परोसी के परेम

डोकरी-डोकरा के एक-एक सांस नाती नतरा ल देख के भीतर बाहिर होथे। जानों मानो ऊंकर परान नाती-नतरा म अटके रहिथे।’
‘ये दुनिया मया पिरित म बंधाय हे तभे ये जुग ह तइहा-तइहा ले चले आत हे। एक सादा सुंतरी म गूंथे रंग-बिरंग के फूल कस सरमेट्टा गुंथाय हे। मया बर जात लगे न कुजात। घर-परिवार, पारा-परोस, गांव मुहल्ला सब नत्ता-गोत्ता मानत एक दूसर के सुख-दुख म काम आवत, अपन करज निभावत, हंसी-खुसी से जियत रेहे के सिक्छा देवत रहिथे ये मया-परेम। जिंकर हिरदे म जतेक परेम हे तेला कभू आंसू बोहाके, कभू ठट्ठा दिल्लगी करके हांसत-गावत परगट करथे। कभू मुसीबत परे म मदद करके, कभू सेवा-जतन करके। जइसे पथरा म पानी ओगर जथे तइसे पथरा से पथरा हिरदे म घलो मया-दुलार परगट होके बोहाथे। काकरो बर कम काकरो बर जादा।’
बिसाहिन अपन अंगना-दुवारी म छरा-छिटका दिस अउ खरेहत-खरेहत परोसी मुहाटी ल तको दू बाहरी बहार दुहूं कहिके बाहरत राहय। सब ले नजर ह छऊरहा-छुरहा बेंस ल भंग-भंग ले उघरा देख के बक खागे अ… ई… एमन तो पंदराही होगे बिहाव नेवता म मइके गे रिहिस। को… न… ह… व आगेव का वो देवन्तीन काहत खरहेरा ल धरे-धरे भीतरी म खुसरिस। बिसाहिन के भाखा ल ओरख के आओ वो बड़े दाई कहिके अपन बइठे पिड़हा ले उठिस अउ आगू डाहन मड़ावत किहिस- ये दे बइठ वो बड़े दाई कहिके पांव-पलेगी करिस। ये दे चांउर निमारत हंव बड़े दाई एकोकन चांउर नइ रिहिस रांधे बर। घर-अंगना दुवारी अरन-बरन बिन गढ़न के दिखत रिहिस तेला लीप बहार के चांउर ल धरे हंव। कतिक बेर आहव वो आरो घलो नइ मिलिस अइसे के दरी टूरी-टूरा मन चटर-चटर गोठियावत रहिथे। तोर दाई भाई मन बने-बने हे वो बिहाव बने निपटिस। हव बड़े दाई सब बने-बने हे। तोला अऊ बड़े ददा ल जोहार भेंट केहे हे दाई ह। जोहार भेंट पहुंचे वो समधिन के गोड़ खजुवाय। बिहाव घलो बने हंसी-खुसी से निपटिस दाई।
कामे आय हव वो। मोटर आधा बीच म बिगड़गे बड़े दाई आजेच बिगड़ना रिहिस रोगहा ल। सरी मंझनिया आय हन बड़े दाई लस खागेन रेंगत-रेंगत। मोटर-गाड़ी अब्बड़ भीड़ चलथे वो बोजी के बोजा, कोचकिच ले गोड़ रखे के जगा नहीं। बर-बिहाव के मारे भीड़ चलथे वो अब्बड़ बिहाव ताय गांव-गांव। कोनो एक कदम रेंगन नहि कथें। लोक्खन के मोटर-गाड़ी उतरगे हे। हमर समे म चार-छै कोस ल रेंगन वो। देवन्तीन अब के जुग म सब ला पदई आ गे हे। बिसाहिन कहिस
चटाचट भोंभरा जरे वो बड़े दाई- गड़ेली-गड़ला मन रेंगन नहीं काहय रोय पदोय। लहर-तरह होगेन पानी पियास के मारे। मोरो एकतरिया रोगहा ह आधा बीच म टूटगे काकर मुंहूं ल देख के निकलेन ते मोटरो पदोइस फेर पनही ह। ले दे के फरिया ल बांध के आ हंव। गांव के सियार म पहुंचेन तब जी हाय लागिस। लइका मन नइ दिखे कहां हे वो। वो दे मार लस खा के सुते हें। अउ बाबू ह। वहू हर टूरी-टूरा मन कर बिन जठना के खोर्रा भुइयां म सुते हे।
दुनों के गोठ बात ल सुनके दसोदा चूंदी-मुड़ी ल खजवात उठिस। दे न रे दसोदा तोर ममा घर के लाड़ू बरा देवव न। अब्बड़ लाड़ू खाय हस का मार चिपरा छूटत हे। ऐं… ठेंगवा ले दिही सिरागे। देखथस वो देवन्तीन तोर बेटी के चाल ल कइसे जिबरावथे, ठेंगवा देखावथे। झन देव न रे रांड़ी, दुखाही। दसोदा भूख लागथे कहिके भुनभुनाय लागिस। मोर कर झन भुनभुना नहिं ते दुहूं बाहरी के मुठियाच मुठिया। जा दाई के पांव पलेगी कर। दसोदा बिसाहिन के टुप-टुप पांव परिस। खुस रा तहूं ल जल्दी सुग्घर दुल्हा मिले, जलदी ससुरार जास कहिके चटाचट चूमा लीस।
जा बेटी मोटरा ल लान। तहूं एकाठन खा के पानी ल पी लेबे तांहले पेट भर जही। बड़े दाई ल घलो दुहूं। बरा सोंहारी म काला पेट भरही वो चल बेटी हमर घर ले बासी ले आबे। दसोदा ओतकी बेर मोटरा ल लान के परछी म पटक दिस- हाय दाई यहा दे चांटी चाब डरिस। टूरी कलबला के रोय लागिस। झर्रा बेटी झर्रा वो। ये रोगहा चांटी मन के मारे कहीं जिनिस नइ बांचे वो कहिके मोटरा ल छोरिस देखिस ते चांटीच चांटी। जा अंगना म पटक वो चरचर ले घाम म मरही रोगहा मन कहिके बिसाहिन कथे। महूं सूते रेहेंव बड़े दाई महूं ल चाबिस तभे तोर नींद उमचगे। मोटरा डाहन चेत नइ कर पाएंव चांटी चबई म दसोदा के रोवई ल सुन के दीनू अउ ओकर ददा घलो उठगे। मदन ह बड़े दाई के पलगी करिस। दीन ऊ… ऊं… करे लागिस। ले आ बेटा में पालेथंव चल तुंहर बर बासी लानबो कहिके बिसाहिन हांत लमइस। मया के भाखा अउ मयारू कोरा ल कोन भुलाही। दीनू बड़े दाई के कोरा म समागे। बिसाहिन पोटार के दूनो गाल चल चटाचट चूम डारिस। ममा घर गे रेहे बेटा।
‘डोकरी-डोकरा के मया अऊ दुलार अतिक होथे जेला सियान मन कथे मूल ले जादा ब्याज मयारू होथे। बड़ अभागा हे वो लइका मन जे अपन बबा डोकरी दाई के मया नइ पाइन। डोकरी-डोकरा के एक-एक सांस नाती नतरा ल देख के भीतर बाहिर होथे। जानों मानो ऊंकर परान नाती-नतरा म अटके रहिथे।’
बिसाहिन दीनू ल पाके अपन घर गिस। उठ न डोकरा तहूं अर्रा के सूते हस नाक ह घटर-घटर बाजथे। देख तो कोन आहे कहिके किहिस अउ दीनू ल ले बेटा मैं बासी हेरथंव कहिके वोला बइठार दिस। दीनू के हुंक-हुंक ल सुनके डोकरा आंखी ल उघारिस- अरे आगेस बेटा आ… आ… कहिके देवलाल अपन चित्ता सुते पेट म बइठार लिस। कइसे रेमटा होगेस जी कहिके रेमट ल पोंछिस। डोकरा दीनू ल पाके गदगद होगे। पहिली तो वोला सपना देखे असन लागिस। अब सउंहत देख के जइसे अटके परान ह लहुट के फेर आगे। ये पंदरा बीस दिन ल डोकरा कइसे बितइस तेला भगवाने जाने। घर कुरिया बंबासी लागे। खाय त कौंरा उठाय ल नइ भाय। कहां गे रेहेव रे- ममा घल। का होइस जी- छादी। काकर जी ममा अउ मोछी के।
ले मैं जाथंव डोकरा लइका मन भुखाहे कहिके बासी अउ लाखड़ी के सुक्सा भाजी ल कटोरा म धरके दसोदा घर आगे। डोकरा घलो दीनू के पीठइहां चढ़ा के चल बेटा हमूं मन तुंहर घर जाबो कहिके आगे। तोर बबा बर बोरा ल जठा वो दसोदा कहिके देवन्तीन उठिस अउ पलेगी करिस- जय हो तोर बबा के पांव पर ले बेटी दसोदा बोरा ल जठइस अउ बबा के पांव परिस- अनंद रहो बेटा। दीनू दूद पीए बर फेर हुंक हुंकइस- एखर तो फकत दूद पीयई वो एकर चिथई के मारे हलाकान होगेंव। जा बेटा वो दे दीदी बासी खाथे तहूं खाबे। दीनू ले दे के मान गे। दूनों भाई-बहिनी बासी खाए बर भिड़गे।
ये दे बड़े दाई ये दे ह ढेंड़हिन लुगरा अउ ये दे मन नेंग जोग के लुगरा ये। मेंहा मोर बहिनी के ढेंड़हिन रेहेंव कहिके देवन्तीन ह लुगरा मन ल देखाय लागिस। ले बने हे बेटी बने हे। देवन्तीन चार ठन लाड़ू बरा ल बड़े दाई ल धरइस अउ एक ठक लुगरा ल वोकर खांद म डारत कहिथे- ये दे बड़े दाई मोर दाई ह तोरो बर जोरे हे। अइ हमर बर काबर जोरतिस वो वहू समधिन ह।
देवन्तीन मोटरा ल फेर खोधिया के देखे लागिस। बड़े ददा बर तो घलो मोर दाई ह एक ठक पंछा जोरे रिहिस मने मन खोजे लागिस मदन ल पूछिस एक ठन पंछा जोरे रिहिस ते कहां हे मोटरा म नइ दिखत हे। झोरा म होही वो। घर भीतरी खुसरिस झोला ल निकाल के देखिस अई स ये दे हावे वो मिलिस कहिके बने सुग्घर घिरिया के देवलाल बड़े ददा के खांद म डारिस अउ पांव परिस।
डोकरा बर जोरतिस ते जोरतिस मोर बरकाबर जोरतिस वो डोकरा देवलाल के आंखी डबडबागे।
बेवहार ताय बड़े ददा मोर कहिके दीसे- दीनू के बबा बर घलो जोरथंव बेटी। मोर नाती नतरा मन ल पावत पोटारत रहिथे बेटी अउ मोरो घर तो आखरी बिहाव ये अउ कब लुंहू दुहूं। ये ले लेग जा।
लेन चहा पानी बना न वो मदन ह जमहावत कथे बड़े दाई बड़े ददा घलो अभी म हावे। दूद तो नइए जा बेटी गिलास ल धर ले लानबे। देवलाल कथे- ले न वो लइका ह काकर-काकर घर छुछवाही कोरा चाहा पी लेबो बिया ल। चार आना के दूद अउ बारा आना के पानी पंछुहा। वो दिन मही लाय रेहेंव वो देवन्तीन बने कोचई पत्ता के इड़हर बनाहूं सउंख बुतागे। तेकर ले बने राहय हमर आमा खोइला निते अमली के कुरमा बने चर्रस ले लागथे।
का करबे बड़े-दाई यहां माहंगी के जबाना म खोजे दूद दही नई मिले। जम्मो दूद दही ह सहर नगर के होगे मार बांगा बांगा डब्बा-डब्बा धर के जाथें।
अब तो अइसन होगे वो का कहिबे हमरे गांव के साग-भाजी हमरे मन बर नोहर होगे। सहर ले जथे उहां ले कोचिया मन फेर हमर गांव के हाट- बाजार म लान के दुगुना-तिगुना भाव में बेचथे। रुपिया के तिनिस ल चार-छै रुपिया म लेथन। अइसे गोठियावत-गोठियावत चहा-पानी बनगे। देवलाल चहा-पानी पी के दीनू ल अपन खांद म बइठार के खेलाय बर निकलत खानी कहिथे- तइहा के बात ल लेगे बइहा।
बिसाहिन कथे ले देवन्तीन महूं जाथंव आगी बारे के बेरा घलो होवत हे। ले न आज भर हमर घर खा लेहू बड़े दाई सब झन एके जगा खाबो। ले जल्दी-जल्दी संजकेरहा रांध डारबे वो कहिके मदन घलो संगी-संगवारी मन संग मिले खातिर निकल गे।
बिसाहिन अउ देवलाल निरबंसी नई रिहिस उंकरो एक बेटी अउ एक्के बेटा हे। बेटी ससुरार चल दे हे बड़ अनंद से रहिथे। तीजा-पोरा म मड़ई मेला म आ जथे अउ अपन दाई ददा के दरसन-परसन करके फेर लहुट जथे। बेटा कमाय-खाय बर पंदरा-बीस बछर होगे बहू ल धरके अइसे निकलिस ते सहरे के पुरतिन होगे। साल दू साल म देवारी के देवारी दू चार दिन बर उतरथे। मउका-मउका म चिट्ठी चपाती अउ कोरा दू कोरी रुपिया ल भेज देथे। का भरथे का सरथे दाई-ददा के सोर लेवइया कोनो नइए। नाती नतनीन मन बड़े-बड़े होगे।
‘सहरिया लइका का जाने बबा डोकरी दाई के मया अउ दुलार।’ उंकर तीर म नइ ओधे डोकरी-डोकरा तरस जथे। जब ले दसोदा के जनम होइस तब ले देवलाल बबा बनगे अउ बिसाहिन डोकरी दाई। ऊंकरे मया म सुतत जागत मोहाय रहिथें। मुंधरहा होइस, बेरा पंगपंगइस ते गै सोवा परत ले। बबा संग खेलना-कूदना, नहाना खोरना, संगे म बइठ के भात-बासी खाना। बबा घलो अपन आंखी ले ओलम नई होवन दे। दू चार दिन बर तीजा-पोरा छट्टी, मरनी म गिस ते डोकरा-डोकरी के परान छुटिस। कब आही वो दीनू मन डोकरा अपन ले पूछथे, डोकरी अपन ले अउ रद्दा देखत निहारत ऊंकर बूढ़ात आंखी म अंधरउटी छा जथे।
आ रे चंदा, बाबू ल दूध भात दे टुप ले। कभू राउत मन के दोहा पार के लइका ल नचाना, कभु सुवा ददरिया, कभू रघुपति राघव राजा राम, गावत खंझेरी बजावत, कभू अटकन मटकन दही चटाकन, अथल के रोटी पथल के धान धर बुची लंगड़ी, घर बुची कान कनघुर्र… खेला कुदा के डोकरा थोरिक हांस लेथे अपन मन ल मड़ा लेथे।

देवेन्द्र कुमार सिन्हा ‘आजाद’
बोरई दुर्ग

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One Thought to “परोसी के परेम”

  1. Santosh Dhruw

    Azad ji Aap man me kahani LA pad man ha gad- had hoge. Kahani LA pad me Moro dai au baba me Maya au dulaar yaad aage Ankhi le Aansu Aage. Dhanyawad.

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