सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! अधिक मास के हमर जिनगी म भारी महत्तम हावय रे ! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। हमन नानपन ले सुनत आवत हन-“हिन्दु मुस्लिम सिख इसाई, आपस में सब भाई-भाई।” हमर भारत देस के यही विशेषता हवय कि इंहा अनेकता में एकता के वास हावय। इंहा भांति-भांति के धर्म, रीति-रिवाज अउ संस्कृति के मेल हावय एखरे सेती हमर भारत जइसे देस पूरा विश्व मे अउ कोनो दूसर नई हे। इहां मंदिर हे ,मस्जिद हे, गुरूद्वारा हे अउ गिरिजाघर हे। इहां गंगा, यमुना, कृष्णा अउ कावेरी जइसे नदिया हावय त हिमालय जइसे पर्वत घलाव हावय जउन हर हमर भारत भुइंया के रक्षा करथे। इंहा के मनखे जतके नरम अउ सरल हृदय के हावय ,बैरी अउ दुश्मन मन बर ओतके कठोर घलाव हावय। हमर भारत भुइंया में जनम लेहे बर देवता मन घलाव तरसथे अइसे पावन भुइयां के हम रहवासी आन। बेरा-बेरा में दुनिया के मनखे मन हमर एकता अउ अखंडता ला परखे के कोशिस करथें फेर हमन उमन ला देखा देथन के हमर एकता अउ अखंडता रूई के गोला नोहय जउन हर फूंके म उड़ा जाही।
पूरा सीख ल भास्कर म इहां ले पढ़व
–रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर