मोनी! तोर बबा ल एक लोटा पानी दे दे ओ। कुरिया बाहरत दाई ह अपन बारा बच्छर के बेटी ल हांक पारिस। लइका दाई के रेरी ल कान नई धरिस अऊ खोर म जाके बईठ के मोबाइल म गेम खेलत रहिगे। एती खटिया म सूते बबा घेरी बेरी चिचियावत राहय।लइका के अरदलीपन ल देख के ओकर दाई खुदे पानी लेग के दे दिस अऊ गुने लगिस, कि मोर बेटी, जौन ल अड़बड़ अकन पैसा भरके अंगरेजी इस्कूल म पढ़ावत हौ, वो एक लोटा पानी देय बर नई सीखत हे। हे भगवान! मोर ले कहाँ चूक होगे जौन अपन लइका ल संस्कार नई दे पायेंव। मोर दाई-ददा सिखाय रहिस कि एक लोटा पानी के कतका महत्तम हे। ये हमर संस्कार आय। पियासे ल एक लोटा पानी पियाय ले सबले बड़े पुन्य माने गे हावय। हमर ककादाई बताय जब गांव आय-जाय बर मोटर-गाड़ी नई रहिस तब पइदल नईते बईला गाड़ी म गांव जावय, बीच म जेन गांव परय उहां पानी पियय अऊ थिराके आगू बढ़य। चिनहार अनचिनहार कोनो राहय जेकर मोहाटी म जाय ओला एक लोटा पानी मिल जाय, कभू कभू नान्हे लइका ल बासी भात घलाव मिल जाय। ठिहा म पहुंचते बहू बेटी मन सबले पहिली एक लोटा पानी देय अऊ पांव पलगी करय।
गांव म जिकर घर सियान अऊ संस्कार हे उहां आज घलाव ये चलन हावय। फेर आज हमर सहरी संस्कृति अऊ अंगरेजी पढ़ई ले घर म अपन परिवार के सियान मन ल पानी नई देवाय सकत हन। पढ़े लिखे अऊ नउकरी करईया बहूमन ये संस्कार ले दुरिहावत हे। अइसने गुनत आओकर मन मरगे। मोनी के दाई अपन लईका ल संस्कार सिखायबर उदिम करेबर सोचिस। भात खाय के बेरा मोनी के साग म उपराहा पिसे मिरचा ल डार के खाय बर दिस। पहिलीच कांवरा म लइका चुरपुर के मारे अकबका गिस। एती-ओती पानी खोजेबर लागिस, नई दिखीस त दाई ल गोहार पारिस-दाई पानी! रंधनी कुरिया के कपाट के ओधा म लुकाय महतारी सब ल देखत राहय। लइका ल हिचकत देखके टप ले एक लोटा पानी लान दिस। चुरपुर मरत मोनी सपर-सपर आधा लोटा पानी ल पी डारिस। पाछू ओकर दाई ह समझाईस कि हमर जिनगी म एक लोटा पानी के कतका बड़ महत्तम हावय। बिहनिया के सुरता देवइस। मोनी ल बात समझ म आगे अऊ अब ओ अपन महतारी के सब्बो कहना माने लागिस।फेर हमर तीर अइसने अंगरेजी इस्कूल म पढ़इया अड़बड़ अकन लइका जेन ल संस्कारित करेबर परही। एकर बर महतारी मन ल आगू आयबर परही इही समय के मांग आवे।
हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद
सुघ्घर बधाई हो ..