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कविता दोहा

पद्मश्री डॉ॰ मुकुटधर पाण्डेय के कविता

प्रशस्ति
सरगूजा के रामगिरी हे मस्तक मुकुट सँवारै,
महानदी ह निर्मल जल मा जेकर चरन पखारै।
राजिम औ सिवरीनारायण छेत्र जहां छबि पावै,
ओ छत्तिसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै।

है हयवंसी राजा मन के रतनपूर रजधानी,
गाइस कवि गेपाल राम परताप सुअमरित बानी।
जहाँ वीर गोपालराय काकरो करै नइ संका,
जेकर नाम के जग जाहिर डिल्ली मा बाजिस डंका।
मंदिर देउहर ठठर ठउठर आजा ले खड़े निसानी,
कारीगरी गजब के जेमा मूरती आनी बानी।
ए पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ सिवाला,
दान धरम अठ बल बिकरम के देवत हवै हवाला।

नवा सुरुज
छत्तिसगढ़ ला मिलिस आज है, रस्दा सुघर नेंवाटी,
छत्तिसगढ़ी गीत सुन जागिस छत्तिसगढ़ के माटी।
अब अँधियारी रात पहाइस, नवा बिहान भइस है,
परभाती के राग भैरवों घर घर गूँज गइस है।
वोहिस पवन विरिछ डोलिस, अउ फूल डार मा हाँसिस
कवल तरैया मा खिलगे, अब नवा सुरुज परकासिस।

-पद्मश्री डॉ॰ मुकुटधर पाण्डेय