सुरुज किरन छरियाए हे

तैंहर उचिजाबे गा, सुरुज किरन छरियाए हे।





अब नइये बेरा हर, सुत के पहाये के
अब नइये बेरा अंटियाये के
अब नइये बेरा हर ऊँघाये सुरताये के
आये हे बेरा हर कमाये के
आँखी धो लेबे गा, चिरगुन मन पाँखी फरकाये हे।

झन तैं बिलमबे उतारे बर नांगर ला
जऊने खोंचाये हे काँड मन मां
झन तैं बिलमबे धरे बर तुतारी ला
जऊने धराये हे बरवंट मां
तैंहर धरि लेबे गा, खुमरी ला, बादर अंधिंयारे हे।

लकर लकर रेंग देबे खेत कोती तैंहर
भुइया तोर रद्दा ला जोहत हे
बइलन ला फाँद देबे नांगर मां तैंहर
जोते के बेरा हर आवत हे
चिटकुन कोर देबे गा, भुंइया के चूंदी छरियाये हे।

– डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा



Related posts