बारा महीना के बारा ठन साग-भाजी
हमर भुईंया के माटी ह सोन माटी हाबय, कुछु उपजा लेवा उपज जाथे, हमर धरती म के कोरा ह हमन ला हरियर-हरियर बनसपति ले नवांजथे, हम जीब जोहर पइदा करे हाबय, तेकर आतमा के तीरपती बर, जीभ के सुवाद बर अव सरीर के पोसन बर आनी-बानी के अन्न अव साग-सालन पइदा करे हाबय, बारा महीना के कई बारा ठन परकार के साग-भाजी अदल-बदल के बनावा तभो ले मन ह नई जुड़ावय, अव जम्मो ले बिबध परकार के बयनजन बनथे, मय अभी जाड़ महीना के बयनजन ले सुरू करत हावव,जइसे ही गुराबी जाड़ के परबेस होथे, तरकारी अव मउसमी फर के बहार आ जाथे, सबले पहिरी आथे गोभी राजा जेला देख के पुलाव खाये बर जी ह मचले लागथे, तहां लाल भाजी, मेथी भाजी, गाजर, पताल हरियर धनिया, मेथी, गोल भाटा, लंबोतरा भाटा, मिरचा, सेमी, पालक, मखना, करेला बीन, मुनगा, बटर, सरसों भाजी, अव कई जिनिस के साग-सालन, हाट जाये ले देखत रही जाय बर होथे, सब्बोच साग अव मउसमी फर मं सरीर के अवसयक जिनिस पाये जाथे, जो हमर सरीर के पोसन के संग-संग चेहरा मं कांती लाथे, ओकरे बर इ मउसम मं सब जिनिस के साग-भाजी अव फर-फूल खाना चाही जाड़ के मउसम मं हमर सरीर ठंडा जाथे ओमा गरमी लाये बर गरम जईसे गोंद के लाड़ु, सत्तू, मुरब्बा, छेबारी दबाई, जेमा सरीर के फइदा बर जम्मो जिनिस होथे गाजर के हलुबा, हींरबा के खईके, जेला अभी हमन छेरछेरा तिहार मं खाये हन ओकर गुरतुर सुवाद जीभे ले नी गये हाबय, खाना चाही, अभी बजार मं अंवरा कतका आबत हाबय ओकर कई परकार के जिनिस बनथे, अंवरा के मुरब्बा, अचार, सुखा के अंवरा चुसे बर बनाथे, पालक, मेथी, मुरई अव आलु के पराठा के सुबाद के का कहना दु रोटी के जगा चार खा दारथन, गोल भांटा के कलौंजी हर अडबड़ मिठाथे, रथिया कन कुड़कुड़ावत जाड़ मं गोरसी के तांती-तांती आंच मं अंगाकर के रोटी अव पताल मिरचा,धनिया के चटनी अड़बड़ मिठाथे, तेकर ले जाड़ म दसना म खुसर के सूते ले बड़ नीक लागथे, सबले अच्छा लागथे बजार जवई हर बजार म किसिम-किसिम के तरकारी ल देख के एक ठन साग के जगा चार ठन बिसो दारथन, ई मउसम मं बिहि के भरमार रहिथे अलग-अलग जगा के बिहि जेकर सुबाद घलो खटा-मीठा तखतपुर के बिहि सबले मीठ्ठ अव बड़का-बड़का बिही म जिंक के मातरा भरपूर होथे जेनहर हमर बाल अव आंखी के रोसनी बर अचछा होथे, ई रितू हर हमर बर तो बने हाबय पसु मन बर भी अच्छा हाबय काबर ओमन ला भी खाये बर किसिम -किसिम के तरकारी मिल जाथे, धनिया म लौह तत्व के मातरा रहिथे, मेथी के तासीर गरम अव रोगनासक, पालक, लाल भाजी, पताल म बिटामीन ए के मातरा जियादा होथे, सरसों भाजी के तासीर घलोक गरम अव सरीर बर रोगनासक होथे, ओकरे बर ‘मक्केें दी रोटी, सरसों दा साग” मुरई, गाजर, चुकंदर, पियाज, मिरचा, पत्ता गोभी, अव पताल के सलाद हर हमर सरीर के अमासय, छोटे व बड़े आंत के सफाई करिथे, साथ म पौसटीक घलो होथे, लौकी के तासीर ठंडा होथे ओकरे बर परायह ई साग ला गरमी म जादा खाथे, जादा पौसटीक बर पचमेली साग घलोक बनाथे सुवादिसट होये के साथ पौसटीक भी होथे।
किरन शर्मा
खरसिया
बने जनकारी वाले गोठ ल बतायेव् किरन दीदी मजा आगे
बढिया लिखे हावस ओ किरन ! तोर साग – भाजी के गोठ ल पढ – पढ के मोर मुँह – पञ्छावत हे ओ । निच्चट – सजीव वर्णन करे हावस । तरकारी मन मम्हावत घलाव हें , फेर रॉध के खाए नइ पायेंव ओ ।