लाला जगदलपुरी के कबिता

जब ले तैं सपना से आये

मोला कुछु सुहावत नइये
संगी तैं ह अतेक सुहाये
पुन्नी चंदा ल देखेंव
तोरे मुह अस गोल गढन हे
अंधियारी म तारा देखेंव
माला के मोती अस तन हे
तोर सुगंध रातरानी हर
भेजत रहिथे संग पवन के
नींद भरे रहिथे आंखीं में
दुख बिसराथंव जनम मरन के ।
लाला जगदलपुरी

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One Thought to “लाला जगदलपुरी के कबिता”

  1. नींद भरे रहिथे आंखीं में
    दुख बिसराथंव जनम मरन के ।
    हिरदे के गहराई ले उपजे सुग्घर कविता …..बधाई

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