नारायण लाल परमार के कबिता

मन के धन ला छीन पराईस
टूटिस पलक के सीप
उझर गे पसरा ओखर
बांचे हे दू चार
कि अखिंयन मोती ले लो ।
आस बंता गे आज दिया सपना दिखता हे
सुन्ना परगे राज जीव अंगरा सेंकत हे
सुख के ननपन में समान दुख पाने हावै
चारो खुंट अधियार के निंदिया जागे हावै
काजर कंगलू हर करियायिस
जम चौदस के रात
बारिस इरखा आगी में
बेंचै राख सिगार
सहज सुरहोती ले लो ।
कि अंखिंयन मोती ले लो ।
नारायण लाल परमार

Related posts