– वीरेन्द्र सरल
एक गाँव म एक झन डोकरी रहय। ओखर एक झन बेटा रहय, नाव रहय कल्लू। कल्लू ह निचट अलाल अउ घुम्मकड़ रहय। कल्लू के छोटे रहत ले डोकरी ह कुटिया पिसिया बनी भूति करके वोला पोस डारिस फेर जब कल्लू ह जवान होगे तब कमती आमदनी म महतारी बेटा दुनो के गुजारा होना मुश्किल होगे। घर मे रोजी मजूरी के छोड़ अउ कोन्हो आमदनी के साधन नई रिहिस।
एक दिन डोकरी ह कल्लू ला समझावत किहिस -कल्लू अब तैहा जवान होगे हावस, मैहा सियान होगे हवं, कमाय बर नई सकव। तै नई कमाबे ते गुजारा कइसे होही। कल्लू ला दाई के बात समझ म आगे वोहा बिहान दिन गाँव के मालिक घर जाके छेरी चराय बर नौकर लगगे। अब कल्लू रोज बड़े बिहनिया ले छेरी मन ला चराय बर जंगल जावय।
एक दिन के बात आय। कल्लू अपन दाई ला मुठिया रोटी रांधे बर किहिस। दाई ह जइसे बनिस तइसे चुनी भूसी के मुठिया रांध के जोर दिस। मुठिया रोटी धरके कल्लू छेरी चराय बर जंगल चल दिस। मझनियां भूख लागिस तहन कल्लू ह अपन मुठिया रोटी ला निकाल के खेत के एक ठन मेड़ मे बइठ के खाय बर लगिस। वोहा सब मुठिया ला खा डारिस फेर एक ठन मुठिया ह मेड के दर्रा म खुसरगे। कल्लू ह ओला निकाले बर कतको उदिम करिस फेर वोहा निकलबे नई करिस। आखिर म खिसियाके कल्लू सोचिस, रहा ले रे मुठिया काली बर मय कुदारी धरके आहूं अउ ये मेड़ ला खनहूं तब कइसे नई निकलबे?
बिहान दिन वोहा कुदारी धरके छेरी चराय बर गिस। जब वोहा उही खेत म पहुँचिस तब देखथे कि मेड़ म बने जब्बर मुठिया के पेड़ जाग गे रिहिस अउ वोमे मनमाने मुठिया के फर लगे रिहिस।कल्लू खुश होगे अउ पेड़ म चढ़के मनमाने मुठिया झड़के लगिस। अब तो कल्लू रोज उही पेड़ तीर म जावय। छेरी मन ला ढिल्ला छोड़ देवय अउ पेड़ मे चढ़के दिनभर मुठिया खावय।
एक दिन वोहा पेड़ म चढे रहिस तभे वो मेर ढुरी रक्सीन पहुँच गे। कल्लू ला देख के वोहा सेचिस ये टुरा मोर दामाद बनाय के लइक हावे। येला फसाना चाही। ढुरी रक्सीन किहिस- देना रे महू ला मुठिया। कल्लू किहिस ले झोक डोकरी मैहा मुठिया टोर के खाल्हे म फेकत हवं। ढुरी रक्सीलन किहिस कामे झोकहूं बेटा। कोन्हो ओली म झोकही तब ओलाइन ओलाइन लागही, हाथ म झोकही तब हथिइन र्हिथइन लागही। तेखर ले तिही तोर हाथ मे मोला देना रे भाईं।
कल्लू भल ला भल जानिस वोहा बहुत अकन मुठिया टोर के पेड़ ले उतरगे अउ डोकरी ला दे बर लगिस। मउका मिलिस तहन ढुरी रक्सीन ह रब ले कल्लू के हाथ ला धरिस अउ अपन झांपी मे भरके अपन घर डहर रेगें लगिस। कल्लू छटपटावत रहिगे फेर भागे बर नई सकिस।
अपन घर पहुँच के ढुरी रक्सीन बनें खुश होके अपन बेटी ला किहिस -देख बेटी मै तोर बर दूल्हा लाय हवं। ओखर बेटी हा कल्लू ला देख के खुश होगे। कल्लू भाग झन जाय कहिके दुनो महतारी बेटी ओला एक ठन कुरिया म धांध के राखे रहय। अइसने अइसने अड़बड़ दिन होगे।कल्लू ला अपन गाँव घर अउ महतारी के सुरता आय तहन वोहा गजब रोय अउ उहां ले भागे के उपाय सोचे।
एक दिन के बात आय ढुरी रक्सीन ह किजंरे बर गे रहय। कल्लू के मुड के बाल बने लाम लाम रहय तिही पाय के ढुरी रक्सीन के बेटी ओला पूछिस- कस रे कल्लू, तोर बाल बने लाम लाम कइसे हावे, काय तेल लगाथस। कल्लू के दिमाग काम करना शुरू कर दिस इही मौका हावे इहां ले भागे के, वोहा किहिस- हमर दाई हमर मुड़ ला ढेकी मे कुटते टूरी तिही पाय के मोर बाल बने लाम लाम हावे। तहू ला लाम लाम बाल लागही ते तोरो मुड़ ला ढेकी म कुटे बर पड़ही जाने। ढुरी रक्सीन के बेटी ला घलो बने लाम लाम बाल राखे के शौख रहय वोहा अपन मुड ला ढेकी म कुटवाय बर तियार होगें।
मउका मिलिस तहन कल्लू हा ढुरी रक्सीन के बेटी के मुड़ ला ढेकी म कुट दिस, टुरी हा मरगे। कल्लू जी परान देके उहां ले भागिस अउ गिरत हपटत अपन गाँव पहुचिस। गाँव के मनखे मन ला अपन कहानी बताइस। अउ खइस कमाइस राज करिस। मोर कहानी पूरगे, दार भात चुरगे।