सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! चोला माटी के तो आय रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नइ पाएन। संगवारी हो जब.जब अक्ति के तिहार आथे अउ माटी के पुतरा.पुतरी मन बजार मा दिखथे तब सियान मन के गोठ.बात हर सुरता आए लगथे। का सिरतोन हमर चोला हर ए माटी के पुतरा.पुतरी कस हरै ए बात हर अडबड सोचे के आय।
संगवारी हो अक्ति के दिन नान.नान लइकन मन माटी के पुतरा.पुतरी के कतका सुघ्घर बिहाव करथे अउ ए बिहाव मा उॅखर खुसी के ठिकाना नइ राहय। सुघ्घर हरियर मडवा छवा के चुलमाटी,तेल, देवतेला,चिकट,हरदियाही के संगे.संग बरात,भाॅवर अउ पुतरी के बिदाई घलाव लइकन मन अडबड मगन होके करथे। लइकन मन के ढोल.नगाडा के संग मा बरात निकालना,बराती मन के स्वागत.सत्कार, मंडप अउ पुतरा.पुतरी के सजावट से लेके भाॅवर अउ लइकन मन के गीत अउ खुसी हर देखे के लइक रहिथे। संगवारी हो लइकन मन के ए बिहाव के तियारी मा सियान मन ला घलाव संग देहे बर परथे अउ हमन देखथन के लइकन मन जम्मो नेंग ला वइसनेच करथें जइसन अपन घर अउ समाज मा होवत देखे रहिथे।
संगवारी हो ए अक्ति के तिहार हर समाजिक अउ सांस्कृतिक सिक्छा के बड सुघ्घर तिहार आय। ए तिहार हर हमला बताथे के हमर लइकन मन हमर सामाजिक रूप से आचरन अउ व्यवहार ला जबर आत्मसात कर लेथे। अक्ति के दिन हर बसंत ऋतु के अंतिम अउ गरमी के मौसम के पहिली दिन होथे। एखरे सेती ए दिन मा पानी से भरे माटी के मरकी,पंखा,तइहा के जमाना मा खडाउ अउ आज के जमाना मा जूता.चप्पल, छाता, चाउॅर,नून,घी, बंगला,कलिन्दर, सक्कर, साग.भाजी,अमली अउ सत्तू ,ककडी,खीरा आदि जउन.जउन जिनिस मन गरमी के दिन बर हमला फायदा देथे तउन.तउन जिनिस के दान करे जाथे। जेखर से जम्मो मनखे मन के जीव हर गरमी मा घलाव जुड राहय। जब हमन दूसर के जीव ला जुडवाबो तब हमनला पुन तो मिलबे करही।
संगवारी हो छोटे.छोटे बात के हमर जिनगी मा कतका असर होथे तउनो बात ला ए तिहार हर हमनला बताथे। अक्ति के दिन नर.नारायन जनम लिये रहिन हे एखरे सेती बद्रीनाथ के कपाट ला अक्ति के दिन ही खोले जाथे। अक्ति के दिन ही परसुराम, हयग्रीव अउ ब्रह्माजी के पुत्र अक्छय कुमार घलाव जनम लिये रहिन हे। अक्ति के दिन के चारों युग मा अडबड महत्तम हावै काबर के भविस्य पुरान के अनुसार सतयुग अउ त्रेता युग के आरंभ अउ द्वापर युग के अंतिम दिन होथे अक्ति के दिन एखरे सेती ए दिन ला अक्छय तृतिया या आखा तीजा कहे जाथे। भगवान कृश्ण हर युधिश्ठिर ला बताए रहिन हावै कि ए दिन के महत्तम चारों युग मा हावै एखरे सेती ए दिन जउन भी अच्छा काम करे जाही ओखर अडबड पुन मनखे ला मिलही। एखरे सेती अक्ति के दिन मा मनखे मन जउन भी दान.पुन करथे ओखर अडबड महत्तम होथे काबर के दान से बडे पुन के काम दुनिया मा अउ कुछु नई होवय।
अक्ति के दिन हर हमला कतका बडे संदेस देथे के हमला ए लोक से लेके परलोक तक सोंचे बर परथे। संगवारी हो पुतरा.पुतरी के बिहाव अउ जिनगी के बिहाव मा कतका अंतर होथे। अइसे लगथे के बिहाव होय के बादे ए माटी के चोला मा असली दया अउ मया, सुख अउ दुख, ग्यान अउ बिग्यान ,सामाजिक जिम्मेदारी, लोकलाज, अउ रीति.रिवाज हर उपजथे अउ ए जिनगी के धारा मा बोहात.बोहात ए माटी के चोला हर घुरे लागथे अउ घुरत.घुरत एक दिन कब ए माटी के चोला हर माटी मा समा जाथे तउन पता नइ चलय। एखरे सेती तो सियान मन कहिथे बेटा! चोला माटी के तो आय रे। तभे तो सियान मन के सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बढिया लिखे हावस रश्मि । अपन भाखा बर बिकट मया लागथे रे । लिखत – लिखत भाखा हर फरियावत जाथे । एहर बहुत ज़रूरी होथे । जइसे कहूँ जाथन तव घेरी – बेरी अपन मुँहरन ल दर्पन म देखथन तइसने , शब्द ल सोच- सोच के , देख – देख के बौरे ले दिनों – दिन ,भाखा के सुघराई हर बढत जाथे । तोला बहुत – बहुत बधाई देवत हौं , रश्मि ।
चोला माटी हे राम
बहुत सुदंर लेख लिखे हो | एकर बर आप ल बहुत बहुत बधाई |