन के हिसाब ले ले अभिवादन के कुल पाँच परकार होथे अइसे कहे जाथे। एमा सबले परमुख हे नमस्ते या नमस्कार। नमस्कार ला तो कई परकार ले देखे अउ समझे जाथे। संस्कृत सब्द के रुप मा एखर अरथ ला अइसन रूप मा समझे जा सकथे:- नम:+असते। ए मेर नम: के अरथ होथे नव गे, झुक गे अउ असते के अरथ होथे वो मुँङी, वो सिर जौन हा गरब अउ गुमान ले भरे हे। एखर मतलब इही होथे के मोर अहंकार ले भरे सिर हा आप मन के आगू मा नव गे, झुक गे। नम: के एकठन अउ अरथ अइसन हो सकथे के न+मे यानि के मोर नहीं सब आपके हे।
अभिवादन के पाँच परमुख परकार अइसन हे।
1- प्रत्युथान- ककरो सुवागत मा उठ के खङा हो जाना।
2-नमस्कार- दुनो हाँथ जोर के सत्कार करना।
3-उपसंग्रहन- अपन ले बङे-बुजुर्ग अउ गुरुजी मन के पाँव परना।
4-सास्टाँग- पाँव, माँङी, पेट, मुँङ अउ हथेरी के बल भुँइयाँ मा सुत के सम्मान करना।
5- प्रत्याभिवादन- अभिनंदन के अभिनंदन ले जवाब देना।

ए पाँच परकार के अभिवादन पुरखा-पुरखा ले चले आवत हावय। धीरे-धीरे एहू मन हा बिदेसी परेम के कारन नंदावत जावत हे। आजकाल हमन हा पयलगी, प्रणाम अउ पाँव छुवे ला भुलावत जावत हन। एखर जघा मा हाय, हलो, गुडमारनिंग अउ गुड नाईट कहे ला धर ले हन। अइसन सब्द मन के अरथ अउ अनर्थ कुछू काँहीं के पता नइ चलय। बस एक दुसर के देखा सीखी मा नकल करत चले जावत हन। पता नहीं ए नकल संस्कीरति हा हमला कहाँ अउ कती ले के जाही।
पाँव, पयलगी करे ला छोंङ के माँङी अउ जाँघ ला छु के छाती मा हाँथ लगाथें। अइसन करनी हा बङ अलकर लागथे देखे भर मा। ए सब बिदेसी फेसन के परभाव हरय जौन हमर पुरखा के पबरित संस्कीरति ला पाछू धकेले के उदिम हरय। नमस्कार के जघा मा सरी संसार भर मा हाँथ मिलाय अउ हलाय के उटपटांग संस्कीरति के चलन हा बाढत हावय। हमर भारत भुँइयाँ हा घलाव ए छूत के बेमारी ले नइ बाचे हे। चितरी कस चपलत हे हमर नमस्कार संस्कार के सोनहा फसल ला।
नमस्कार सब्द हा संस्कृत के नमस सब्द ले जनमे हावय जेखर अरथ होथे ए आत्मा हा दुसर आत्मा के आभार परगट करना। नमस्कार करे के सइली भले जुन्ना होगे हावय फेर एखर पाछू मा छुपे बैज्ञानिक रहस्य बहुते हावय। हमन जब भी अपन दुनो हाँथ ला जोर के नमस्कार करथन ता अपन छाती के आगू मा जोरथन जिहाँ अनाहत चक्र इस्थापित होथे। ए चक्र हा मया, परेम अउ दया ला उजागर करथे जौन हा हमर संपर्क भगवान ले कराथे। एखर सेती नमस्कार के समय ए हाँथ जोरे के प्रक्रिया ला पूरा करना चाही। अइसन करे ले मनखे बीच मा मनमोटाव हा दुरिहाथे अउ मया-परेम हा बाढथे। नमस्कार करे ले हमन मनखेमन के चहेता तो बनबोच फेर हाँथ जोरे ले भगवान के घलाव दुलरवा बने के मउका मिलथे। एखर सेती दुनो हाँथ जोर के सादर नमस्कार करना चाही।
नमस्कार करे के सहीं तरीका- सोज खङे होके अपन दुनो हाँथ ला एक सीध मा लान के साँटना चाही। अंगरी मन हा एक सँघरा जुङे रहय अउ अंगठा हा थोरिक दुरिहा छट्टा मा रहय। धीर लगा के अपन दुनो जुरे हाँथ ला अपन छाती के तीर मा लान के नमस्ते कहत, बोलत अपन मुँङ ला थोरिक नवाना चाही।

नमस्कार मन, बचन अउ सरीर ए तीनों मा से कोनो एक ठन माधियम ले करे जाथे। नमस्कार करत समे हथेरी ला दबाय ले या फेर जोरे ले हिरदे चक्र अउ आज्ञा चक्र मा सक्रियता आथे जेखर ले जागरन बढथे। ए जागरन ले मन सान्त अउ आत्मा मा परसन्नता आथे। एखर संगे-संग हिरदे मा ताकत आथे अउ डर-भय हा पल्ला भागथे। हमर देस मा नमस्कार करई हा एक मनोबैज्ञानिक पद्धति हरय। नमस्कार करत समे हमन हाँथ जोर के जोरदरहा बोल नइ सकन, जादा गुस्सा नइ कर सकन अउ एती-तेती भाग नइ सकन। नमस्कार,पयलगी करे ले हमर आगू मा खङे मनखे हा अपनेच आप बिनम्र हो जाथे। हमर भाव-भजन ला देख के वोहू हा एकदम सोजबाय सिधवा बन जाथे
नमस्कार करे के महत्तम अउ फायदा- नमस्कार या फेर पयलगी करई हा एक ठन मान-सम्मान हरय, एक संस्कार हरय पाँव परई हा एक यौगिक प्रक्रिया हरय। अपन ले बङे-बुजुर्ग मन ला हाँथ जोर के नमस्कार, प्रणाम करे ले घलाव बैज्ञानिक महत्तम हावय। नमस्कार के अध्यात्मिक महत्तम घलाव हावय। जेवनी हाँथ अचार याने धरम अउ डेरी हाँथ विचार याने दरसन के होथे। नमस्कार करत समे जेवनी हाँथ अउ डेरी हाँथ ले जुङथे। देंह के जेवनी पार इङा अउ डेरी पार पिंगला नाङी हा होथे। अइसन मा नमस्कार करत बखत इङा हा पिंगला के तीर मा पहुँचथे अउ मुँङी हा सरधा ले नव जाथे।

नमस्कार करत समे हाँथ जोरे ले सरीर के लहू-रकत,नस नस मा सुग्घर प्रवाह आ जाथे। मनखे के आधा सरीर मा सकारात्मकता के समावेस हो जाथे। कोनो ला प्रणाम करे ले आसिरबाद मिलथे अउ उही आसिरबाद हा हमर बिपत ले जुझे बर बल बनथे। आसिरबाद हा धन-दोगानी, रुपिया-पइसा मा नइच मिलय। ए आसीस के अनमोल खजाना हा सरधा ले मुँङी नवा के, हाँथ जोर के पयलगी करे ले फोकटिहा मा मिलथे। काखरो से मिलत समे हमला अपन दुनो हाँथ एक सँघरा जोर के नमस्कार करना चाही। रोज कोनो ना कोनो मनखे ले हमन मिलथन या फेर हमर ले मिलथें, जेला हमन नमस्कार करथन या फेर वो हा हमला नमस्कार करथे। कभू भी अपन एक हाँथ ले नमस्कार नहीं करना चाही ना अपन घेंच ला हला के नमस्कार करना चाही। हमला हमेसा सदा दुनों हाँथ ला जोर के ही नमस्कार करना चाही एखर ले हमर आगू वाला मनखे के मन मा हमर प्रति अच्छा भावना के बिकास होथे। नमस्कार ला औपचारिक अभिवादन नइ समझना चाही। अइसन ढंग ले करे गे नमस्कार के चमत्कार हमन ला अपने आप दिखही। नमस्कार हा हमर भारतीय संस्कार के अधार हरय, एखर अस्तित्व ला बचाय के उपाय हर हाल मा करना हमर पहिली कर्तब्य हरय। हमला हाय हलो ला छोङ के दुनो हाँथ जोर के नमस्कार करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
परसुराम वार्ड भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9753322055

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