मुहूलुकवा होवत मनखे

रमेसर गमछा मा मुहूं बांध के परमोद के दुकान तीर ले अपन घेच टेड़गा करके आघू निकलिस। परमोद चिचियातेच हे, रमेसर… रमेसर, कहिके हांक पारतेच हे, फेर कहां सुने, रमेसर। परमोद कहिस- देखे गुरुजी, आठ दिन बर उधारी मांग के जिनीस लेगे रिहीस आज आठ महिना होगे पइसा देय के नांव नइ लेत हे अउ मुंहूं लुका के जावत हे। गुरुजी कहिस- हव रे परमोद! आज मनखे मुहूलुकवा होगे हे। करजा खाय मनखे ह तो बेपारी बर मुहूलुकवा होयेच हे, दफ्तर मा अधिकारी–करमचारी, अस्पताल मा डाक्टर, इस्कूल मा मास्टर अऊ सबले बड़े मुहूलुकवा तो जनताबर हमर नेता मंतरी मन होगे हे। सब अपन अपन बूता ले मूहूं लुकात हे। बहू सास ससुर के सेवा ले मुहूं लुकात हे, नउकरी करइया महतारी अपन नानकुन लइका के सेवा करेबर मुहूं लुकात हे। बेटा ह अपन दाई-ददा ल पालेबर मुहूं लुकात हे।



परमोद कहिस- सहीच बात आय गुरुजी, अभी बेरा तो अइसने चलत हे। पढ़इया लइकामन पढ़ई ले मुहूं लुकात हे, अस्पताल मा डाक्टर अउ नरसबाई मन जौन सेवा बर पइसा पाथे उही काम ले मुहूं लुकात हे। जंगल विभाग, राजस्व विभाग, सिचई विभाग, सरकारी, गैर सरकारी मा अइसे कोनो नइ हे जौन ठाड़ हो के कहे कि मै ऐदे बूता ल करहुं। गुरुजी कहिस- ठउंका कहे जी, ककरो घर गाय नइ हे, बारी-बखरी नइ हे जिहां जांगर खपाय। सरकारी दफ्तर के अधिकारी मन जादा मुहलुकवा होगे हावय। जब भी कोई बूता करवायबर जाबे तब सुनेबर मिलथे,साहब आज नइ हे तोर काम नइ हो सकय। सबले जादा मुहू लुकवा सरकार चलाने वालामन होथे। चुनई के बखत अपन पार्टी के घोसना मा लिखे रहिथे कि तुम्हरबर अमका करबो, ढमका करबो अमुक देबो, तुमन मोला अउ हमर पार्टी ल वोट देवव। जीते के पाछू चार बच्छर तक मुख नइ देखाए। उंकर सेवक पटवारी, इंजीनियर, इडीओ, बीडिओ, जंगल बिभाग, बिजली बिभाग, कृषि बिभाग सबो जगा मुहंलुकवा के कमी नइ हे। फेर एक बिभाग है जौन आघूमा रथे, पुलिस बिभाग। सड़क मा, चउक मा गाड़ी मोटर के जांच मा आघू, दारु कोचिया के, जुहा खेलइया, सट्टा लिखइया के खभर करे मा आघू, मंत्री के कार्यक्रम मा आघूच रथे। जब गरीब कोनो बड़हर के नांव रिपोट लिखादिस तभे एमन मूहूंलुकवा होथे।

लहुटती रमेसर के भेंट गुरुजी संग होगे। गुरुजी रमेसर ल ठढ़िहा के पूछिस- कस जी रमेसर ते परमोद के उधार ल काबर नइ चुक्ता करस। रमेसर रोयबर धरलीस, आंसू पोंछत बताइस- कायला बतावंव गुरुजी, आज मैं मुहूलुकवा बन के फिरत हंव। अभी बैंक ले आवत हंव। जब ले बैंक मा खाता खुले हे जम्मो किसम के सरकारी पइसा खाता मा आही कहिथे। मनरेगा के पइसा, आवास मकान के पइसा, सौचालय के पइसा, धान के पइसा सबोच ह बैंक मा आही फेर आज आठ महिना होगे एकर चक्कर कांटत । रोज बिहनिया बासी खाके आथंव,अउ सांझकुन मुहू लुकात जाथंव। सबो दफ्तर मा दरकास दे डरेंव कि मोर प पइसा ल भेज देव। बाबू साहब मन कहिथे बैंक भेज देय हन। इहां मत आयकर बैंक मा जाके पता लगावत रहव। अब आपे बतावव मैं मूहूं लुकावंव कि नहीं। गुरुजी कहिस- तोरो समस्या के कोई समाधान नइ हे रे रमेसर। आज हमर देस के बेवस्थाच हर अइसने हो गे हे। गरीब मनखे ल मुहूलुकवा बना देहे। तभे कतको करजा मा लदाय किसान फांसी अरो लेथे अउ सदा बर मुहूलुका लेथे।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला गरियाबंद
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