उजियारी के समुन्हें भागे घपटे सब अंधियारी
सबके होवय देवारी अइसन सबके होवय देवारी ….
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अपन हाथ अउ जगन्नाथ काबर तभो ले रोथन
अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन
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सगरी घर के मालिक हो गयं परछी के रहवइया
जोतनहा बैला कस हो गयं गोल्लर कस दहकइया
ओतिहा होके फुरसतहा कस फुंसर फुंसर के सोथन..
अपने घर मे आज जवंरिहा बाराघाट के होथन
हमर ओरिया घाम घलईया महल सरग में तानय
हमर देहे पेज पियईया हलवा पूडी छानय
इनकर अकरी घलो बेचाथे बटुरा हमन सरोथन …
अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन
उखमंज जईसे ये उबकत हें दवां कस बगरत हें
कानून कायदा खीसा धरके संड़वा कस डकरत हें
देख इनकर सब चाल चलन अंतस के लहू चुरोथन…
अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन
जेकर हाथ लगाम हे घोड़ा ओही ला नई लेखय
जैसे निर्बल राजा ला रईहत हा नई सरेखय
दूध दही चतुरा खाथे हम दुहनी सिरिफ करोथन…
अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन
बोली बतरस रीत रिवाज अउ पुरखा मन के बानी
औंटत हें पहिचान बिना तरिया नदिया कस पानी
इनकर सेवा करे छांड हम दूसर के गोड़ धोथन …
अपने घर मे हमन जवंरिहा बाराबाट के होथन
रचियता…
सुकवि बुधराम यादव
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“बाराबाट” के बिषय मे तुलसीदास जी के दोहा….
राज करत बिनु काजहिं ठटहिं जे क्रूर कुठाट
तुलसी जे कुरु राज ज्यों जईन्हें बाराबाट
जईसे .. १. मोह २. भय ३. हानि ४. ग्लानि ५. क्षुधा ६. तृषा ७. दीनता ८. ह्रास ९. क्षोभ १०. व्यथा ११. मृत्यु १२. अपकीर्ति