गांव ला सवच्छ बनाये के सनकलप ले चुनई जीत गे रहय । फेर गांव ला सवच्छ कइसे बनाना हे तेकर , जादा जनाकारी नी रहय बपरी ल । जे सवच्छता के बात सोंच के , चुनई जीते रहय तेमा , अऊ सासन के चलत सवच्छता अभियान म बड़ फरक दिखय । वहू संघरगे सासन के अभियान म । अपन गांव ल सवच्छ बनाये बर , घरो घर , सरकारी कोलाबारी बना डरीस । एके रसदा म , केऊ खेप , नाली , सड़क अऊ कचरा फेंके बर टांकी …। गांव म हांका परगे के , कनहो मनखे ला , गांव के खेत खार तरिया नदिया म , दिसा मैदान बर नी जाना हे , जे जाही , तेकर ले , डांड़ बोड़ी वसूले जाही ।
एक ठिन तिहार म भगवान ल , अबड़ अकन भोग लगीस । पेट के फूटत ले खा डरीस । रथियाकुन पेट पदोये लागीस । भगवान सोंचीस मनदीर भीतरी म करहूं , त पुजेरी सोंचही भगवान घला मनदीरेच म …….। चुपचाप लोटा धरीस अऊ निकलगे भांठा । जइसे बइठे बर धरीस , कोटवार के सीटी के अवाज सुनई दीस । भगवान सोंचीस – कोटवार कहूं मोरे कोती आगे अऊ चिन डरीस त बड़ फजित्ता हो जही । धकर लकर हुलिया बदलीस तब तक , कोटवार पहुंचगे अऊ केहे लागीस – तैं नी जानस रे हमर गांव ओ डी एफ घोसित हे , इहां खुल्ला म सौच मना हे । भगवान पूछीस - कती जगा बईठंव , तिहीं बता ? कोटवार किथे – तोर घर सौचालय निये तेमा , भांठा पहुंचगे गनदगी बगराये बर । भगवान किथे – मोला तो पूरा गांवेंच हा सौचालय दिखत हे अऊ अतेक गनदा के , बइठना मुसकिल हे । कोटवार अकबकागे , सोंचत हे के , कइसे गोठियाथे येहा…।
भगवान फोर के बतइस – मनदीर म धरम के ठेकेदार मन , कोनटा कोनटा तक म अपन सोंच के सौच म दुरगति कर देहें । कोटवार किथे – मनदीर मा रिथस त , पुजारी अस जी ? तोर घर म तो घला सौचालय हाबे , उहें नी बइठथे गा…..। मोर तो कतको अकन घर हे बाबू , तेकर गिनती निये । मनदीर म मोर नाव ले अपन अपन रोटी सेंक के , मोर रेहे के जगा म सौच कर देथें । मसजिद म रिथंव त , अलगाववाद अऊ कट्टरवाद के विसाद ला जतर कतर बगरा देथे । गिरिजाघर म खुसर जथंव त , वहू मन , झूठ के परचार परसार म भागी बनाथय अऊ पूरा खोली म , एक ला दूसर ले लड़ाये के गनदगी ला , बगरा देथे ।
आम जनता के घर के , सरकारी सौचालय के तो बाते निराला हे । बनत बनत देखेंव के ओकर हरेक ईंटा म मिसतरी , ठेकेदार अऊ इनजीनियर के , मैला के निसान पहिली ले मऊजूद हे । खुसरतेच साठ , ये मैला ले निकले भरस्टाचार के बदबू म , नाक दे नी जाय । कोटवार किथे – तोर पारा के पंच ला नी बताते जी …..। उहू ला बतायेंव , थोरेच दिन म एक ठिन ओकरो नाव के मैला ईंटा लगगे । सरपंच हा , सौचालय म बेइमानी के कांड़ लगावत रहय । अधिकारी मन करा का सिकायत करतेंव – ओमन कपाट बर , सनडेवा काड़ी के फरेम तियार करत रहय , जेमा सरहा मइलहा बोरा के पेनल , वहू अतका भोंगरा के ……… झांके के आवसकता निही , कती मनखे भीतरी म खुसरे हे , कतको दूरिहा ले जना जही । बिधायक के घर म , पलसतर बर मैला सकले के जोजना बनत देखेन । दिल्ली तक पहुंच गेंव , उहां येकर बर छत के निरमान होवत रिहीस । छत के हाल तो झिन पूछ , अतका कस टोंड़का अऊ हरेक टोंड़का ले , देस ला बरबाद करइया बदबूदार सोंच , बूंद बूंद करके टपकत , गनदगी बगरावत रहय ।
अभू तिहीं बता कोटवार कती जगा जाके गोहनावंव । कती मोर बर सवच्छ सौचालय बना सकत हे ? मोर देस म सवच्छ भारत के कलपना कइसे अकार लिही ?
कोटवार किथे – जब अतेक ला जानथस , त , तिहीं नी बइठ जतेस दिल्ली म । कोन गनदा बगराये के हिम्मत करतीस । भगवान जवाब देवत किहीस – मय भगवान अंव बेटा । मय सरग म सासन कर सकत हंव फेर , तोर भारत म सासन मोर बर मुसकिल का असमभव हे । कोटवार लमबा सहांस भरत किथे- का करबे भगवान – जेला हमन दिल्ली म बईठारथन तेला अच्छा जानके ……….फेर उहां बइठते साठ , कोन जनी काये खाथे बियामन… , पचा नी सकय अऊ भीतरी म एती ओती , जेती तेती , जतर कतर , मैला फइलाथे । जे खुसर नी सके तेमन , तोरे कस लोटा धरके गनदगी करे के जगा अऊ मउका तलासत किंजरत रहिथे …….।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा