वृत्तांत- (4) न गांव मांगिस ,न ठांव मांगिस : भुवनदास कोशरिया

Guru Ghansidasअठुरिहा ह पहागे हे।जब ले बाहरा डोली म होय ध्यान ह,घासी के मूड म माढे हे तब ले अचकहा रोज ओकर नींद ह उचक जथे ।कभु सोपा परत , कभु अधरतिया , त कभु पहाती ।ताहन नींद ह न्इच पडय ।समुच्चा रथिया ह आंखीच म पहाथे ।टकटकी आजथे …… ये सोच म कि “ओ दिन क इसे बाहरा डोली म तउरत ,खेलत मछरी ह पानी के सिराते ,फड फडा य लग गे,तडफे लग गे ,आखिर म हालय न डोलय ,चित होगे ।का चीज रहिस कि मछरी ह खेलत रहिस ,अब का चीज नइये की वो ह चित होगे । सबके शरीर म ये हावे ते ह का ये ? कहां से आथे ? अउ कहां चले जाथे ?
घासी ह रथिया रोज पलंग ल उतर के ध्यान म बइठ जथे ।हालय न डोलय अउ न कुछ बोलय । सफुरा ह झकना जथे ।अपन पलंग ल टमडथे , घासी ह नइये । अपन ओढे पिछौरी ले मुंह उघार के देखथे । ठुडगा रूख बरोबर ठक ठक ले कोनटा म बइठे हे ।सफुरा ह परेशान हो जथे । अउ कहिथे ,,,,,, तहूं ह अंतउले करत हस , रात रात भर जागत हस । का होगे तोला ?बता तो मोला ।का गुनत हच ? अउ का दुख दरद हे तेला ?
घासी ह कहिथे ,,,,,,,,देख सफुरा ! मोला कांही दरद हे,न कांही दुख हे ?मोला तो मोर हिरदे म जागे सतनाम के भूख हे । बाहरा डोली म उठे एक खोज हे ।जेला कोन ह बता ही ? अउ कइसे मिल पा ही ?इही ह मोर नींद ल उडा दे हे ।भूख ल भगा दे हे । तहूं ह बता , कुछू जानत होबे तेला ।
सफुरा ह सोय पलंग ल उठ जथे । घासी ह पद्मासन बइठे हे ।योग ध्यान मुद्रा म हे।आंख अधखुला हे । सफुरा ह घलो घासी सामने ओइसने मुद्रा म बइठ जथे । अउ कहिथे ,,,,,,, मैं ह का बता पाहूं ? लेकिन हाँ ! मोर पुनिया दादी हे ,जे ह जरूर बता सकत हे । मैं ह अपन दादी के अडबड दु लौरिन रेहेंव ।संगे म नहवावै ,खवावै ,जिंहा जिंहा जावै संगे संग घुमावै । रथिया संगे म सोवावै अउ किसिम किसिम के कहानी किस्सा सुनावै ।मै हुंकारू भरौं।हुंकारू देवत देवत मोर नींद ह लटक जाय ,त किस्सा ह घलो रूक जाय । मोर नींद ह फेर उचक जाय अउ हुंकारू देना शुरू हो जाय ।मोर पुनिया दादी के किस्सा ह कभ्भो नइ सिरावय ।रंग बिरंग के गीत ,कहानी किस्सा तुरते गढय बात बात म हाना पारै ।जनऊला अइसे पूछै कि बडे बडे मन पानी मांग लय ।बोली ठोली म ही बाण चलाय ।हंसी ठिठोली म ही सबके दिल जीत लै ।ओकर बोली भाखा म मिठास हावय ।चार झन अवइया जवइय ओकर डेरउठी म पडेच राहय ।ओकर जनऊ ह सब जिंदगी ल जुडे सवाल राहय ।दुख दरद के इलाज राहय ।मनखे ल मनखे जोडे के रोज ओकर काम राहय । आज तहूं ह चल , का तोर जाने के इच्छा हे तेला तहूं ह चल पूछ ।
घासी ह सफुरा के बोली ल सुन के आंखी म आंखी गडा के एकटक देखे लगथे ।अउ आंखी आंखी म कहिथे …….. तही हच मोर मया पिरीत के पुछारी । तही हच मोर दुख दरद के संगवारी । तोर मया पिरीत के बोली अडबड गहरा हे ।दया धरम के बोली जइसे अमृतभरा हे । अउ मने मन म कहिथे …मोला सफुरा कबभो नइ बोले रहिस ,आज अइसे बोलिस कि ज्ञान के लहरा म मोर आठो अंग ल भिंजो दीच ।अब सफुरा ल अपन छाती म लगावत कहिथे ….. मैं ह धन्य हंव !जो तोर सही जांवर जोडी पायेंव ।जो अइना ज्ञानी ध्यानी दादी के अंग संग म सीखे पढे अउ कोरा म पले बढे ह मिलिस । सफुरा ह कहिथे …….नहीँ …..नही ,नही ,नही ।आइना बात नोहय ।जब जब मै ह अपन दादी के पांय पायलगी करंव तब तब ओ ह मोर झुकाए सिर म अपन दोनो हाथ के छांव देके का हय …..जुग जुग जियो बेटी ,लाख बरिसो ।दूधे नहाओ ,दूधे खाओ ।सुघ्घर संत ज्ञानी पति पावो । बेटी बेटा नाती छनती से घर भर जाओ ।दुनिया म अपन नाम कमाओ ।कहिके आशिष देवय अउ मोला उठा के अपन दूनो हथेरी ल मोर दूनो गाल म लगा के मुंह जोर के चटाक चटाक चुमा लेवय ।अउ अपन छाती म लगा के गदगदा के हंसत गला मिलय ।ओकरे आशिष से मै ह तोर सही पति पाय हंव ।
दूनो परानी आजेच सि रपुर जाय के तियारी म लग जथे ।घासी के पास धौरा धौरा चमकदार रंग के पोरिस भर भर ऊंचा पूरा बइला हे । सिंग खडा खडा हे ,पूंछ लम्बा ,काला हे ।आंख कजरारा हे ,तरमराती चाल हे । सिंहि ल सिंहिल करत सुगठित बदन हे ।बरार नसल के हे ।इंकर धोना ,मांजना ,दाना पानी खिलाना पिलाना खुद घासी ही करय ।अपन बेटा बराबर मानय , हीरा मोती कहिके बुलावय ।उहू मन घासी के अइसे दिवाना राहय कि घासी ह जइसने जेला ,बुलावय ओह ओइसने बात मानय ।
हरेली के तिहार म सारंगढ रियासत के राजा ह हर साल बइला दौड के आयोजन करथे ।ये पांचवा बछर ये लगातार घासी के बइला ह पहिला इनाम पावत हे ।दग दग ल सादा धंवरा बइला हे ओमा रंग रंग के फूल छपाय हे । सिंग म कौडी गुंथाय हे ।मंजूर पांख चलो लगाय हे। गला म घांघडा बंधाय हे । ज बइला दौडे तो राजा घलो देखइया मन के संग मुंह फार के देखय ……ओ …..हो कहिके दंग रहि जाय ।दांतो तले उंगली दबा लै ।अउ सब ऐ …हे…..ऐ …हे…. कहिके चिहोर पार के खुशी म नाचय ।
राजा ह पहिला इनाम देये बर घासी के नाम पुकारै तो सब जनता ताली बजा के स्वागत करय । राजा ह घासी ल इनाम देवत अउ फूल हार ,नरि यर ,धोती से सम्मान स्वागत करत सब जनता ल कहिथे …… देखव !सब घासी के बइला ल देखव । पहिला इनाम पाय हे ।तुहू मन सब अपन अपन बइला ल अइसने सजाय सम्हराय कर व। अच्छा खिलाय पिलाय कर व ।अच्छा सेवा जतन करे करौ ।मै ह घासी के पशुधन के प्रति सेवा जतन अउ प्रेम भाव ल देख के बहुत खुश हंव ।ये पहिला इनाम देये के साथ साथ मुंह मांगे इनाम देये के घोषणा करत हंव ।जो दिल चाहे मांग सकत हे ।
राजा के घोषणा ल सुनत घासी के मन म खुशी के ठिकाना नइ राहय ।राजा ये , का मांगव ?का नइ मांगव ? हक्का फूटत न बक्का । चिंतन म पडगे ।फेर घासी के मन म एक बात आइस …….”सारंगढ राज म बहुतेच देवी के स्थान हे ।जिंहा पशुबलि के नाव म हर साल हजारो जानवर के पुजई कर दिये जाथे “। अउ घासी तुरते राजा ल बोले लगथे ।राजा महाराज …..अगर मोला मुह मांगे इनाम देना चाहत हव तो मै अपन इनाम के रूप मे जनता बर ओ आदेश मांगना चाहत हंव कि आपके ये सारंगढ राज म ओ आदेश दे दव कि आज से कोई भी स्थल म बलि अउ मांसाहारी के नाव म जीव हिंसा नइ हो वय ।ये इनाम मोर जिंदगी के सबसे बडे इनाम होही ।अतना सुनत राजा सकपका जथे ।ठाढे झुखा जथे । जबान चुके हे ,मुंह मांगे इनाम देयेके ।मुकर सकय नही ।
राजा ह सब जन मानस ल कहिथे …देखव !घासी के महानता ल देखव ।अगर चाहतिच ते धन दौलत रूपिया पैसा ,खेती खार अउ मोर से जमीदारी भी मांग सकत रीहिस । अउ मै चाहत भी रेहेंव दस बीस गांव अउ दे दूहूं ।लेकिन वो ह, “न गांव मांगिस ,न ठांव मांगिस , जीव पर दया अउ प्रेम के भाव मांगिस ,सबे जीव एके बरोबर ,ये कर एक नियांव मांगिस ।”
राजा ह कहिथे …… आज से मोर शाही फरमान हे ! मोर राज म,कोई भी स्थान म बलि अउ मांसाहार के नाव म कोई पुजाई नइ होवय ,कोई हिंसा नइ कर सकय ।जीव हिंसा ह पाप ये ,राजकीय अपराध ये ।येअपराध जे करही ओला कडी से कडी सजा दे जाही ।सबे जीव एके बरोबर हे ।सबे पशुधन ल अपन घर के परिवार बराबर मानहु ।सेवा जतन अउ प्रेम पूर्वक रखहू ।मै घासी के बहुत बहुत आभार मानत हंव जेकर कृपा से ये शाही फरमान देये के मोला गौरव मिलिस ।
इही कहिके राजा ह सब किसान मन ल किसानी बारी अच्छा अच्छा होय के,घर परिवार सुख शांति मय राहय ,इही ह मोर तरफ से बधाई हे।
लोग सब एक दूसर ल बधाई देवत ,हंसी खुशी से अपन अपन घर लहुटत हे ।

भुवनदास कोशरिया
भिलाई
9926844437

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2 Thoughts to “वृत्तांत- (4) न गांव मांगिस ,न ठांव मांगिस : भुवनदास कोशरिया”

  1. sahdeo banjare

    adbad suggher god likhe has bhai bhuwan kosariya ji pad ke nan dil la bahut gadgad lagis.bahut achchha lekh likhe haw .

  2. sahdeo banjare

    bhai bhuwan kosariya ji bahut 2 dhanyawad atek achchha jankarai dene ke liye

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