महतारी महिमा
(चौपई/जयकारी छन्द 15-15 मातरा मा)
ईश्वर तोर होय आभास,
महतारी हे जेखर पास।
बनथे बिगङी अपने आप,
दाई हरथे दुख संताप।।१
दाई धरती मा भगवान,
देव साधना के बरदान।
दान धरम जप तप धन धान,
दाई तोरे हे पहिचान।।२
दाई ममता के अवतार,
दाई कोरा गंगा धार।
महतारी के नाँव तियाग,
दाई अँचरा बने सुभाग।।३
काशी काबा चारों धाम,
दाई देवी देवा नाम।
दाई गीता ग्रंथ कुरान,
मंत्र आरती गीत अजान।।४
भाखा बोली हे अनमोल,
दाई मधुरस मिसरी घोल।
महतारी गुरतुर गुलकंद,
दाई दया मया आनंद।।५
दाई कागज कलम दवात,
महतारी लाँघन के भात।
मेटय सबके भूँख पियास,
दाई चिन्हथे सरी उदास।।६
दाई थपकी लोरी गीत,
महतारी संग हार हा जीत,
दाई पुरखा पबरित रीत,
दाई सुग्घर सुर संगीत।।७
दाई आँखी काजर कोर,
गौरैय्या कस घर भर सोर।
दाई तुलसी चौंरा मोर,
दाई बिन हिरदे कमजोर।।८
जननी तैं जिनगी के मूल,
महतारी तैं पूजा फूल।
माँफी करथे सबके भूल,
चंदन तोर पाँव के धूल।।९
महतारी बिन अमित अनाथ,
काबर छोंङे दाई साथ।
सुन्ना होगे जग संसार,
कोन पुरोही तोर दुलार।।१०
कन्हैया साहू “अमित”
भाटापारा