महामाया के नगरी रतनपुर : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! महामाया के नगरी रतनपुर के अद्भुत महत्तम हे रे। फेर हमन उखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। हमर देस में देवी के अड़बड़ अकन मंदिर हावय जेमा माता के 51 शक्तिपीठ के विशेष महत्तम हावय। छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिला से मात्र 25 कि. मी. के दूरी में बसे रतनपुर के महामाया मंदिर घलाव एक शक्तिपीठ हरै जेला कोन नई जानय?
शक्तिपीठ के स्थापना से संबंधित एक ठन पौराणिक कथा प्रसिद्ध हावय जेखर अनुसार अपन पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होय के बाद माता सती हर योगबल से अपन प्राण ला त्याग देथे तब भगवान शिव हर सती के वियोग से दुखी होके सती के मृत सरीर ला धरे-धरे तांडव करत पूरा ब्रम्हांड में भटके लगथे। यही बेरा में माता के सरीर के जउन-जउन भाग हर जिहॉ-जिहॉ गिरे हावय उहॉ-उहॉ शक्तिपीठ के स्थापना होय हावय। कहे जाथे कि रतनपुर में माता के जेवनी भुजा गिरे रहिस हावय एकरे सेती रतनपुर के महामाया मंदिर ला 51 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ के स्थान मिले हावय। महाभारत अउ जैमिनी पुरान में रतनपुर ला राजधानी बताए गै हावय। त्रिपुरी के कल्चुरी बंस के राजा मन रतनपुर ला अपन राजधानी बनाके बहुत काल तक छत्तीसगढ़ में शासन करे हावय। रतनपुर ला चतुर्युगी नगरी घलाव कहे जाथे। एखर मतलब रतनपुर हर चारों युग में विद्यमान रहिथे।
मंदिर के संख्या जादा होय के सेती रतनपुर ला छोटे कांशी घलाव कहे जाथे। राजा रत्नदेव प्रथम हर मणिपुर नाव के गांव ला रतनपुर नाव देके अपन राजधानी बनाए रहिस। कहे जाथे कि जउन भी महामाया माता के मंदिर में श्रद्धा अउ भक्ति से अपन माथ नवाथे वो हर कभू खाली हाथ वापिस नई जावय ओखर मन के इच्छा जरूर महामाया माता पूरा करथे तभे तो नवरात के नौ दिन इंहा मनखे मन बहुत दुरिहा-दुरिहा ले माता के एक झलक पाए बर आथे अउ इंहा ले खुश होके जाथे। रतनपुर में जइसे हम पहुॅचथन हमन ला हैहयराज बंस के बाबा भैरवनाथ के नौ फुट उॅचा मूर्ति घलाव देखे बर मिलथे। कहे जाथे के भैरव बाबा के दरसन के बिना रतनपुर के महामाया माता के दरसन के फल नई मिलय काबर कि जिहॉ-जिहॉ मॉ जगतजननी भवानी बिराजमान हावय उहॉ-उहॉ भगवान भोलेनाथ घलाव अपन अलग-लग रूप में विराजे हावय अउ शिव अउ शक्ति कभू अलग नई हो सकय एखरे सेती इंहा आने वाला भक्त मन दोनो मंदिर के दरसन करे बिना वापस नई जावय। रतनपुर के बस अतके महिमा नई हे बल्कि इंहा के अउ कई ठन विशेषता हावय। रतनपुर ला तलाब के शहर या तरिया के नगरी घलाव कहे जाथे। कहे जाथे कि पहिली इंहा पिये के पानी उपलब्ध नई रहिस हे।
राजा रत्नदेव हर इंहा अइसे प्रयोग करिस के इंहा के पानी हर गंगाजल बरोबर होगे। रतनपुर के चारो डहर पहिली पहाड़ी रहिस हावय। ये पहाड़ी ले झर-झर के जउन पानी रतनपुर के भाग में आवय ओला बचाए खातिर राजा हर पहाड़ी के नजदीक-नजदीक में तरिया बनवाय बर शुरू करिस। अब राजा हर अइसे तरिया बनवावय के हर तरिया के आधा मीटर नीचे में एक ठन अउ तरिया राहय तब उपर के तरिया के पानी हर भुइयां के भीतरे-भीतर रेती-माटी ले रिस-रिस के छनावत-छनावत नीचे के तरिया में आवय। अइसे करत-करत राजा हर 250 ठन तरिया बनवा डारिस जेमा सबले बडे़ तरिया के नाव हावय दुलहरा तरिया। एखर नाव दुलहरा रखे के कारन ये हावय कि आज घलाव ए तरिया मा दू परकार के लहर देखे जाथे जउन ला गंगा अउ यमुना के रूप माने जाथे। ए तरिया के पानी ला आज भी गंगा मइया के पानी जइसे पवित्र माने जाथे अउ कहे जाथे कि इंहा डुबकी लगाए ले सरीर के सब रोग दुरिहा हो जाथे। अति मिठ अउ स्वादिष्ट पानी दुलहरा तरिया के माने जाथे। जब अतेक सोंच-बिचार के राजा हर तरिया बनवाईस तब एखर से हर तरिया के पानी के अपन अलग-अलग महत्तम होगे। अगर विज्ञान के भाषा में कहे जाय तो अलग-अलग पी. एच. मान होगे अउ एखरे सेती हर तरिया में अलग-अलग परकार के जलीय पौधा अउ जलीय जीव पनपे लागिस तब हर तरिया हर विशेष आकर्षण के केन्द्र बनगे।



अब हर तरिया में अलग-अलग परकार के जलचर अउ नभचर देखे बर मिलय। हर तरिया में अलग-अलग पक्षी मन पानी पिये बर आवय। इंहा के सुन्दरता हर हजारों कि.मी. दुरिहा के प्रवासी पक्षी मन के घलाव मन ला भाए लागिस। अब साल भर इंहा प्रवासी पक्षी मन के आना-जाना लगे रहिथे। हर मौसम में इंहा भांति-भांति के पक्षी देखे बर मिल जाथे। रतनपुर के तीर में खूंटाघाट बांध घलाव हावय। मानसून के आते साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका अउ केरल ले जाघिल, दांख (कंकारी) पक्षी मन के झुंड हर खुंटाघाट के टापू में आके अपन बसेरा बना लेथे। रतनपुर के गजकिला के तीर में खईया तरिया में पनकौआ (ग्रेट कारमोरेट) हजारों के संख्या में डेरा जमाए रहिथे जेला देखे बर लोगन दुरिहा-दुरिहा ले आथे। चाहे ठंड हो या बरसात हर मौसम में अवइया पक्षी मन के कारन ही रतनपुर में पक्षी अभ्यारण्य के मांग हमेंशा करे जाथे। पर्यटन नगरी रतनपुर में चारों डहर तरिया अउ एखर तीर-तखार के जघा मन वनाच्छादित हावय एखरे सेती इंहा सालभर हरियाली रहिथे। आज पूरा विश्व में रतनपुर जइसे जघा नई हे।
हमर रतनपुर हर पूरा विश्व में झील बचाओ योजना के रामसर साईट में घलाव शोध के विषय होगे हावय। संगवारी हो अतका जाने के बाद तो ये माने बर परही के वास्तव में रतनपुर में महामाया माता अपन संपूर्ण माया के संग में साक्षात बिराजे हावय। अतका बड़े गोरव के बात हरय के हमन अइसे जघा के रहवासी हरन जेखर जइसे पूरा विश्व में कोनो दूसर जघा नइहे फेर दुख के बात ये हरय के हम मनुष्य अज्ञानी मन जम्मों तरिया ला अपन स्वारथ बर पाट-पाट के प्रकृति के बेंदरा-बिनास करत हावन जेखर कारन आज उहॉ लगभग 120 ठन तरिया ही हमनला मिलही अउ वहू प्रदूषित। संगवारी हो रतनपुर के महिमा के बखान करना आसान नई हे। रतनपुर के हर पथरा अपन-आप में एक इतिहास ला धरे बइठे हावय। अभी घलव हमर तिर समय हावय। हमन अपन भुईयां के रक्षा जुर-मिल के कर सकथन। कहे गै हावयः-जब जागव तब सबेरा। हमनला अपन गौरवशाली इतिहास के रक्षा करे बर परही। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हावय। सियान मन के सीख ला गठिया के धरे म ही भलाई हावय।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बिलासपुर
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