गजब पाँखी फड़फड़ाय
येती कुकरी कोरकोराय
वोती कुकरा नरियाय
कूद- फांद के चढ़े खपरा- छानी
एला हकालौ हो ननदी- देवरानी .
कोड़ा देवय ,नइ मानय
गजब कचरा बगराय
कहूँ गेंगरवा सपराय
एके सांहस – मा खाय
दिन- भर किन्जरे बर जाय
सँझा कुरिया- मा ओयलाय
कोन्हों करे नइ इंकरे निगरानी
एला हकालौ हो ननदी – देवरानी .
रुखराई – मा चढ़ जाय
कुकरुस – कू नरियाय
कहूँ घुरवा देखे पाय
भात – बासी बिन के खाय
जेखर खिरपा नइ देवाय
वोखर घर -मा खुसर जाय
हवय कुकरी के कोन्हों लागमानी
एला हकालौ हो ननदी – देवरानी .
सूपा के कनकी – ला
सरी बीन के खागे
गहूँ – ला सुखोए रहेवं
सब्बो बगरागे
बिलई के आरो पागे,कुकरी डर्रागे
नान – नान चियाँ – पिला
जतर – कतर भागे
अउ कुकरा भुलागे पहलवानी
एला हकालौ हो ननदी- देवरानी .
रद्दा रेंगाय नहि इंकरे मन के मारे
परछी-दुवारी मा गजब पचरी पारे
काली के लिपाये रहिस
आज ओदरा डारे
सरी घर – दुवार के
कोठार बना डारे
गाँव भर के रहे परिसानी
हकालौ हो ननदी – देवरानी
कुकरी के दिन भर के दिनचर्या के सुग्घर बरनन. ओखर नरी , मुड़ी अउ पाँखी के सुग्घर बखान
(body language) कुकरा अउ कुकरी के सांकेतिक भासा में बोली के निपट छत्तीसगढ़िया रूप
( कोरकोराय ,नारियाय ),चियां-पीला के जतर-कतर भगई .कुकरी के घुरवा कोड़ई ,गहूं के बगरई ,
परछी-दुवारी के बूता बनई. गँवई -गाँव के ठेठ बरनन.छत्तीसगढ़िया ननदी अउ देवरानी के
मयारुक नाता ………..सुग्घर हास्य गीत…..बधाई .
गीत पढ़ के ऐसा लगा जैसे मै ग्रामीण परिवेश में खड़ा हूँ.गीत में हास्य की प्रधानता के साथ लोक संस्कृति एवं सामजिक वातावरण चित्रित है.आज आवश्यकता है कि ऐसे गीतकारों को आगे लाना चाहिए.यह गीत आगे चल कर छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में सामिल हो सकता है.यदि इस गीत को सुर मिल जाये तो यह और भी प्रिय लगेगा.छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने वालो को ऐसे गीतों का उपयोग करना चाहिए|इतने सुन्दर गीत के लिए बधाई
सुन्दर अतिसुन्दर छत्तीसगढी गीत।