फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक….

(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही थी….)

फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक
खेलत हे नोनी फुदुक-फुदुक….

बिन कपड़ा बिन सेटर के
जाड़ ल बिजरावत हे।
कौड़ा-गोरसी घलो ल,
एहर ठेंगा देखावत हे।
बिन संसो बिन फिकर के,
कुलकत हे ये गुदुक-गुदुक……

कभू गिरथे, कभू उठथे,
कभू घोनडइया ये मारथे।
कभू तो मडिय़ावत ये,
अंगना-परछी किंजर आथे।
कभू-कभू तो जलपरी कस,
पानी खेलथे चुभुक-चुभुक…..

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल – sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 08085305931, 098269 9281

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