मोर छत्तीसगढ़ के किसान
जेला कहिथे भुंइया के भगवान |
भूख पियास ल सहिके संगी
उपजावत हे धान |
बड़े बिहनिया सुत उठ के
नांगर धरके जाथे |
रगड़ा टूटत ले काम करके
संझा बेरा घर आथे |
खून पसीना एक करथे
तब मिलथे एक मूठा धान |
मोर छत्तीसगढ़ के किसान
जेला कहिथे भुंइया के भगवान |
छिटका कुरिया घर हाबे
अऊ पहिनथे लंगोटी |
आंखी कान खुसर गेहे
चटक गेहे बोड्डी |
करजा हाबे उपर ले
बेचा गेहे गहना सुता |
साहूकार घर में आ आके
बनावत हे बुता |
मार मार के कोड़ा में
लेवत हाबे जान |
मोर छत्तीसगढ़ के किसान
जेला कहिथे भुंइया के भगवान |
भूख पियास ल सहिके संगी
उपजावत हे धान |
मोर छ.ग.के……………….
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा)
मो.-8602407353
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2 Thoughts to “भुंइया के भगवान”
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बहुत सुघ्घर रचना हे संगी आपमन ला हार्दिक शुभकामना।
हमर रचना ल पसंद करेव एकर बर धन्यवाद हेमलाल साहू जी |