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कविता

बसंत पंचमी: नित्यानंद पाण्डेय

आ गय बसंत पंचमी, तोर मन बड़ाई कोन करे
द्वापरजुग के कुरक्षेत्र होईस एक महाभारत
कौरव मन के नाश कर देईस अर्जुन बान मा भारत।
बड़का बड़का का वीर ढलंग गे बीच बचाव ल कौन करें।। 11।
तहूं सुने होवे भारत म रेल मा कतका मरिन मनखे
ओकर दुख ल नई भुलायेन भुईया धसकगे मरगे मनखे।
बरफ गिरे ले आकड़िन कतका, तेकर गिनती कौन करै।। 21।
अर्जुन नई हे अब द्वापर के शब्द ला सुन के मारै बान
कलजुग के अर्जुन लंग नई हे ओ गांडीव तीर कमान।
बान चलावत बया भुलागे, दांवाला कोन शांत करै।। 31।
चारों कती ले देश घेराये, जगह-जगह माँ कांटा हे
राजनीति के हार जीत मा काकर कतका बांटा हे।
तहीं बता अब बसंत पंचमी तोर मान बड़ाई कौन करै।। 4।।
शिशिर लगे सिसियात हे कोईली ठंडा मा कठुवाये,
सेम्हर अभी न फूले संगी मौहा नई कुचियाये।
मलयागिर के पवन महकही तब मान बड़ाई नित्य करै
आ गये बसंत पंचमी तोर मान बड़ाई कौन करै।। 5।।

नित्यानंद पाण्डेय