पितर पाख के असल मान राख : जीयत मा डंडा-मरे मा गंगा

सावन के लगते साठ वातावरन हा भक्ति भाव ले भर जाथे। मन मा सरद्धा बतरकीरी कस जाग जाथे। तीज तिहार के घलो रेला-पेला लग जाथे। सरी देवी-देवता मन के आरी-पारी लग जाथे अउ संग मा पुरखा मन के सुरता अउ सरद्धा समे आ जाथे। भादो महीना के पुन्नी ले शुरु हो के कुँवार महीना के अँधियारी पाख के आवत ले कुल सोला दिन के सुग्घर समे हा पितर पाख कहाथे जेमा पुरखा मन के मान-गउन करे के बखत रथे। ए पाख हा सरद्धा ले सुरता करे के सुग्घर समे होथे। ए पितर पाख ला कनागत घलाव कहे जाथे। इही समे मा सूरुजनारायन हा कन्या राशि मा चले जाथे एखरे सेती ए समे ला कनागत कहे जाथे। अइसन कहे जाथे के कुँवार के अँधियारी पाख के इही समे मा यमराज हा अपन इहाँ ले पितर मन ला सुतंत्र कर देथे के पिरिथिवी मा जा के अपन परवार मन के पिण्डदान ला प्राप्त कर सकँय। यमलोक ले पितर मन ए देखे ला परिथिवी मा आथे के उँखर लइका मन हा कतका सुरता करथे। पितर पाख मा कहूँ अपन पितर मन के सराद्ध नइ करय ता पितर मन ला अपन लइका मन के ए करम ले बड़ दुख होय के बात बताय जाथे। पितर पाख मा जेखर पितर सराद्ध ले खुश होथे ओ पितर मन हा अपन लइका मन ला भरपूरहा सुख समरिद्धी के आसीरबाद देथे। जउन पितर पितर पाख मा अपन सुरता नइ करे ले , मान-गउन नइ करे ले रिसा के सराप घलो दे डारथे अइसे कहे जाथे। अइसन बड़े-बड़े गोठ ला सुन के मन हा असमंजस मा पर जाथे। एक डाहर तो पितर मन के मान-गउन उँखर मिरित्यु पाछू करे के बात बताय जाथे ता दुसर डाहर ए बात ला सफा नकारे जाथे। हमर हिन्दू धरम के सबले बड़े पबरित ग्रंथ गीता मा भगवान श्रीकृष्ण जी हा कहे हे के- जइसे मनखे हा अपन जुनहा अंगरक्खा ला तियाग के नवा अंगरक्खा ला पहिरथे वइसे ए जीव आतमा हा तुरतेच जुनहा मरहा शरीर ला तियाग के कोनो नवा शरीर मा समा जाथे। नवा शरीर ला धारन कर लेथे। अगर हमन हा अपन धरम ग्रंथ के बात ला सिरतोन मानथन ता पितर मन के पितर पाख मा यमलोक ले पिरिथिवी मा आये के गोठ हा उचित नइ लागय। जब ये बात हा सिरतोन हे के मनखे के आतमा या जीव हा तुरते नवा शरीर मा समा जाथे ता फेर वो जीव कब, कइसे अउ काबर यमलोक मा रही? वो जीव हा तो तुरतेच नवा शरीर मा समा के इही पिरिथिवी लोक मा नवा जिनगी जीये बर आ जाथे। ए बात अलग हे के हमन ओखर चिन्हारी नइ कर सकन। हमर धरम मा गीता-भागवत के गियान ला सोलाआना सिरतोन मानथँन ता फेर ए हमर पितर मन के मुक्ति के उदिम सिरिफ पितर पाख मा तरपन अउ अरपन ले होही एला बनेच सोचे गुने ला परही।
मोर ए गोठ करे के पाछू काखरो भावना अउ आस्था ला ठेस पहुँचाय के कतई नइ हे। हमर सबले पबरित ग्रंथ भागवत-गीता हा हरय जेखर कीरिया खाके अपन सत-ईमान के परमान देथँन। बात आज गीता के इही गियान के संदर्भ मा हे। गीता मा श्रीकृष्ण हा ए जगा कहे हे के- ए जीव हा ना पइदा होवय, ना जीव आतमा हा मरय, सिरिब चोला हा बदलत रथे। जब गीता अउ गीता के सरी गोठ हा सार हे ता फेर मनखे के जीव आतमा हा कभू मरय नहीं, कभू भटकय नहीं। भूत, परेत, मरी, मसान बन के ना कोनो ला डरवाय ना कोनो ला सताय नहीं। जीव आतमा हा तो तुरतेच नवा सरीर मा अवतर जाथे ता भूत, परेत, मरी, मसान बन के कोनो ला घाले के बखत बेरा इँखर मेर कहाँ रथे!
हमर जिनगी हमर बाप-महतारी के देन हरय। हमर भगवान हमर दाई-ददा हा हरय। इँखर बिन ए जग मा जनम ले के जीना मुसकिल हावय। नव महीना महतारी हा अपन अदरा मा बोह के ए संसार मा जनम देथे। सरी संसार के बिपदा, रोग-राई, जर-बोखार ले बचा के, लुका के अपन करेजा के कुटका ला दाई -ददा मन पाल-पोस के नान्हे ले बड़े करथें। अपन जनमाय नोनी-बाबू बर बाप-महतारी मन हा ए संसार के सरी सुख ला तियागे बर तियार रथें। अपन संतान बर सरी संसार के बनौकी बर सरी संसार के सुख ला, अपन जिनगी ला खुआर करे खातिर दाई-ददा मन सरी बेरा तियार रथें। दाई-ददा मन हा हमन ला अंगरी ला धर के रेंगे ला सिखोथे, हाथ ला थाम के लिखे-पढ़े ला सिखोथे, ए दुनिया मा कइसे सुरक्छित जीना हे एला सिखोथे, सत अउ ईमान के रद्दा रेंगाथे। छल, कपट, लालच, लबारी, देखावा ले कइसे अपन आप ला बचाना हे ए सरी बात अपन लइका मन ला हर माँ-बाप मन हा सिखोथे। जिनगी जीये के ए सरी रंग-ढ़ंग ला दाई-ददा मन हा अपन लइका मन ला बिन सुवारथ के सिखोथे। हमला अपन गोड़ मा खड़ा होय ला सिखोथे। हमर सुख अउ समरिद्धी सर संसार भर के सरी देवी-देवता मन ला मनाथे, मनौती माँगथे। अपन लइका मन ले बड़ के अपन महतारी बर ए दुनिया मा काँहीं जीनिस हा नइ होवय।




अइसन तियाग, मया, दुलार अउ समरपन के नाँव दाई-ददा हा होथे। इही लइकामन हा जब पढ़-लिख के अपन पाँव मा खड़ा हो जाथे, बर-बिहाव हो जाथे अउ थोरिक पइसा कमाय ला धर लेथे ता अपन तियाग के मूरती दाई-ददा ला तियागे के नवा-नवा उदिम अपनाथें। अपन सरी जिनगी अपन बेटी-बेटा के पाछू मा खुआर करइया दाई-ददा हा अपनेच लइकामन ला बोझा सहीं लागे ला धर लेथे। शरीर ले थके हारे सियान मन हा अपनेच घर मा शैतान समझे ला धर लेथे। जउन समे सियान मन ला सबले जादा सहारा के जरुरत होथे ओही समे मा उँखर औलाद हा उही मन ला बिन सहारा के कर देथे। घर के बड़े बुजुर्ग मन जब मया, दुलार अउ पियार के सबले जादा जरुरत रथे ता उही बखत मा अपनेच परवार मा अपमान अउ तिरस्कार ला पाथे। खाय-पीये ला तो छोड़ एक ठन गुरतुर बोली भाखा बर तरस-तरस के जिनगी जीये बर मजबूर हो जाथे अपने सियान मन हा। सियान मन के अंतस हा रोवत-रोवत कथे के भले हमला खाय-पीये बर झन दँय फेर मूँहू के मीठ बोली मोर लइका एक बेर तो बोल लेतीस।अइसन तालाबेली भरे जींयत बाप-महतारी मन ला इही समे मा अपन पइदा करे औलाद बर पछतानी होथे अउ मूँहूँँ ले एके ठन सरापा निकलथे-तोरो लइका हा तोर हाल मोर हाल ले जादा बेहाल करही।
आज बिकास के जुग मा अपनेच दाई-ददा हा हमला गरु लागे ला धर लेथे। इँखर रहना, खाना-पीना, दवाई-पानी के खरचा हा हमला अकताहा जियाने ला धर लेथे। सियान मन के कोनो सँउख अउ फरमाइश हा हमर बर उपराहा हो जाथे। इँखर देख-रेख अउ सेवा-सटका ले जादा आज हमला रात दिन पालटी अउ घुमई-फिरई मा जादा आनंद आय ला लागथे। का इही बिकास हे जेमा अपन सियान मन बर हमर घर अउ समाज मा कोनो जगा नइ हे? बिदेश मा अपनेच बुजुर्ग मन बर अलगेच (ओल्ड एज होम) के चलन हावय फेर भारत मा घलाव इँखर देखासीखी अउ नकल मा वृद्धाश्रम के संखिया सरलग बाढ़त जावत हे। हमर देश मा घलाव अब – हम दो हमारे दो, दाई-ददा को छोड़ दो, ए नारा ला सिरतो करे मा आज के नवा पीढ़ी मन हा भिड़ें हावय। हमर देश के पहिचान एकमइहाँ चूल्हा अउ बड़का परवार हा आजकाल नंदावत जावत हे। अकेल्ला अकलमुंडा रहे के फेशन बाढ़त हावय। बिदेशी बने के धुन मा अपन-अपन सियान मन ला अधमरा अउ अकेल्ला छोड़त हावँय। सियान मन अपनेच जनमाय लइकामन के दोगलई ले जादा दुखी होथे, अपन बाढ़त बुढ़ापा के दुख-पीरा ले नइ होवँय।




जींयत भर अपन घर के सियान के मान गउन, मया-दुलार नइ करइया मनखे मन हा अपन सियान मन के मरे के पाछू सरवन कुमार बने के प्रयास करथें। जउन समे मा सियान ला सरद्धा के जरुरत रहीस हे ता कोनो पुछाड़ी नइ करीन अउ अब मरे के बाद उही सरद्धा के नाँव मा सराद्ध करथें। हम इही उदिम ला सियान मन के जीयत मा करतेन ता जादा बढ़िया होतीस। अपन बड़े बुजुर्ग के आदर-सत्कार, मान-गउन, पूछ-परख, सेवा-सटका अउ मया-दुलार ला उँखर जीते जी जिनगी भर दीन तभे सिरतोन सरद्धा कहाही। सराद्ध के अर्थ हे अपन सियान मन के सुरता। सियान मन के मरे के बाद सराद्ध के नाँव मा देखावा करना एक सभ्य समाज ला शोभा नइ दय। सियान ला अपन नान्हें लइका जान के अपन संग मा सुख-दुख के संगवारी बनावन। मया पिरित के रंग मा रंगावन, उँखर बाँह ला धर के संग मा रेंगावन। मरे के पाछू सराद्ध के नाँव मा छप्पन भोग हा अबिरथा हे, छलावा हे। एला जीते जी अपन सियान मन ला खवावव अउ खाव जुरमिल के तभे सार्थकता हावय। अइसन करनी ले खच्चित सियान मन के आसीरबाद मिलथे। जिनगी ला सिरतोन जीयत ना कोनो देखावा मा ,ना कोनो छलावा मा जीयव। जिनगी जीये के इही सार हे काबर के काल हमरो पारी हे सियान होय के।

कन्हैया साहू “अमित”
भाटापारा (छ.ग)
9753322055
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