मया-दुलार:राखी तिहार

मया, दया अउ दुलार के चिन्हार राखी तिहार। राखी तिहार ला रक्छा बंधन के नाँव ले हमर देश भर मा सावन पुन्नी के दिन मनाय जाथे। राखी तिहार हा भाई-बहिनी के तिहार माने जाथे। ए दिन हर बहिनी मन हा अपन भाई मन के कलई मा राखी बाँध के ओखर लम्बा अवरदा के असीस माँगथे। एखर बदला मा भाई मन हा अपन बहिनी के हमेसा रक्छा करे के वचन देथे। रक्छा के बचन के संगे-संग अपन-अपन हिसाब ले बहिनी मन ला उपहार दे के तिहार राखी तिहार हा हरय। ए तिहार मा सबसे बड़े बात भाई-बहिनी के मया, दुलार अउ पियार। कोनो मेर रहय, कतको दुरिहा रहय अउ कोनो रूप मा रहय भाई ला बहिनी के राखी के अगोरा रथे।
राखी तिहार कोन सुरु करीस?- – राखी तिहार ला भाई-बहिनी के तिहार हमन हा मनाथन फेर ए तिहार हा भाई-बहिनी ले नहीं पति-पत्नि ले सुरु होय रहीस। पति-पत्नि मन ले ही राखी तिहार के सुरुवात सरी संसार मा होइस अउ आज ले चले आवत हे।
पुरान मन के हिसाब ले ए घँव राक्छस मन हा देवता मन उपर आक्रमन कर दीन। देवता मन हा राक्छस मन ले हारे लागीन। देवता मन के राजा इन्द्र के पत्नि सचि हा देवता मन के इस्थिति ला देख के डरागे। वोहा अपन पति इन्द्र के परान के रक्छा करे बर जप-तप सुरु कर दीस। तप पूरा होय ले सचि ला एकठन रक्छासूत्र तपसिया के फल मा मिलीस। इही रक्छासूत्र ला ला सचि हा अपन पतिदेव इन्द्र के कलई मा सावन पुन्नी के दिन बाँधीस जेखर ले देवतामन के बल बाढ़गे अउ राक्छस मन ले जीत गें। सावन पुन्नी के दिन ए रक्छासूत्र बाँधे के कारन इही दिन ले रक्छा बंधन तिहार मनाय के सुरुवात होइस।



राखी कोन-कोन ला बाँधना चाही? – सावन पुन्नी के दिन रक्छासूत्र जेला आज राखी कहे जाथे एला ओ सबो झन ला बाँधना चाही जेखर हमन रक्छा अउ उन्नति के इच्छा राखथन। कोनो भी नता-गोतियार, संगी-संगवार अउ लगवार हो चाहे फेर कोनो रिस्तेदार होवय जेखर उन्नति अउ रक्छा हमन चाहथन वो सबला राखी बाँधना चाही।
रक्छाबंधन के तिहार हा बिन राखी के अधूरा होथे, राखी बिन पूरा नइ होवय। राखी तिहार मा राखी तभे प्रभावसाली बनथे जब एखर संग मा मंतर पढ़हे जाथे। मंतर के बिन रक्छाबंधन अधूरा हावय।
“येन बध्दो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे!मा चल! मा चल,!!”
ए मंतर के मतलब अइसन होथे- जउन प्रकार राजा बलि हा रक्छासूत्र बँधा के बिन एती-तेती चेत-बिचेत होय अपन जम्मों संपत्ति ला दान करे रहीन। अइसने हे रक्छासूत्र मैं तोला बाँधत हँव के तैं अपन उद्देश ले एती-तेती, चेत-बिचेत कभू झन होबे अउ इस्थिर रहीबे।
राखी के धारमिक महत्तम-
वामन पुरान के एकठन किस्सा के हिसाब ले अइसन हावय। भगवान बिस्नु हा जब महादानी राजा बलि करा ले अपन तीन पाँव मा उँखर जम्मों जीनिस ला ले डारिन तब राजा बलि हा भगवान बिस्नु ले एक ठन बरदान माँगीस। राजा बलि हा बरदान मा भगवान बिस्नु ला अपन संग मा पताल लोक मा संघरा रहे के बिनती करीस। इही बरदान के कारन भगवान बिस्नु ला राजा बलि के संग मा पताल लोक जा के रहे ला परीस। भगवान बिस्नु के पताल लोक मा रहे ले देवी लछ्मी ला अब्बड़ दुख होइस। देवी लछमी हा अपन पतिदेवता भगवान बिस्नु ला बामन रूप अउ पताल लोक ले मुक्ति देवाय बर पताल लोक पहुँच गीन। देवी लछमी हा एक झन डोकरी दाई के भेस बना के पताल लोक मा राजा बलि ला राखी बाँध के अपन भाई बना लीन। राजा बलि हा देवी लछमी ले राखी बँधउनी के बदला कुछू माँगे ला कहीस ता देवी लछमी हा भगवान बिस्नु ला पताल लोक ले बैकुन्ठ भेजे बर कहीन। बहिनी के बात के मान राखे बर राजा बलि हा भगवान बिस्नु ला देवी लछमी संग बैकुंठ भेज दीन। एखर बदला मा भगवान बिस्नु हा राजा बलि ला बरदान दीन के चउमास के समे चार महीना मैं पताल लोक मा आके रहूँ। एखरे सेती हर बच्छर चार महीना चउमासा मा भगवान बिस्नु हा पताल लोक मा रहे बर चल देथे जेला हमन देवसुतनी कथन। एखरे सेती इही चउमास भर कोनो परकार के जप-तप, जग-हवश, पूजा-पाठ अउ कोनो मांगलिक शुभ काज के मनाही रथे।
महाभारत मा घलो रक्छाबंधन तिहार के प्रमान हावय। महाभारत के लड़ई मा युधिष्ठिर हा भगवान श्रीकृष्ण ले पूछीस के मैं ए सरी समसिया अउ संकट ले कइसे पार पाहूँ। श्रीकृष्ण हा कहीन के आदर ले उँखर अउ उँखर सेना के रक्छा करे बर राखी के तिहार ला मनावव। श्रीकृष्ण ला जब शिशुपाल बध के बेरा अपन छिनी अंगरी मा चोट परे ले लहू आवत रहीस हे ता दुरपती हा अपन लुगरा के अँचरा ला चीर के छिनी अंगरी मा बाँधे रहीस। ए दिन हा घलाव सावन पुन्नी के दिन रहीस। दुरपती के करजा ला श्रीकृष्ण हा चीरहरन के बेरा दुरपती के लाज बँचा के चुकाय रहीन।



राखी के ऐतिहासिक महत्तम-
चित्तौड़ के बेवा महारानी कर्मावती हा अपन राज मा संकट आवत देख के मुगल सम्राट हुमायूँ ला राखी भेज के मदद माँगे रहीस। गुजरात के बहादुर शाह के बिरुद्ध सम्राट हुमायूँ हा अपन सेना चित्तौड़ भेज के रानी के राखी के मान ला राखीस। राखी के बदला रक्छा करे के असल भाव ला समझ के सम्राट हा अपन कर्तव्य ला ईमानदारी ले निभाइस हे।
अइसे कहे जाथे के महान सिकंदर के पत्नि हा अपन हिन्दू बैरी राजा पुरू ला राखी बाँध के अपन भाई बना लीस अउ अपन पति के रक्छा के बचन ले लीस। राजा पुरू घलाव हा अपन कलई मा बाँधे राखी के मान राख लड़ई मा हारे सिकंदर ला जीवनदान दे दीन।
ए परकार राखी के हमर जिनगी मा धारमिक अउ ऐतिहासिक महत्तम बहुँतेच हावय। समे के रफतार के हिसाब ले राखी तिहार घलो नंदा जतीस फेर एकर अइसन महत्तम नइ रहीतीस ता। भाई-बहिनी के मया-दुलार के चिन्हारी इही राखी तिहार हा हरय। बहिनी मन अपन भाई मन के कलई मा राखी बाँध के जिनगी भर अपन सरी संकट ले रक्छा करे के बचन लेथे। वइसे भाई-बहिनी मन के बीच मया-दुलार अउ पियार ला देखाय के, जताय के कोनो दिन बिसेस के जरुरत नइ हावय। राखी के बिन भाई-बहिनी मा मया-दया नइ रही अइसन बात घलाव नइ हे। राखी एक ठन धागा हरय, डोरी हरय फेर एखर पाछू बाँधे अउ बँधे के भाव, भावना हा जादा अनमोल हे। राखी के मोल हे फेर एखर संग जुड़े असल रक्छा भाव के कोनो मोल नइ हे। असलभाव अनमोल हे।

कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड-भाटापारा
संपर्क-9753322055


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One Thought to “मया-दुलार:राखी तिहार”

  1. Rajeshwar kumar nishad

    बहुत सुंदर भईया जी

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