अजब नियाव – गुड़ी के गोठ

ये जुग के सबले बड़े औद्योगिक त्रासदी के नियाव होते हमर पारा के बइठांगुर के मति छरियागे। मोला कथे भाई-एकरे सेती मैं कानून-फानून, नियाव-फियाव कुछू ल नइ मानंव। अइसन पहिली बेर नइ होए हे, जब पद, पइसा अउ पावर के आगू नियाव हार गे हे। तइहा जुग ले अइसन होवत आवत हे, अत्याचारी मन के हाथ म हमर कानून अउ नियाव ह धंधाय परे हवय।
मैं वोला थोक पुचकारत कहेंव-त का होगे तेमा अतेक तलमलावत हस?
-अरे कइसे का नइ होगे, तैं जानत हस आज ले 25 बछर पहिली जेन गैस कांड म हजारों लोगन के परान गे रिहीसे वोमा नियाव के ठीहा ले का फइसला आए हे?
-ले बताना-मैं वोला जुड़ोवत कहेंव।
– अरे का बताही, वो गरकट्टïा मनला सिरिफ दूएच साल के सजा होइस तेनो ल जमानत म घलोक छोड़ दिए गीस! हे न फदीथा कस गोठ। अरे हमर असन कोनो गरीब-गुरवा मन अइसन कोनो भी किसम के छोटे-मोटे घलोक अपराध कर दिए रहितेन त कतकोन किसम के फांसी ऊपर फांसी चढ़ा दिए रहितीन। मैं एकरे सेती अइसन कानून के मुंह ल देखना पसंद नइ करौं, भलुक खुद नियाव करे के बुता ऊपर भरोसा करथौं!
– फेर कानून ल कोनो भी किसम ले अपन हाथ म लेना घलोक तो अनियाव आय जी बइठांगुर भाई।
– अरे, वइसे-कइसे अनियाव आया। कहूं आज सहीं, नियाव के रद्दा देखत भागवान शंकर, राम या कृष्ण ह बइठे रहितीस त न कामदेव मरे रहितीस न रावन न कंस ह। सबो के सबो कसाब, अफजल गुरु अउ यूनियन कार्बाइड के धुंगिया सहीं सबला टुहूं देखावत खड़े रहितीस। न हमन ल कभू रमायन सुने ले मिलतीस न गीता के ज्ञान धरे बर मिलतीस। मोला तो लगथे के आजे कस शासन व्यवस्था कहूं उहूं जुग म होतीस त बड़े-बड़े अत्याचारी मनला मारने वाला न तो कोनो होए रहितीस न कोनो ल भगवान के पदवी मिल पाए रहितीस हमर पूरा धरम ह बिन भगवान के रहि जातीस।
-कइसे अलकरहा गोठियाथस बइठांगुर?
– अरे का के अलकरहा जी। सिरतोन ल तो काहत हौं। हमन भगवान उही मनला कहिथन न जे मन अत्याचारी के नाश करथें। त मोला बता आजे कस नियाव के व्यवस्था रहितीस त कोनो अत्याचारी मरतीस? अउ जब कोनो मरतीस नहीं त फेर वोमन ल मारे बिन कोनो भगवान घलोक कइसे बने पातीस?
– काहत तो ठउका हस। हमन भगवान तो उही ल कहिथन जे मन अत्याचारी मनला मारके नियाव के स्थापन करे हें। धरम के रक्षा करे हें फेर आजो तो अइसन होवत हे बइठांगुर भाई। फरक सिरिफ अतके हे के पहिली अत्याचारी मनला सोज्झे-सोज्झे मार देवत रिहीन हें, अब अदालत के माध्यम ले जेल म डार दिए जाथे। – फेर मोर रिस तो एकरे ऊपर हे न, के, के झन सही अउ के झन गलत ल सजा मिलथे। तैं खुद देखत आवत होबे के जतका गरकट्टïा-बईमान हें सब पइसा अउ पहुंच के भरोसा जेल के फांदा म नइ फंद पावयं। अउ जे बिचारा सिधवा-साधवा हे, गरीब हे, वोमन ल फोकटइहा म जेल म डार दिए जाथे। बिन कसूर करे थाना म दंदोरथें, तहां ले अदालत के चकर-घिन्नी कराथें अउ आखिर म जेल के काल कोठरी म पटक दिए जाथे। का इही ह नियाव ये जी! एह ‘नियावÓ नहीं भइया ‘नइ आंव’ आय। नइ आंव के मतलब समझथ?
– ले बताना रे भई।
– नइ आंव के मतलब होथे, थोर बहुत भेंट-पूजा करदे तहां ले मैं तोर कोनो किसम के रद्दा म नइ आंव। समझे!
सुशील भोले
41191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा, रायपुर
Share
Published by
admin